कैग और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति द्वारा गंगा सफाई को लेकर चिंता जताने के बाद भी गंगा पर बनीं सरकारी समितियों का बैठक न करना नरेंद्र मोदी सरकार के गंगा सफाई के दावे पर सवालिया निशान खड़ा करता है.
नई दिल्ली: गंगा सफाई को लेकर केंद्र की मोदी सरकार के उच्चतम स्तर पर बनी समितियों की बैठक नहीं हो रही है. जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री की अध्यक्षता वाली गंगा नदी संबंधी अधिकार प्राप्त कार्यबल (एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा) की अब तक सिर्फ दो बैठक हुई है. द वायर द्वारा दायर किए गए सूचना का अधिकार आवेदन में इसका खुलासा हुआ है.
नियम के मुताबिक, गंगा नदी पर एम्पावर्ड टास्क फोर्स की हर तीन महीने में एक बैठक होनी चाहिए, यानी की एक साल में कम से कम इसकी चार बैठकें होनी चाहिए. अक्टूबर 2016 में एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा का गठन किया था और इसका उद्देश्य गंगा और इसकी सहायक नदियों के संरक्षण, संरक्षा और प्रबंधन से संबंधित सभी मामलों में समन्यवय (कोऑर्डिनेशन) और सलाह देना है.
07 अक्टूबर, 2016 को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ये समिति अपने विवेक से हर तीन महीने में कम से कम एक या एक से अधिक बैठकें आयोजित करेगा.
हालांकि आठ जनवरी 2019 को आरटीआई आवेदन के ज़रिये जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के अधीन संस्था राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) से मिली जानकारी से खुलासा हुआ है कि इसके गठन के दो साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी आज तक एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा की अब तक सिर्फ दो बैठकें ही हुई हैं.
एनएमसीजी ने बताया कि तत्कालीन जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरक्षण मंत्री उमा भारती की अध्यक्षता में पहली बैठक आठ फरवरी 2017 और दूसरी बैठक तीन अगस्त 2017 को हुई थी. इसके अलावा इस समिति की आज तक कोई बैठक नहीं हुई है. मालूम हो कि तीन सितंबर 2017 तक ही उमा भारती गंगा मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री थीं.
भारती के बाद इस मंत्रालय का कार्यभार नितिन गडकरी को दे दिया गया है. आरटीआई से मिली जानकारी से ये स्पष्ट होता है कि गडकरी की अगुवाई में समिति की कोई बैठक नहीं हुई है. गंगा सफाई की दिशा में हो रहे कार्यों को देखने के लिए मंत्रालय स्तर पर एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा संभवत: सबसे बड़ी समिति या निर्णायक इकाई है.
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इससे पहले द वायर ने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि गंगा सफाई के लिए बनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ (नेशनल गंगा काउंसिल या एनजीसी) की आज तक एक भी बैठक नहीं हुई है. अक्टूबर 2016 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का विघटन करके राष्ट्रीय गंगा परिषद बनाया गया था.
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति समेत कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा गंगा सफाई और उसकी अविरलता को लेकर चिंता जताने के बाद भी गंगा पर बनीं सरकारी समितियों का बैठक न करना नरेंद्र मोदी सरकार के गंगा सफाई के दावे पर सवालिया निशान खड़ा करता है.
मालूम हो कि दिसंबर 2017 में जारी राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की ऑडिट रिपोर्ट में सरकार द्वारा इस दिशा में सही से काम न करने के कारण फटकार लगाई गई थी. रिपोर्ट में नदी की सफाई, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थापना और घरों में शौचालयों के निर्माण से संबंधित देरी और गैर-कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला गया है.
वहीं, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली प्राक्कलन समिति ने गंगा संरक्षण के विषय पर अपनी पंद्रहवीं रिपोर्ट (16वीं लोकसभा) में गंगा सफाई को लेकर सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर घोर निराशा जताई थी और इस कार्य के लिए एक व्यापक और अधिकार प्राप्त प्राधिकरण का निर्माण करने की सिफारिश की थी.
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गंगा नदी में प्रदूषण भार तेजी से शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और जनसंख्या में वृद्धि के कारण कई सालों से बढ़ रहा है. सिंचाई, औद्योगिक, पीने के उद्देश्य आदि से पानी की निकासी के कारण नदी के प्रवाह में बाधा आ रही है और समस्या लगातार बढ़ती जा रही है.
समिति ने आगे कहा, ‘न केवल गंगा की मुख्य धारा बल्कि 11 राज्यों से होकर गुज़रने वाले पूरे गंगा बेसिन में सीवेज उपचार (साफ करने की) क्षमता में भारी कमी है. गंगा की मुख्य धारा पर पांच राज्यों (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल) में हर दिन 730.01 करोड़ लीटर (7301 एमएलडी यानी मिलियन लीटर प्रति दिन) सीवेज तैयार होता है लेकिन सिर्फ 212.6 करोड़ लीटर (2126 एमएलडी) सीवेज को ही साफ करने की व्यवस्था है.’
प्राक्कलन समिति ने कहा था कि 118.8 करोड़ लीटर (1188 एमएलडी) तक का सीवेज साफ करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट निर्माणाधीन हैं या फिर स्वीकृति प्रक्रिया में हैं. इस हिसाब से कुछ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनने के बाद भी प्रति दिन निकलने वाले 3987 एमलडी पानी साफ करने की कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है.
इसके अलावा समिति ने कहा था कि सात आईआईटी ने मिलकर गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना तैयार किया था जिसमें कहा गया है कि 11 राज्यों में कुल मिलाकर प्रतिदिन 1205.1 करोड़ लीटर (12051 एमएलडी) सीवेज तैयार होता है और इसमें से सिर्फ 571.17 करोड़ लीटर (5717 एमएलडी) ही सीवेज साफ करने की व्यवस्था मौजूद है. इस हिसाब से 633.4 करोड़ लीटर (6334 एमएलडी) का सीवेज बिना साफ किए ही नदी या अन्य जल संसाधनों में गिरता है.
गंगा सफाई की दिशा में काम करने वाले पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने कहा कि ये दर्शाता है कि आख़िर सरकार की क्या प्राथमिकता है. उन्होंने द वायर से बातचीत में कहा, ‘अब तक सरकार द्वारा गंगा के लिए जो कार्य किए गए हैं उससे नदी न तो साफ हो पाएगी और न ही अविरल हो सकती है. गंगा नदी की सफाई का महत्व नहीं है, गंगा नदी की पवित्रता का महत्व है.’
बता दें कि रवि चोपड़ा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के सदस्य थे. इस समिति की बैठक नहीं करने के कारण चोपड़ा ने दो अन्य सदस्यों- जलपुरुष राजेंद्र सिंह और एसवाई सिद्दीक़ी के साथ मिलकर साल 2015 में इससे इस्तीफा दे दिया था.
बता दें कि भारत सरकार ने गंगा नदी के संरक्षण के लिए मई 2015 में नमामी गंगे कार्यक्रम को मंजूरी दी थी. इसके तहत गंगा नदी की सफाई के लिए दिशानिर्देश बनाए गए थे. जैसे- नगरों से निकलने वाले सीवेज का ट्रीटमेंट, औद्योगिक प्रदूषण का उपचार, नदी के सतह की सफाई, ग्रामीण स्वच्छता, रिवरफ्रंट विकास, घाटों और श्मशान घाट का निर्माण, पेड़ लगाना और जैव विविधता संरक्षण इत्यादि शामिल हैं.
अब तक इस कार्यक्रम के तहत 24,672 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कुल 254 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है. इसमें से 30 नवंबर 2018 तक 19,772 करोड़ रुपये की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की 131 परियोजनाओं (105 गंगा पर और 26 सहायक नदियों पर) को मंज़ूरी दी गई थी, जिसमें से अभी तक 31 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई हैं.
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हालांकि मोदी सरकार द्वारा शुरू की गईं गंगा परियोजानाएं सवालों के घेरे में हैं. दिवंगत पर्यावरणविद् प्रो. जीडी अग्रवाल नरेंद्र मोदी को लिखे अपने पत्रों में ये सवाल उठाते रहे थे कि सरकार द्वारा इन चार सालों में गंगा सफाई के लिए जिन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है वो कॉरपोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों के फायदे के लिए हैं, गंगा को अविरल बनाने के लिए नहीं.
मालूम हो कि 112 दिनों तक आमरण अनशन पर रहे प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा सफाई को लेकर नरेंद्र मोदी को तीन बार पत्र लिखा था हालांकि उन्होंने किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया. पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा, जलपुरुष राजेंद्र सिंह और एसवाई सिद्दीक़ी द्वारा एनजीआरबीए से इस्तीफा देने का एक मुख्य वजह ये भी थी कि सरकार अग्रवाल की मांगों को पूरा नहीं कर रही थी.
पिछले साल अक्टूबर में द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि पहले की तुलना में किसी भी जगह पर गंगा साफ नहीं हुई है, बल्कि साल 2013 के मुक़ाबले गंगा नदी कई सारी जगहों पर और ज़्यादा दूषित हो गई हैं. जबकि 2014 से लेकर जून 2018 तक में गंगा सफाई के लिए 5,523 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिसमें से 3,867 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके थे.
इसके अलावा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपने अध्ययन में पाया है कि जिन 39 स्थानों से होकर गंगा नदी गुज़रती है, उनमें से सिर्फ एक स्थान पर साल 2018 में मानसून के बाद गंगा का पानी साफ था.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए सीपीसीबी ने ‘गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन (2017-18)’ नाम से एक रिपोर्ट जारी किया था जिसमें ये बताया गया था कि गंगा बहाव वाले 41 स्थानों में से करीब 37 पर साल 2018 में मानसून से पहले जल प्रदूषण मध्यम से गंभीर श्रेणी में रहा था.