न्यूज़ चैनलों की देशभक्ति से सावधान रहिए. अपनी देशभक्ति पर भरोसा कीजिए. जो चैनल देश की सरकार से सवाल नहीं पूछ सकते वे पाकिस्तान से पूछ रहे हैं. सेना अपने जवानों से कहे कि न्यूज़ चैनल न देखें वरना गोली चलाने की जगह हंसी आने लगेगी. चैनलों के जोकरों को देखकर मोर्चे पर नहीं निकलना चाहिए.
न्यूज़ चैनलों में युद्ध का मोर्चा सजा है. नायक को बख़्तरबंद किए जाने की तैयारी हो रही है. तभी ख़बर आती है कि नायक दक्षिण कोरिया में विश्व शांति पुरस्कार लेने निकल पड़े हैं.
मनमोहन सिंह ने ऐसा किया होता तो भाजपा मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही होती कि जब हमारे जवान मारे जा रहे हैं तो हमारे प्रधानमंत्री शांति पुरस्कार ले रहे हैं.
चैनल युद्ध का माहौल बनाकर कवियों से दरबार सजवा रहे हैं और प्रधानमंत्री हैं कि शांति पुरस्कार लेकर घर आ रहे हैं. कहां तो ज्योति बने ज्वाला की बात थी, मां कसम बदला लूंगा का उफ़ान था लेकिन अंत में कहानी राम-लखन की हो गई है. वन टू का फोर वाली.
मोदी को पता है. गोदी मीडिया उनके इस्तेमाल के लिए है न कि वे गोदी मीडिया के इस्तेमाल के लिए. एक चैनल ने तो अपने कार्यक्रम में यहां तक लिख दिया कि इलेक्शन ज़रूरी है या एक्शन.
जो बात अफवाह से शुरू हुई थी वो अब गोदी मीडिया में आधिकारिक होती जा रही है. मोदी के लिए माहौल बनाने और उन्हें उस माहौल में धकेल देने वाले चैनल डर के मारे पूछ नहीं पा रहे हैं कि मोदी हैं कहां. वे रैलियां क्यों कर रहे हैं, झांसी क्यों जा रहे हैं, वहां से आकर दक्षिण कोरिया क्यों जा रहे हैं, दक्षिण कोरिया से आकर गोरखपुर क्यों जा रहे हैं?
युद्ध की दुकान सजी है, ललकार है मगर युद्ध न करने के लिए फटकार नहीं है! प्रधानमंत्री को पता है कि गोदी मीडिया के पोसुआ पत्रकारों की औकात. जो एंकर उनसे दो सवाल पूछने की हिम्मत न रखता हो, उसकी ललकार पर मोर्चे पर जाने से अच्छा है वे दक्षिण कोरिया की राजधानी सीओल चले गए.
चैनलों में हिम्मत होती तो यही पूछ लेते कि यहां हम चिल्ला-चिल्लाकर गले से गोला दागे जा रहे हैं और आप हैं कि शांति पुरस्कार ले रहे हैं. आप कहीं रवीश कुमार का प्राइम टाइम तो नहीं देखने लगे.
स्क्रॉल वेबसाइट पर रोहन वेंकटरामाकृष्णन की रिपोर्ट सभी को पढ़नी चाहिए. पाठक और पत्रकार दोनों को. रोहन ने इस मसले पर सरकारी सूत्रों के हवाले से अलग अलग अखबारों में छपी सफाई की ख़बरों को लेकर चार्ट बनाया है, जिससे आप देख सकते हैं कि किस-किस बात के अलग-अलग वर्ज़न है, कौन-कौन सी बात सभी रिपोर्ट में एक है.
यह तय है कि प्रधानमंत्री ने पुलवामा हमले के दो घंटे बाद रुद्रपुर की रैली को फोन से संबोधित किया था और उसमें पुलवामा हमले का कोई ज़िक्र नहीं किया था. अपनी सरकार की कई योजनाओं को गिनाया. इस बात पर मीडिया में छपी सभी रिपोर्ट में सहमति है.
रोहन ने दूरदर्शन की क्लिपिंग का सहारा लेते हुए बताया है कि प्रधानमंत्री ने 5 बज कर 10 मिनट पर फोन से रैली को संबोधित किया था. इतना बड़ा हमला होने पर प्रधानमंत्री ही रैली कर सकते थे. उस भाषण में मौसम के कारण न आ पाने का दुख तो है मगर पुलवामा में मारे गए जवानों के लिए दुख नहीं है.
स्क्रॉल ने लिखा है कि इस एक बात के अलावा सभी मीडिया में हर बात के अलग-अलग दावे हैं. स्थानीय अख़बारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस ने आरोप लगाए हैं.
टेलीग्राफ अखबार से उत्तराखंड के एक अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया है और दिल्ली में कई पत्रकारों को सरकारी सूत्रों ने ब्रीफ किया है. उनकी ख़बरों का ब्यौरा है.
चौथा इकोनॉमिक्स टाइम्स में शुक्रवार को छपी एक खबर है. तो चार तरह के वर्ज़न हैं. कांग्रेस का आरोप है कि हमला होने के बाद मोदी 6 बज कर 45 मिनट तक डिस्कवरी चैनल और अपने प्रचार के लिए शूटिंग करते रहे. मोटर-बोट पर सैर करते रहे.
उत्तराखंड के अनाम अधिकारी ने कहा है कि मोदी ने हमले से पहले बोट की सवारी की, लेकिन हमले के घंटे भर बाद वे जंगल सफारी पर गए. अपने फोन से काले हिरण की तस्वीर ली. वहां से वे खिन्नौली गेस्ट हाउस गए जहां 4 बज कर 30 मिनट तक शूटिंग होती रही. हमले का समय 3:10 बताया जाता है.
अज्ञात सरकारी सूत्रों ने बताया कि रुद्रपुर रैली रद्द कर दी. वहां नहीं गए और फोन से संबोधित किया. उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, गृहमंत्री, जम्मू कश्मीर के राज्यपाल से बात की. कुछ नहीं खाया.
एक वरिष्ठ अधिकारी हवाले से खबर छपी है कि मोदी ने रुदपुर की रैली रद्द कर दी क्योंकि वे फोन पर जानकारी लेकर समीक्षा कर रहे थे. उसके बाद रैली को फोन से संबोधित किया.
स्क्रॉल ने लिखा है कि अलग-अलग वर्ज़न हैं. कौन सा बिल्कुल सही है बताना मुश्किल है. सवाल का जवाब नहीं मिलता है कि प्रधानमंत्री हमले के बाद तक डिस्कवरी चैनल की शूटिंग करते रहे या नहीं. जानकारी मिलने के बाद भी शूटिंग की या हमले से पहले शूटिंग हो चुकी थी.
मुझे अच्छी तरह याद है. सरकारी सूत्रों ने कहा कि ख़राब मौसम के कारण प्रधानमंत्री तक सही समय पर सूचना नहीं पहुंची. यह बात न पचती है और न जंचती है.
रैली करने लायक फोन का सिग्नल था तो उसी सिग्नल से उनतक बात पहुंच सकती है. समंदर के ऊपर उड़ रहे बीच आसामान में उनके जहाज़ पर सूचना पहुंच सकती है तो दिल्ली के पास रुद्रपुर में सूचना नहीं पहुंचेगी यह बात बच्चों जैसी लगती है.
प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय होता है इसलिए उनके कार्यक्रम के इतने वर्ज़न नहीं होने चाहिए. लीपा-पोती की कोशिश हो रही है.
दूसरा भाजपा ने ही माहौल रचा है कि शोक का समय है. सबको अपना राष्ट्रवाद ज़ोर-ज़ोर से बोलकर ज़ाहिर करना होगा. तब इस संदर्भ में सवाल उठने लगेगा कि हमले की घटना के बाद तक शूटिंग कैसे हो सकती है. प्रधानमंत्री रैली कैसे कर सकते हैं.
आगे के लिए आप स्क्रॉल साइट पर रोहन की पूरी रिपोर्ट पढ़ सकते हैं. गोदी मीडिया के लिए पीएम का शूटिंग करना कोई सवाल नहीं. अब उसने नितिन गडकरी का बयान थाम लिया है. वही पाकिस्तान को पानी रोकने का बयान.
उन्होंने भी रणनीति के तहत पुरानी खबर ट्वीट कर दी. 2016 के फैसले को ट्वीट किया तो यही बता देते कि कितना पानी रोका. लेकिन तथ्य से किसी को क्या मतलब. पाकिस्तान पर जल-प्रहार, पानी-पानी को तरसेगा पाकिस्तान जैसे मुखड़ों से चैनलों पर वीर-रस के गीत बजने लगे हैं.
तथ्य यही है कि भारत पानी नहीं रोकेगा. अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए उसे कई डैम बनाने हैं. एक का निर्माण शुरू हुआ है. दो के बनने पर फैसला लेना है. जब बनेगा तभी पानी रोक पाएगा. तो पाकिस्तान पर जल-प्रहार नहीं हुआ है.
भारत अपने हिस्से का ही पानी रोक रहा है न कि पाकिस्तान को पानी रोक रहा है. चैनलों ने पाकिस्तान के नाम पर भारत के दर्शकों पर ही झूठ के गोले दाग रखे हैं. हमले में दर्शक घायल है. अच्छा किया प्रधानमंत्री ने विश्व शांति पुरस्कार जनता के नाम कर दिया. इस जनता में वो जनता भी है जो दिन रात पुलवामा के बाद राष्ट्रवाद की आड़ में सियासी माहौल बना रही है.
शांति पुरस्कार लेकर जनता कंफ्यूज़ है. माहौल बनाने वाले कार्यकर्ताओं को रात में बुलवाया गया कि चलो, आओ और एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री का स्वागत करो. वे शांति पुरस्कार जीत कर आ रहे हैं. एयरपोर्ट के रास्ते पोस्टर भी लगा दिए गए.
24 फरवरी को गोरखपुर में प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का उद्घाटन करने वाले हैं. उत्तराखंड सरकार ने सभी ज़िलों में आदेश जारी किया है कि ज़िला और ब्लॉक स्तर पर किसानों को सभागार में बिठाकर लाइव टेलीकास्ट दिखाना है. जनप्रतिनिधि भी शामिल होंगे.
इसके लिए ज़िला स्तर पर 25,000 रुपये और ब्लॉक लेवल पर 10,000 रुपये खर्च की मंज़ूरी दी गई है. आप हिसाब लगाए कि अकेले उत्तराखंड में जनता का 10-12 लाख पैसा पानी में बह जाएगा.
भारत में 640 ज़िले हैं और 5500 के करीब ब्लॉक हैं. सिर्फ इसी पर 7 करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो जाएगी. हम नहीं जानते कि गोरखपुर की सभा के लिए कितना पैसा ख़र्च किया गया है. उसी गोरखपुर के ओबीसी और अनुसूचित जाति के छात्र रोज़ मैसेज करते हैं कि उन्हें छात्रवृत्ति नहीं मिल रही है. ग़रीब छात्रों को पढ़ने में दिक्कतें आ रही हैं.
न्यूज़ चैनलों की देशभक्ति से सावधान रहिए. अपनी देशभक्ति पर भरोसा कीजिए. जो चैनल देश की सरकार से सवाल नहीं पूछ सकते वे पाकिस्तान से पूछ रहे हैं. सेना के अच्छे भले अधिकारी भी इन कार्यक्रमों में जाकर प्रोपेगैंडा का शिकार हो रहे हैं.
मुझे उम्मीद है कि सेना अपनी रणनीति और अपने समय से कार्रवाई का फैसला लेगी. सेना अपने जवानों से कहे कि न्यूज़ चैनल न देखें. वर्ना गोली चलाने की जगह हंसी आने लगेगी. चैनलों के जोकरों को देखकर मोर्चे पर नहीं निकलना चाहिए. जय हिंद.
यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.