बिहार: शराबबंदी से राजस्व में कमी न होने का नीतीश कुमार का दावा ग़लत निकला

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दावे के उलट कैग की रिपोर्ट बताती है कि शराबबंदी के कारण वित्त वर्ष 2016-2017 में कर राजस्व में गिरावट आई है.

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक)

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दावे के उलट कैग की रिपोर्ट बताती है कि शराबबंदी के कारण वित्त वर्ष 2016-2017 में कर राजस्व में गिरावट आई है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक)

पटना: अप्रैल 2016 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की घोषणा की थी, तब एक अहम सवाल ये उठा था कि शराब से आने वाले राजस्व का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई सरकार कहां से करेगी.

नीतीश कुमार ने उस वक्त आश्वस्त किया था कि सरकार राजस्व के नुकसान की भरपाई अन्य स्रोतों से कर लेगी.

2017 में शराबबंदी का एक साल पूरा हुआ था, तब मीडिया के साथ बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा था कि सरकार को पिछले साल जितना राजस्व आया था, इस साल भी उतना ही आया है.

उन्होंने कहा था, ‘यह मानना गलत है कि शराबबंदी के कारण एक्साइज़ ड्यूटी का नुकसान राजस्व में कमी का कारण बना है. राज्य को वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) और शराब पर एक्साइज ड्यूटी से पांच हज़ार करोड़ रुपये की कमाई होती थी. वित्त वर्ष 2016-2017 में उतनी ही कमाई हुई है, जितनी वित्त वर्ष 2015-2016 में हुई थी.’

उन्होंने आगे कहा था, ‘शराबबंदी और नोटबंदी के दोहरे असर के बावजूद इस वित्त वर्ष (2016-2017) उतना ही राजस्व आया, जितना वर्ष 2015-2016 में आया था. संभावना है कि राजस्व बढ़ भी सकता है.’

नीतीश कुमार ने कहा था, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजस्व (शराबबंदी होने पर) गिरता है, लेकिन लोग पहले शराबबंदी पर जो रुपये ख़र्च करते थे, उन्हें बचा रहे हैं और उनका इस्तेमाल दूसरी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर रहे हैं.’

हालांकि, कैग (कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) की रिपोर्ट नीतीश कुमार के दावे पर सवाल खड़े करती है.

कैग की रिपोर्ट बताती है कि शराबबंदी के कारण वित्त वर्ष 2016-2017 में टैक्स रेवेन्यू में गिरावट आई है. रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016-2017 के लिए टैक्स रेवेन्यू का अनुमान 29730.26 करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन सरकार के खाते में 23742.26 करोड़ रुपये ही आए. यानी अनुमान से 5,988 करोड़ रुपये कम जमा हुए.

वर्ष 2016-2017 के लिए टैक्स रेवेन्यू का अनुमान 29730.26 करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन सरकार के खाते में 23742.26 करोड़ रुपये ही आए.
वर्ष 2016-2017 के लिए टैक्स रेवेन्यू का अनुमान 29730.26 करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन सरकार के खाते में 23742.26 करोड़ रुपये ही आए.

पिछले चार सालों के लक्षित टैक्स रेवेन्यू और वसूल किए गए टैक्स रेवेन्यू का अध्ययन करें, तो पता चलता है कि लक्ष्य से सबसे कम रेवेन्यू 2016-2017 में ही आया है.

कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2012-13 में 16455.09 करोड़ के टैक्स रेवेन्यू का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन रेवेन्यू कलेक्शन लक्ष्य से 202.01 करोड़ कम हुआ था. इसी तरह वित्त वर्ष 2013-2014 में लक्ष्य से 1194.01 करोड़ रुपये कम आए थे.

वर्ष 2014-2015 में अनुमान से 4,912.71 करोड़ रुपये और 2015-2016 में अनुमान से 5,425.88 करोड़ रुपये कम कलेक्शन हुआ था. लेकिन, गौरतलब बात ये है कि वित्त वर्ष 2012-2013 से 2015-2016 के बीच टैक्स रेवेन्यू पिछले वर्षों की तुलना में कभी भी कम नहीं आया था.

विगत पांच वर्षों में यह पहला मौका है जब वित्त वर्ष 2016-2017 में टैक्स रेवेन्यू वित्त वर्ष 2015-2016 से भी कम आया.

कैग रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2016-2017 में रेवेन्यू कलेक्शन अनुमान से 20.4 प्रतिशत कम और वित्त वर्ष 2015-2016 के मुकाबले 6.71 प्रतिशत कम हुआ.

कैग रिपोर्ट में लिखा गया है कि स्टेट एक्साइज के कलेक्शन में 98.59 प्रतिशत की कमी मुख्य तौर पर शराबबंदी के कारण आई. रिपोर्ट के अनुसार, प्रशासनिक व वित्त विभाग की फाइलों से पता चलता है कि एक्साइज ड्यूटी के रूप में 2100 करोड़ रुपये का राजस्व जमा होने का अनुमान रखा गया था.

हालांकि, बाद में प्रशासनिक विभाग ने वित्त विभाग से एक्साइज राजस्व का अनुमान शून्य रखने का निवेदन किया था, मगर वित्त विभाग ने इसमें संशोधन कर 46.40 करोड़ रुपये कर दिया था.

कैग रिपोर्ट में लिखा गया है, ‘पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2016-2017 में टैक्स रेवेन्यू में गिरावट (6.71 प्रतिशत) और कुल रेवेन्यू में टैक्स रेवेन्यू के कम योगदान का प्राथमिक कारण अप्रैल 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी और आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी के कारण स्टाम्प व रजिस्ट्रेशन फीस की वसूली में कमी आना है.’

कैग रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-2017 में टैक्स रेवेन्यू में 6.71 प्रतिशत की गिरावट आई है.
कैग रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-2017 में टैक्स रेवेन्यू में 6.71 प्रतिशत की गिरावट आई है.

बिहार में जब शराबबंदी लागू हुई थी तब महागठबंधन की सरकार थी और राजद के विधायक अब्दुल बारी सिद्दीक़ी वित्तमंत्री थे. अभी वह विपक्ष में हैं.

वित्तमंत्री रहते हुए उन्होंने भी नीतीश कुमार के सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि आंतरिक राजस्व में उतनी गिरावट नहीं आई है, जितना अनुमान था. उन्होंने कहा था, ‘हमारे लिए यह सकारात्मक संकेत है. अब हमें विश्वास है कि हम दूसरे स्रोतों से अतिरिक्त राजस्व की वसूली कर लेंगे.’

लेकिन, कैग रिपोर्ट बताती है कि दूसरे स्रोतों से राजस्व में मामूली इज़ाफ़ा हुआ और दूसरी ओर स्टाम्प व रजिस्ट्रेशन फीस में नोटबंदी के कारण कमी ही आई.

स्टाम्प व रजिस्ट्रेशन फीस के रूप में 3800 करोड़ रुपये की वसूली का अनुमान लगाया गया था, लेकिन 2981.29 करोड़ रुपये की वसूली हो पाई. वित्त वर्ष 2015-2016 में इस मद से 3408.57 करोड़ रुपये की वसूली हुई थी. यानी कि पिछले साल की तुलना में इस साल 426.62 करोड़ रुपये की कमी आई.

अब्दुल बारी सिद्दीक़ी से जब इस संबंध में बात की गई, तो उन्होंने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि टैक्स कलेक्शन का मामला उनके विभाग से जुड़ा हुआ नहीं था. अलबत्ता, यह ज़रूर कहा कि टैक्स रेवेन्यू घटने से प्रभाव पड़ेगा क्योंकि राज्य का टैक्स कलेक्शन घटता या बढ़ता है तो केंद्रीय सहायता में भी उसी हिसाब से कमी या बढ़ोतरी होती है.

उन्होंने कहा, ‘हम मूल वित्त विभाग से जुड़े थे. कॉमर्शियल टैक्स हमारे साथ था नहीं, इसलिए हम नहीं बता सकते.’

राज्य के वित्त विभाग के अधिकारियों की मानें, तो टैक्स रेवेन्यू में सेल्स व ट्रेड आदि टैक्स तथा पैसेंजर व सामान पर टैक्स के बाद स्टेट एक्साइज तीसरा सबसे ज़्यादा रेवेन्यू देने वाला स्रोत था.

अर्थशास्त्रियों ने शराबबंदी के चलते राजस्व के नुकसान की आशंका जताई थी और कहा था कि इसे बिहार की आर्थिक सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.

अर्थशास्त्री प्रो. डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘सरकार के ख़र्च पर तो इसका असर होगा. अगर आपके घर ख़र्च का एक बजट तय है और कमाई उस बजट से भी कम हो रही है तो इसका प्रभाव तो निश्चित तौर पर पड़ेगा.’

हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि शराबबंदी से टैक्स रेवेन्यू का जो नुकसान हुआ है, उसकी तुलना अगर गरीब तबके पर शराबबंदी से पड़े सकारात्मक प्रभाव से किया जाए, तो कहा जा सकता है कि यह नुकसान नहीं है.

वित्त विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, स्टेट एक्साइज के रूप में वर्ष 2015-16 में 3141.75 करोड़ रुपये रेवेन्यू आया था. इससे पहले वित्त वर्ष 2014-15 में रेवेन्यू के रूप में 3216.58 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2013-14 में 3167.72 करोड़ रुपये मिले थे.

बिहार चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के वाइस प्रेसिडेंट एनके ठाकुर कहते हैं, ‘शराब के बाद राजस्व उगाही में बड़ा योगदान रिअल एस्टेट और बुनियादी ढांचा था, लेकिन कानून का हवाला देकर बालू पर प्रतिबंध लगा दिया. बिहार में नए कल-कारखाने आ नहीं रहे हैं. पता नहीं सरकार शराबबंदी से राजस्व में हुए नुकसान की भरपाई कैसे करेगी.’

एनके ठाकुर का कहना है कि राजस्व में कमी का असर दिखने लगा है. उन्होंने कहा, ‘सरकारी प्रोजेक्टों का ठेका लेने वाले ठेकेदार शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें सरकार की तरफ से फंड नहीं दिया जा रहा है.’

माना जा रहा है कि जीएसटी लागू हो जाने से राज्य सरकार को फायदा होगा, लेकिन जीएसटी वर्ष 2017 में लागू हुआ है. इसका फायदा सरकार को तुरंत नहीं मिलने वाला है. इसके लिए सरकार को कम से कम एक साल इंतज़ार करना होगा.

डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘अगर सरकार प्लानिंग ठीक से कर ले और विज़न साफ हो, तो टैक्स रेवेन्यू में हुए नुकसान की भरपाई हो सकती है.’

उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2016 शराबबंदी क़ानून लागू होने से लेकर अब तक लगातार शराब की जब्ती हो रही है. साथ ही अवैध तरीके से चोरी-छिपे शराब की ख़रीद-फरोख़्त अब भी जारी है.

दूसरी तरफ, शराबबंदी क़ानून के तहत गिरफ्तार लोगों में एक बड़ी आबादी गरीब व पिछड़ी जातियों की है, जो क़ानूनी लड़ाई लड़ने में असमर्थ हैं.

शराबबंदी क़ानून के कड़े प्रावधानों को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. इन सवालों-शिकायतों के मद्देनज़र नीतीश सरकार ने पिछले साल शराबबंदी क़ानून में कई संशोधन किए थे. अब देखना ये है कि शराबबंदी से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार आनेवाले दिनों में क्या क़दम उठाती है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)