उत्तर प्रदेश: क्यों अपनों की जगह बसपा से आने वालों को तरजीह दे रही है भाजपा

लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में प्रत्याशियों की पहली सूची आने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी में घमासान मच गया है. पहली सूची में छह वर्तमान सांसदों का टिकट काटा गया है. उनकी जगह पार्टी ने बसपा से आने वाले नेताओं को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.

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Lucknow: Prime Minister Narendra Modi and BJP President Amit Shah with the new Chief Minister Yogi Adityanath at the swearing-in ceremony of the new government of Uttar Pradesh, in Lucknow on Sunday. PTI Photo/ PIB(PTI3_19_2017_000159B)

लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में प्रत्याशियों की पहली सूची आने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी में घमासान मच गया है. पहली सूची में छह वर्तमान सांसदों का टिकट काटा गया है. उनकी जगह पार्टी ने बसपा से आने वाले नेताओं को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.

Lucknow: Prime Minister Narendra Modi and BJP President Amit Shah with the new Chief Minister Yogi Adityanath at the swearing-in ceremony of the new government of Uttar Pradesh, in Lucknow on Sunday. PTI Photo/ PIB(PTI3_19_2017_000159B)
(फोटो: पीटीआई)

भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में 28 प्रत्याशियों की जो पहली सूची घोषित की है, उनमें से कई उम्मीदवारों को लेकर खींचतान शुरू हो गई है.

पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में जिन छह वर्तमान सांसदों का टिकट काटा है उनमें से चार आरक्षित सीटें हैं. इन सीटों से बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसदों का टिकट काटकर बहुजन समाज पार्टी से आने वालों को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.

बीजेपी के इस तरह टिकट बंटवारे के कारण आगरा, अलीगढ़, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख (सीतापुर ज़िला), फतेहपुर सीकरी, बदायूं और संभल लोकसभा सीटों पर पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष खुलकर दिख रहा है.

फिलहाल बीजेपी नेताओं का दावा है कि पहली लिस्ट में उन्हीं प्रत्याशियों का नाम शामिल किया गया है जो जिताऊ हैं.

बात अगर सुरक्षित सीटों की करें तो आगरा से राम शंकर कठेरिया बीजेपी के सांसद हैं. कठेरिया को बीजेपी सरकार ने एससी आयोग का चेयरमैन भी बनाया है.

हालांकि इस चुनाव में कठेरिया के बदले एसपी सिंह बघेल को बीजेपी ने आगरा से अपना प्रत्याशी बनाया है. बघेल ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत समाजवादी पार्टी से की थी.

बाद में वह बसपा से राज्यसभा के सांसद बने. पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बघेल ने भाजपा जॉइन कर ली. बीजेपी में शामिल होने के बाद बघेल को पार्टी के ओबीसी मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.

मज़ेदार बात ये है कि जिस एसपी सिंह बघेल को बीजेपी ने ओबीसी मोर्चा का नेता घोषित किया था उन्हीं को इस लोकसभा चुनाव में एससी सीट से प्रत्याशी बना दिया है.

आगरा के वर्तमान सांसद कठेरिया कहते हैं जिसे पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है वो ओबीसी से आते हैं. आगरा के वरिष्ठ पत्रकार शरद चौहान कहते हैं कि कठेरिया आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं. वे विभाग प्रचारक तक रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ समय पूर्व जब आगरा आए थे तो उन्होंने भी कठेरिया की तारीफ़ की थी. ऐसे में उनका टिकट काटकर बघेल को टिकट देना समझ से परे है.

शाहजहांपुर लोकसभा सीट पर भी यही स्थिति है. यहां की वर्तमान सांसद कृष्णा राज को पिछले चुनाव में जीतने के बाद पार्टी ने मंत्री पद से नवाज़ा था. लेकिन इस चुनाव में पार्टी ने उनका टिकट काटकर बसपा से आए अरुण सागर को टिकट दिया है.

अरुण मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार में राज्यमंत्री रहे हैं. अरुण को बसपा ने शाहजहांपुर का ज़िलाध्यक्ष भी बनाया था.

हरदोई से सटी मिश्रिख लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से अंजू बाला ने पिछला लोकसभा चुनाव जीता था. इस बार पार्टी ने अंजू बाला का टिकट काट दिया है.

अंजू बाला के स्थान पर पार्टी ने अशोक रावत को अपना प्रत्याशी बनाया है. अशोक रावत भी 2009 में बसपा के टिकट पर सांसद रहे हैं.

हरदोई सुरक्षित सीट से बीजेपी ने जय प्रकाश रावत को अपना प्रत्याशी घोषित किया है. रावत भी बसपा से राज्यसभा पहुंच चुके हैं. पिछला चुनाव रावत मिश्रिख लोकसभा सीट से बसपा के टिकट पर लड़े तो उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.

जानकार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद रावत ने बीजेपी जॉइन कर ली थी. टिकट बंटवारे में बीजेपी नेताओं के बजाए बीएसपी से आए हुए लोगों को सुरक्षित सीटों पर तरजीह दिए जाने को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति है.

हरदोई सुरक्षित सीट से बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है. उसे समझ में नहीं आ रहा है कि कल तक वो जिस नेता का विरोध करता था आज उसके पक्ष में वोट किस तरह मांगे.

ऐसा नहीं कि बीजेपी ने सिर्फ़ आरक्षित सीटों पर ही बसपा से आए नेताओं को तरजीह दी गई है.

बदायूं लोकसभा सीट पर टिकट बंटवारे के बाद घमासान मचा हुआ है. इस सीट से पिछला लोकसभा चुनाव सपा प्रमुख अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव ने जीता था. उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी वागीश पाठक को हराया था.

धर्मेंद्र यादव के ख़िलाफ़ वागीश पाठक को पिछले चुनाव में करीब साढ़े तीन लाख वोट मिले थे. इस बार बीजेपी ने पाठक का टिकट काटकर बीएसपी से पार्टी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्या को धर्मेंद्र यादव के ख़िलाफ़ प्रत्याशी बनाया है.

पाठक का टिकट कटने के बाद से ही बीजेपी कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति है. बीजेपी के सेक्टर प्रभारी प्रशांत भारद्वाज कहते हैं कि संघमित्रा पडरौना ज़िले की रहने वाली हैं जो बदायूं से करीब 700 किलोमीटर दूर है. जबकि पाठक स्थानीय नेता हैं.

संघमित्रा ने पिछला लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर मैनपुरी से लड़ा था, जिसमें उन्हें सिर्फ़ डेढ लाख वोट ही हासिल हुआ था. जबकि धर्मेंद्र यादव के ख़िलाफ़ पाठक को साढ़े तीन लाख वोट हासिल हुए थे.

भारद्वाज कहते हैं कि बसपा से आए नेताओं को टिकट देने से स्थितियां ऐसी हो गई हैं कि कार्यकर्ताओं को बीजेपी के पक्ष में खड़ा रखना मुश्किल हो रहा है.

बदायूं में पार्टी से जुड़े अजय यादव कहते हैं कि पार्टी ने किस नए प्रत्याशी को टिकट दिया है न तो हम उसे जानते हैं और न ही वो हमें जानता है. ऐसे में बाहर से आए नए प्रत्याशी को चुनाव लड़वाने का सवाल ही नहीं उठता.

बदायूं की तरह ही फतेहपुर सीकरी में भी टिकट बंटवारे के बाद पार्टी में खींचतान शुरू हो गई है. यहां भी वर्तमान सांसद बाबू लाल का टिकट काटकर भाजपा ने राज कुमार चहर को अपना प्रत्याशी बनाया है.

बाबू लाल कहते हैं कि हम ख़ुद आश्चर्यचकित हैं कि पार्टी ने टिकट क्यों काट दिया. उन्होंने बताया कि प्रदेश के नेताओं से जब इस बाबत पूछा तो उनका जवाब था कि टिकट ऊपर से कटा है.

बाबू लाल सवाल उठाते हैं, ‘मेरे ख़िलाफ़ न तो कई भ्रष्टाचार का मामला था और न ही पार्टी विरोधी किसी गतिविधि का. इसके बावजूद मेरा टिकट काटना दुर्भाग्यपूर्ण है.’

टिकट घोषित होने के साथ ही अलीगढ़ लोकसभा सीट पर भी उठापटक शुरू हो गई है. यहां से वर्तमान सांसद सतीश गौतम को फिर से पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है.

जानकार बताते हैं कि सतीश गौतम को पिछले चुनाव में कल्याण सिंह ने ही टिकट दिलवाया था. लेकिन पिछले पांच सालों के दौरान सांसद गौतम व कल्याण सिंह के परिजनों के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं चला.

नतीजा ये हुआ कि इस लोकसभा चुनाव में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह अपने समधी या किसी दूसरे ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दिलवाना चाहते थे.

स्थानीय भाजपा नेता बताते हैं कि राजवीर सिंह के समधी तो पूरी तरह टिकट को लेकर आश्वस्त थे. फिलहाल बीजेपी ने जब से सतीश गौतम पर भरोसा जताया है तब से रोज़ कल्याण सिंह के यहां विरोध प्रदर्शन का दौर जारी है.

वर्तमान सांसद और कल्याण सिंह के बीच दूरियों का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि होली पर सतीश गौतम कल्याण सिंह का आशीर्वाद लेने उनके आवास तक गए लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी.

अलीगढ़ में टिकट घोषित होने के बाद मचे घमासान को विराम देने के लिए पार्टी के बड़े नेताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा.

सूत्र बताते हैं कि पार्टी नेतृत्व के कड़े रुख़ को देखते हुए कल्याण सिंह के बेटे व एटा से सांसद राजवीर सिंह ने बीजेपी प्रत्याशी सतीश गौतम को मिठाई खिलाकर मामले को रफादफा करने का प्रयास किया.

राजवीर की ओर से सतीश गौतम को मिठाई खिलाते हुए फोटो भी प्रचारित की गई. जानकार बताते हैं कि मिठाई खिलाते हुए फोटो जारी कर भले ही यह संदेश देने का प्रयास किया गया हो कि सब कुछ ठीकठाक है लेकिन अंदरखाने अभी भी सबकुछ ठीकठाक नहीं हुआ है.

सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद पिछले साल हुए उपचुनाव में भाजपा कैराना सीट हार गई थी. पार्टी ने उपचुनाव में हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा था.

पार्टी सूत्र बताते हैं कि उपचुनाव में ही पार्टी मृगांका के बदले किसी और को टिकट देना चाहती थी लेकिन हुकुम सिंह के समर्थकों के विरोध के डर से पार्टी ऐसा नहीं कर सकी.

फिलहाल इस लोकसभा चुनाव में मृगांका के बदले गंगोह सीट से विधायक प्रदीप चौधरी को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है. प्रदीप को प्रत्याशी बनाए जाने के तुरंत बाद ही मृगांका के समर्थकों ने विरोध शुरू कर दिया था.

बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि पश्चिमी यूपी में भी स्थितियां पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार नहीं है. प्रदीप चौधरी विधायक हैं लिहाज़ा उनकी क्षेत्र में पकड़ भी है लेकिन पार्टी में ही यदि भीतर विरोध रहा तो फायदा दूसरे लोगों को मिल जाएगा. लिहाज़ा जरूरी है कि पार्टी के शीर्ष नेता समय रहते इस विरोध को दूर करें.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)