क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत ठीक नहीं है?

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में आठ सीटों पर चुनाव होने हैं, इनमें से सात सीटों पर भाजपा का क़ब्ज़ा है. इन सीटों को बचाकर रखना उसके लिए चुनौतीपूर्ण नज़र आ रहा है, क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस प्रत्याशियों की वजह से मुक़ाबला त्रिकोणीय हो गया है.

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Varanasi: Prime Minister Narendra Modi and Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath during a public meeting, in Varanasi, Tuesday, September 18, 2018. (PTI Photo)(PTI9_18_2018_000033B)
Varanasi: Prime Minister Narendra Modi and Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath during a public meeting, in Varanasi, Tuesday, September 18, 2018. (PTI Photo)(PTI9_18_2018_000033B)

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में आठ सीटों पर चुनाव होने हैं, इनमें से सात सीटों पर भाजपा का क़ब्ज़ा है. इन सीटों को बचाकर रखना उसके लिए चुनौतीपूर्ण नज़र आ रहा है, क्योंकि सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस प्रत्याशियों की वजह से मुक़ाबला त्रिकोणीय हो गया है.

Varanasi: Prime Minister Narendra Modi and Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath during a public meeting, in Varanasi, Tuesday, September 18, 2018. (PTI Photo)(PTI9_18_2018_000033B)
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे मौसम तापमान बढ़ रहा है वैसे ही सियासी पारा भी तेज़ी से बढ़ रहा है. पहले चरण के चुनाव में जिन आठ सीटों पर एक सप्ताह बाद चुनाव होना है उनमें से सात सीटों पर अभी भारतीय जनता पार्टी के ही सांसद हैं.

हालांकि लोकसभा चुनाव में इन सीटों को बचा के रखना सत्तारूढ़ भाजपा के लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण नज़र आ रहा है, क्योंकि सहारनपुर, कैराना, बिजनौर, मेरठ और गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीटों पर गठबंधन या कांग्रेस प्रत्याशियों की मज़बूती से चुनाव लड़ने के कारण मुकाबला त्रिकोणीय हो रहा है.

मुज़फ़्फ़रनगर और बागपत सीटों पर कांग्रेस, सपा व बसपा ने अपने प्रत्याशी न उतार कर राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को समर्थन दिया है. पहले चरण के चुनाव में ग़ाज़ियाबाद ही एक ऐसी लोकसभा सीट है जिसे लेकर भाजपा के नेता पूरी तरह आश्वस्त हैं.

ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा सांसद वीके सिंह इस सीट से करीब पांच लाख वोटों के भारी अंतर से जीते थे, जो कि कांग्रेस, सपा व बसपा को कुल मिले वोटों से भी अधिक है. इन आठ सीटों पर बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती गन्ना किसानों की नाराज़गी है.

बीजेपी के बड़े नेता सार्वजनिक तौर पर भले ही सभी सीटों पर फिर से जीत का दावा कर रहे हों लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त एकदम उलट है. ग़ाज़ियाबाद लोकसभा सीट को लेकर बीजेपी के नेता जितना आश्वस्त हैं पड़ोसी सीट गौतमबुद्धनगर को लेकर उतना ही आशंकित भी हैं.

आशंका का सबसे बड़ा कारण जनता की नाराज़गी है. इस सीट पर पिछला चुनाव जीत कर डॉ. महेश शर्मा सांसद और मंत्री बने. इस बार बीजेपी ने फिर से शर्मा पर ही भरोसा जताया है.

इस चुनाव में टिकट मिलने के बाद कई जगह पर प्रचार के दौरान बीजेपी प्रत्याशी व उनके समर्थकों को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. खासतौर पर गांवों में बीजेपी प्रत्याशी का विरोध हो रहा है.

दोस्तपुर मंगरौली ग्रामसभा के पूर्व प्रधान चमन सिंह कहते हैं कि पिछले चुनाव में हम लोगों ने बीजेपी प्रत्याशी को जी-जान से मेहनत कर जिताया था. चुनाव जीतने के बाद बीजेपी प्रत्याशी महेश शर्मा ने हमारी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया.

चमन बताते हैं कि हम लोगों ने प्राधिकरण के विरोध में करीब एक साल तक धरना दिया और कई बार सांसद को अपनी समस्याओं से अवगत कराया लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया.

नोएडा के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि मंत्री बनने के बाद डॉ. महेश शर्मा आम जनता से लगभग कट गए थे जिसका नतीजा ये है कि लोगों में इस बात को लेकर भारी रोष है.

पिछला लोकससभा चुनाव सपा व बसपा अलग-अलग लड़े थे और दोनों के प्रत्याशियों को मिलाकर करीब पांच लाख वोट मिला था. इस बार के चुनाव में सपा व बसपा मिलकर लड़ रहे हैं.

गठबंधन ने जातीय समीकरणों को देखते हुए सतवीर नागर को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने डॉ. अरविंद कुमार को मैदान में उतारा है. अरविंद के पिता ठाकुर जयवीर सिंह वर्तमान में बीजेपी से एमएलसी भी हैं. लिहाज़ा इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

मेरठ लोकसभा सीट को लेकर भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल पिछले दस साल से सांसद हैं. बीजेपी ने एक बार फिर से राजेंद्र अग्रवाल को ही मैदान में उतारा है.

मेरठ से टिकट मिलते ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी अग्रवाल का विरोध शुरू कर दिया था. पार्टी के बड़े नेताओं ने कार्यकर्ताओं के आक्रोश को दरकिनार कर स्थिति को संभालने का प्रयास तो किया है लेकिन भीतरखाने अभी भी आक्रोश की चिंगारी सुलग रही है.

स्थानीय व्यापारी अशोक कहते हैं कि राजेंद्र अग्रवाल ने पिछले पांच सालों के दौरान अपने आपको आम लोगों से दूर रखा. महज कुछ लोग ही थे जो उनके आसपास रहकर जैसा उनको बताते थे वही होता था. जिसका परिणाम ये है कि चुनाव के समय लोगों में आक्रोश साफ दिख रहा है.

मेरठ सीट पर पिछले चुनाव में बसपा को करीब तीन लाख व सपा को करीब दो लाख वोट मिले थे. इस चुनाव में गठबंधन ने मीट कारोबारी हाज़ी याक़ूब क़ुरैशी को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने यहां हरेंद्र अग्रवाल को उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया है.

अखिलेश यादव और मायावती (फाइल फोटो: पीटीआई)
अखिलेश यादव और मायावती (फाइल फोटो: पीटीआई)

कैराना सीट पर भी बीजेपी को अपनों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी के कद्दावर नेता हुकुम सिंह ने पिछले लोकसभा चुनाव में ये सीट करीब सवा दो लाख वोटों से जीती थी. हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को चुनाव लड़ाया था, जो हार गई थीं.

इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मृगांका सिंह का टिकट काट कर गंगोह से विधायक प्रदीप चौधरी को प्रत्याशी बनाया है. प्रदीप को टिकट मिलने के तुरंत बाद ही मृगांका के समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था.

जानकार बताते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं के हस्तक्षेप के बाद कैराना में सब कुछ ठीकठाक दिखाने का प्रयास तो हो रहा है लेकिन मृगांका समर्थक नहीं चाहते हैं कि प्रदीप चुनाव जीतें.

उपचुनाव में मृगांका सिंह को हराने वाली तबस्सुम हसन को ही गठबंधन ने फिर से उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने इस सीट पर पांच बार के विधायक रहे हरेंद्र मलिक को उतारा है.

सहारनपुर सीट भी फिर से जीत हासिल करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है. इस सीट पर कांग्रेस के इमरान मसूद बीजेपी के राघव लखन पाल से पिछला चुनाव महज़ 65 हज़ार वोटों से हारे थे.

बीजेपी व कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशियों को ही इस चुनाव में भी उतारा है जबकि गठबंधन की ओर से मीट कारोबारी हाजी फ़ज़लुर रहमान मैदान में हैं. रहमान बीएसपी के टिकट पर पिछला मेयर का चुनाव भी लड़े थे और महज़ दो हज़ार वोटों से हारे थे.

बिजनौर सीट पर भी इस चुनाव में मुकाबला एकतरफा न होकर त्रिकोणीय हो गया है. पिछले चुनाव में बीजेपी को इस सीट पर करीब पांच लाख वोट मिले. सपा व बसपा की बात करें तो दोनों को मिलाकर इस सीट पर पांच लाख के करीब वोट हासिल हुआ था.

बीजेपी ने इस सीट पर कुंवर भारतेंदु को फिर से मैदान में उतारा है. जबकि गठबंधन ने मलूक नागर को टिकट दिया है. नागर पिछला चुनाव बीएसपी के टिकट पर लड़े थे और उन्हें करीब सवा दो लाख वोट हासिल हुए थे जबकि सपा को करीब दो लाख तीस हज़ार वोट मिले थे.

बीएसपी से कांग्रेस में आए नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को कांग्रेस ने टिकट दिया है.

दो सीटों पर बीजेपी का आरएलडी से सीधे मुकाबला

मुज़फ़्फ़रनगर और बागपत पहले चरण की ऐसी सीटें हैं जिन पर बीजेपी का सीधे मुकाबला आरएलडी से है. इन सीटों पर आरएलडी को गठबंधन व कांग्रेस दोनों ने ही सपोर्ट दिया है.

बागपत सीट से सांसद सत्यपाल सिंह को बीजेपी ने उतारा है तो आएलडी ने जयंत चैधरी को. सत्यपाल सिंह पिछला चुनाव करीब दो लाख वोटों से जीते थे. बीजेपी सांसद को करीब सवा चार लाख वोट मिला था. जबकि सपा, बसपा व आरएलडी को मिला कर करीब सवा पांच लाख वोट हासिल हुआ था.

पिछले चुनाव में आरएलडी अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह करीब दो लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे जबकि सपा प्रत्याशी दो लाख तेरह हज़ार वोट पाकर दूसरे स्थान पर थे.

मुज़फ़्फ़रनगर लोकसभा सीट से आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह ख़ुद मैदान में हैं. इस सीट से बीजेपी सांसद संजीव बालियान फिर से मैदान में हैं. पिछले चुनाव में बालियान को क़रीब साढ़े छह लाख वोट मिले थे. जबकि सपा व बसपा को मिला कर साढ़े चार लाख वोट ही मिल पाए थे.

स्थानीय निवासी विकास बालियान कहते हैं कि समूचे पश्चिमी यूपी में इस बार स्थितियां पिछले लोकसभा चुनाव जैसी नहीं हैं. पिछले लोकसभाा चुनाव में दंगा एक बडा फैक्टर था. जिसका पूरा फायदा बीजेपी के प्रत्याशियों को मिला था. लेकिन इस चुनाव में गन्ने का भुगतान, विकास कार्य और छोटे-छोटे स्थानीय मुद्दे प्रभावी हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार ने गन्ने का मूल्य एक रुपये भी नहीं बढ़ाया है. जिसके चलते समूचे क्षेत्र के किसानों में सरकार को लेकर आक्रोश है. सड़कों का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है. मुज़फ़्फ़रनगर से शामली जाने वाली रोड पूरी तरह जर्जर है.

विकास कहते हैं कि केंद्र व राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद लोगों को काफी उम्मीद थी, खासकर किसानों को. जनप्रतिनिधियों का किसानों के प्रति जो रवैया रहा है वही नाराज़गी का सबसे बड़ा कारण बना. ऐसे में पहले चरण की आठ सीटों का चुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)