बिहार में महागठबंधन के लिए कितने फायदेमंद साबित होंगे ‘सन ऑफ मल्लाह’

बिहार में ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से मशहूर मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ थी. इस बार मुकेश साहनी महागठबंधन का हिस्सा हैं.

मुकेश साहनी. (फोटो साभार: ट्विटर)

बिहार में ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से मशहूर मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी साल 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ थी. इस बार मुकेश साहनी महागठबंधन का हिस्सा हैं.

मुकेश साहनी (बीच में). (फोटो साभार: ट्विटर)
मुकेश साहनी (बीच में). (फोटो साभार: ट्विटर)

पटना: पांच साल पहले तक बॉलीवुड फिल्मों के लिए सेट डिज़ाइनर तक अपनी पहचान रखने वाले मुकेश साहनी उर्फ ‘सन ऑफ मल्लाह’ अब एक ऐसे सियासतदां के तौर पर जाने जाते हैं, जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी पार्टी के साथ राजनीतिक समझौते करने से गुरेज़ नहीं करते हैं.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह एनडीए का हिस्सा थे और इस चुनाव के एक साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें एनडीए ने स्टार प्रचारक बना दिया था. लेकिन, अब वह महागठबंधन के साथ हैं. सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहत मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को मल्लाह बिरादरी बहुल मधुबनी, खगड़िया और मुज़फ़्फ़रपुर लोकसभा सीटें दी गई हैं.

मूल रूप से दरभंगा के सुपौल बाज़ार में रहने वाले 38 वर्षीय मुकेश साहनी 18 बरस की उम्र में ही अपने पिता के पुश्तैनी पेशे (मछलियां पकड़ कर बेचना) को छोड़कर मुंबई चले गए थे.

शुरुआती दौर में उन्होंने वहां परचून की दुकान में नौकरी की. मगर कुछ दिन बाद ही वह उकता कर लौट आए. यहां लौटे तो पुश्तैनी पेशा उनका इंतज़ार कर रहा है, जिससे उन्हें नफ़रत थी.

लिहाजा वह फिर भाग गए. इस बार भागे तो मुंबई में उनकी मुलाकात फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म की सेट डिज़ाइनिंग टीम के एक सामान्य-से कर्मचारी से हुई और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बहुत जल्द मुंबई में उन्होंने मुकेश सिने आर्ट नाम से अपनी एजेंसी खोल ली जो अब भी चल रही है. मगर वह राजनीति की तरफ मुड़ चुके हैं.

उनके क़रीबी बताते हैं कि वर्ष 2013 में छठ के मौके पर जब वह अपने पुश्तैनी गांव आए, तो मल्लाह बिरादरी के ही कुछ लोगों ने उनसे अपील की कि वे उनके लिए कुछ करें. इसके बाद उन्होंने कुछेक सभाएं कीं.

सभाओं के लिए स्टेज बनाने से लेकर अपने समर्थकों के खाने-पीने तक में उन्होंने ख़ूब ख़र्च किया. सभाओं में उन्होंने मल्लाह समुदाय के सम्मान और हक-ओ-हुकूक की बात की जिस कारण अति पिछड़ा वर्ग में आने वाली मल्लाह बिरादरी मुकेश साहनी को बहुत उम्मीद से देखने लगी.

मल्लाह समुदाय में मुकेश साहनी को लेकर बने क्रेज़ के चलते भाजपा ने 2014 के आम चुनाव में उनका समर्थन लिया. वर्ष 2014 और 2015 में उन्होंने भाजपा के लिए काम भी किया.

बाद में उन्होंने कहा है कि भाजपा ने जिन वादों को पूरा करने का आश्वासन दिया था, उनसे मुकर गई. पिछले साल ही उन्होंने पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा आयोजित की और अपनी अलग राजनीतिक बनाने का ऐलान किया है. इस पार्टी को विकासशील इंसान पार्टी का नाम दिया. बाद में लालू प्रसाद यादव के कहने पर वह महागठबंधन का हिस्सा बने.

बिहार में एक रैली के दौरान राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश साहनी. (फोटो साभार: ट्विटर)
बिहार में एक रैली के दौरान राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश साहनी. (फोटो साभार: ट्विटर)

मल्लाह बिरादरी में दो दर्जन उपजातियां हैं और अनुमान के मुताबिक बिहार में करीब 10 फीसदी आबादी मल्लाहों की है. खासकर उत्तर बिहार में जहां नदियां अधिक हैं, वहां इनका वोट हार-जीत में बड़ा किरदार निभाता है.

मुकेश साहनी खुले तौर पर स्वीकार करते हैं कि उनकी राजनीति उनकी बिरादरी के लिए है. वर्ष 2014 में ट्विटर पर आने वाले मुकेश साहनी अपने बायो में लिखते हैं, मेरे जीवन का उद्देश्य निषाद समुदाय को विशेष तरजीह देते हुए एक कल्याणकारी राज्य के विकास को समर्थन देना है.

दरअसल, जाति केंद्रित बिहार की सियासत में देखा जाए, तो कुर्मी से लेकर कुशवाहा, यादव व अन्य जातियों के नेताओं ने अपनी बिरादरियों को एकजुट कर राजनीति की. मगर, मल्लाहों की अपनी कोई पार्टी नहीं थी. अलबत्ता लालू प्रसाद यादव ने अपनी पार्टी में मल्लाह समुदाय के कुछ नेताओं को तरजीह देकर उनका वोट ज़रूर बटोरा.

लालू प्रसाद यादव ने ही मल्लाह बिरादरी से आने वाले स्वाधीनता सेनानी शहीद जुब्बा साहनी के नाम पर पार्क बनवाया और उनका शहादत दिवस मनाना शुरू किया.

यही नहीं, उन्होंने गंगा नदी के तट पर लंबे समय से चली आ रही जमींदारी प्रथा भी ख़त्म की. हालांकि, ऐसा उन्होंने तब किया जब मछुआरों ने इसके ख़िलाफ़ लंबे समय तक लड़ाई लड़ी.

लालू यादव के शासनकाल में ही सरकारी तालाबों का पट्टा मछुआरों को दिया गया. लंबे समय तक कैप्टन जयनारायण निषाद भी मल्लाहों के लीडर रहे. लेकिन, उन्होंने अपनी कोई पार्टी नहीं बनाई, बल्कि राजद के साथ अपना सियासी करिअर शुरू कर जदयू और फिर भाजपा में चले गए.

वह मल्लाहों के वोट बैंक को ही साध कर मुज़फ़्फ़रपुर संसदीय सीट से पांच बार सांसद चुने गए. पिछले साल उनका निधन हो गया. उनके पुत्र अजय निषाद भाजपा के टिकट पर मुज़फ़्फ़रपुर से ही सांसद हैं.

जानकार बताते हैं कि विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और मुकेश साहनी के रूप में मल्लाह बिरादरी को अपनी पार्टी और अपना नेता मिला है, इसलिए उनको मुकेश साहनी से बहुत उम्मीदें हैं.

राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन मनोवैज्ञानिक पहलू की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘दरअसल मल्लाहों के लिए मुकेश साहनी सशक्तिकरण का प्रतीक बनकर उभरे हैं. मल्लाह समुदाय अति पिछड़ा समुदाय है ये काफी गरीब हैं. मल्लाहों में करोड़पति आपको ढूंढे से मिलेगा. लेकिन, मुकेश साहनी करोड़पति हैं और मल्लाहों के लिए यह गर्व की बात है. मुकेश यंग भी हैं और मछुआरों के अधिकारों को लेकर खुलकर अपनी बात रखते हैं.’

दरभंगा, खगड़िया, मुज़फ़्फ़रपुर, मधुबनी और भागलपुर लोकसभा क्षेत्र में मल्लाहों का वोट निर्णायक होता है. इनमें मधुबनी, खगड़िया और मुज़फ़्फ़पुर सीट विकासशील इंसान पार्टी की झोली में गई हैं.

मुकेश साहनी ख़ुद खगड़िया से चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट से पिछले चुनाव में लोजपा उम्मीदवार महबूब अली कैसर ने जीत दर्ज की थी. चूंकि उस वक़्त मुकेश साहनी एनडीए का हिस्सा थे, तो मल्लाहों का वोट भी महबूब अली को मिला था. इस चुनाव में मोदी की लहर के बावजूद राजद के कृष्णा यादव को 2,37,803 वोट मिला था और वह दूसरे स्थान पर थे.

बिहार में एक सभा के दौरान मुकेश साहनी. (फोटो साभार: ट्विटर)
बिहार में एक सभा के दौरान मुकेश साहनी. (फोटो साभार: ट्विटर)

मुकेश साहनी अब महागठबंधन का हिस्सा हैं. ऐसे में उन्हें मल्लाहों के साथ ही राजद का यादव व मुस्लिम वोट मिलने की उम्मीद है. खगड़िया में तीसरे चरण में 23 अप्रैल को वोटिंग होगी.

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुकेश साहनी की सियासी हैसियत उतनी नहीं है कि उन्हें तीन सीटें दे दी जाएं, लेकिन राजद नेताओं का कहना है कि मुकेश साहनी के चलते मल्लाहों का वोट महागठबंधन को मिलेगा, जो कई सीटों पर जीत में मददगार साबित हो सकता है.

जानकार बताते हैं कि अति पिछड़ा समुदाय में मल्लाह सबसे आक्रामक माने जाते हैं और वोटिंग को लेकर उनका नज़रिया स्पष्ट रहा है. पिछले चुनाव में इस समुदाय ने एनडीए को वोट दिया था, लेकिन इस बार वे मुकेश साहनी की पार्टी को तरजीह देंगे.

भागलपुर के कहलगांव में मछुआरों के एक नेता कैलाश साहनी ने कहा, ‘पिछली बार हम एनडीए के साथ थे, मगर इस बार हमें अपनी पार्टी पार्टी और नेता मिला है, इसलिए हम उन्हें ही वोट देंगे.’

जानकारों का कहना है कि मुकेश साहनी की पार्टी को मिलीं तीन सीटों में मुज़फ़्फ़रपुर में मल्लाहों का वोट बंटेगा क्योंकि भाजपा ने मौजूदा सांसद अजय निषाद को टिकट दिया है. अन्य दो सीटों खगड़िया और मधुबनी में से मधुबनी सीट पर यादव वोट बंट सकता है कि क्योंकि भाजपा ने वरिष्ठ नेता हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र को टिकट दिया है. मधुबनी और मुज़फ़्फ़रपुर में पांचवें चरण में 6 मई को वोट डाले जाएंगे.

वरिष्ठ पत्रकार दीपक मिश्रा कहते हैं, ‘खगड़िया और मधुबनी में मल्लाहों का वोट मुकेश साहनी की पार्टी के उम्मीदवारों को मिलेगा ही, अगर यादव और मुसलमान जो राजद को कोर वोटर हैं, उनका वोट ट्रांसफर हो जाए, तो महागठबंधन को फायदा होगा.’

उन्होंने कहा, ‘महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी भी हैं, तो कुशवाहा और मांझी समुदाय का वोट भी मिलेगा. और अब तक का फीडबैक बता रहा है कि वोट ट्रांसफर हो रहा है.’

देखा जाए, तो महागठबंधन में अलग-अलग बिरादरियों से ताल्लुक़ रखने वाली पार्टियों को टिकट देकर जातीय समीकरण साधने की पुरज़ोर कोशिश की गई है, जिसका फायदा चुनाव में मिल भी सकता है, लेकिन इसके बाद पाला बदलने की भी गुंजाइश बनी रहती है.

मुकेश साहनी, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी पहले एनडीए में भी रह चुके हैं और इनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. अगर इन्हें कुछ सीटों पर जीत मिल जाती है और चुनाव में एनडीए मैजिक फिगर से चार-पांच सीटें कम लाती हैं, तो बहुत संभव है कि वे महागठबंधन को डिच कर दें.

इस आशंका को भांपते हुए ही सीटों पर समझौते को लेकर चल रही उठापटक के बीच राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा था कि छोटे दलों को सीटों के लिए सौदेबाज़ी करना छोड़ कर ऐसे उम्मीदवार लाने चाहिए, जो जिताऊ हो और उन्हें राजद के सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहिए. लेकिन, जातीय समीकरण को साधने के लिए इन छोटी पार्टियों के आगे राजद को झुकना पड़ा. अब देखना ये है कि महागठबंधन को इसका कितना फायदा मिलता है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)