आतंकवाद के आरोपी की उम्मीदवारी से शिवराज सिंह चौहान समेत मध्य प्रदेश भाजपा परेशान हैं.
भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार के तौर पर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रहीं प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने अभिभावकों के लिए ‘आतंक’ ही साबित हो रही हैं.
उनके प्रमुख अभिभावक पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, जिन्हें भोपाल से चुनाव लड़ने से इनकार करने की सजा के तौर पर आतंकवाद की आरोपी उम्मीदवार का स्वागत करने के लिए मजबूर किया गया, इससे बुरी तरह चिढ़े हुए हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना है.
अपने सौम्य स्वभाव के लिए जाने जाने वाले शिवराज सिंह चौहान को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा मुंबई आतंकी हमले के दौरान शहीद हुए हेमंत करकरे को श्राप देने और उनकी मौत की कामना करने संबंधी बयान के बाद मीडिया को दिए जाने वाले शुरुआती साक्षात्कारों के दौरान प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया.
हेमंत करकरे उस आतंक निरोधी दस्ते (एटीएस) के मुखिया थे, जिसने 2008 के मालेगांव धमाके मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया था.
यह तथ्य कि एक तरह से प्रज्ञा सिंह लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी अजमल कसाब द्वारा की गई करकरे की हत्या पर खुशी प्रकट कर रही थीं, भाजपा के लिए शर्मिंदगी की एक बड़ी वजह बन गया. जिसके बाद प्रज्ञा को उस नुकसान पहुंचाने वाले बयान को वापस लेना पड़ा.
भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई, जिसने प्रज्ञा ठाकुर के नामांकन का पुरजोर विरोध किया था, शाह से इस विवाद के बाद कहना चाहती थी कि ‘हमने आपको पहले ही बताया था’, पार्टी इस तरह से काम नहीं करती.
सूत्रों का कहना है, उलटे इसकी जगह शाह ने उन्हें यह कहते हुए आड़े हाथों लिया कि उन्होंने ‘राष्ट्र-विरोधी’ मीडिया को एक ‘भोली-भाली’ साध्वी को मूर्ख बनाने का मौका दिया.
कुछ दिन पहले जब टीवी चैनल उनके साथ एक के बाद एक्सक्लूसिव कार्यक्रम कर रहे थे, चौहान वहां मौजूद थे और बेचारगी से उन्हें राजनीतिक दिशा दिखाने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि सूत्रों ने द वायर को बताया कि उनकी कोशिशों को अनसुना कर दिया गया.
जब भी वे कोई ऐसा निर्देश देते थे, जो उन्हें (प्रज्ञा ठाकुर को) पसंद नहीं आता, तो वे ‘समाधि’ [trance] में चली जातीं और उससे वापस आकर वे चौहान से काफी रुखा होकर कहतीं कि वे ‘ठाकुरजी’ से बात कर रही थीं और अब उन्हें आगे बढ़ने के लिए उनका आशीर्वाद हासिल है. और फिर वे वही कहती थीं, जो उनका मन करता था.
चौहान इससे आहत हुए. आखिर तीन बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान जैसे अभिभावक की सलाह का मूल्य भी क्या है, जब उनका उम्मीदवार सीधे भगवान से जुड़ा हो.
बताया जाता है कि एक दूसरे साक्षात्कार के दौरान चौहान ने उनसे भोपाल की बेहतरी के लिए अपनी योजना पर केंद्रित रहने की सलाह देने की कोशिश की- लेकिन तब तक ठाकुर गोशाला की तरफ जा चुकी थीं, जहां टीवी कैमरा उनके पीछे-पीछे था.
वे अपना यह ज्ञान साझा करना चाहती थीं कि गाय को सहलाने से ब्लड प्रेशर का इलाज किया जा सकता है. उसके बाद उन्होंने ‘गो-मूत्र’ पर अपना जबरदस्त ज्ञान दिया कि गो-मूत्र से कैंसर का इलाज हो सकता है. उस समय गो-मूत्र उनकी कुर्सी के बगल में प्रमुखता से रखा हुआ था.
अवाक रह गए चौहान ने टीवी संपादकों से इल्तजा की कि क्या वे कुछ (खासतौर पर शर्मिंदा करनेवाले) हिस्सों को संपादित कर सकते थे. लेकिन ठाकुर ने उन्हें तुरंत टोकते हुए कहा कि उनके जवाब ‘ठाकुरजी’ द्वारा बताए गए हैं.
जिस तरह से स्तंभकारों द्वारा अक्सर ‘फ्रिंज’ कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, प्रज्ञा भी उसी तरह भाजपा और व्यापक तौर पर संघ परिवार का हिस्सा बन चुकी हैं.
ठाकुर को चुनाव में उतारना- और मोदी-शाह द्वारा इसे लेकर विपक्ष को यह ताना मारना कि यह ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल करने की सजा है- यह दिखाता है कि भाजपा कितनी जहरीली हो चुकी है.
आरएसएस प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर उनके सच्चे समर्थकों और भाजपा के कट्टर मतदाताओं को खुश करना चाहती थी. लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर यह कट्टर सच्चे समर्थक हैं कौन, जिन्हें खुश करने में संघ परिवार हमेशा लगा रहता है?
आखिर वह कौन-सा मतदाता वर्ग है जो योगी आदित्यनाथ और प्रज्ञा ठाकुर जैसे लोगों को अपने नेता के तौर पर देखना चाहता है?
मोदी ने आदित्यनाथ को भारत की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य का मुख्यमंत्री मनोनीत किया- वोटर्स ने उन्हें नहीं चुना था. आरएसएस ने आतंकवाद की आरोपी की उम्मीदवारी को थोपा- भोपाल से ऐसी कोई मांग नहीं उठी थी.
इससे पहले, प्रज्ञा ठाकुर की पूर्ववर्ती ‘साध्वी’ उमा भारती ने कांग्रेस से मध्य प्रदेश की सत्ता छीनी थी. लेकिन वे एक प्रशासक के तौर पर इतनी बुरी तरह से नाकामयाब साबित हुईं कि उनसे जल्दी-जल्दी में पल्ला छुड़ाया गया और उनकी जगह मुख्यधारा के नेता चौहान को लाया गया.
इस लेख के लिए मैंने भाजपा के जिन वरिष्ठ नेताओं से बात की उनमें से कई ठाकुर की उम्मीदवारी और उनकी मूर्खतापूर्ण टिप्पणियों से काफी ज्यादा असहज थे. उनमें से एक ने कहा, ‘इसके साथ आरएसएस ने उस आखिरी रेखा को पार कर लिया है, जहां से वापसी संभव नहीं है. योगी (आदित्यनाथ) और प्रज्ञा से पीछे लौटना मुमकिन नहीं है. मोहन भागवत और भैयाजी जोशी भी अपने बनाए गए कट्टर दैत्यों द्वारा निगल लिए जाएंगे.’
उस नेता ने, जो मोदी सरकार में मंत्री भी हैं, ने इस बात पर जोर दिया कि अपने कट्टर हिंदुत्व के भाषणों के लिए जाने जाने वाले आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश में कोई सुनने वाला नहीं बचा है. वे आजकल कट्टर हिंदुत्व के चेहरे के बतौर पूरे देश में घूम रहे हैं.
2019 के लिए के एकमात्र मुद्दे के तौर पर कट्टर हिंदुत्व को उठाना आरएसएस और मोदी-शाह का साझा फैसला था. शायद इस वजह से कि मोदी अपने कामकाज के रिकॉर्ड के आधार पर तो चुनावी मझधार को पार नहीं कर सकते हैं, कट्टर हिंदुत्व के मुद्दे पर दांव खेलने का फैसला किया गया.
इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि संघ ने नेताओं की जो नई फसल तैयार की है, वे पीट-पीटकर मार देने वाली भीड़ के गिरोहों के नेता होंगे. इसके साथ ही भाजपा-संघ का रहा-सहा मुखौटा भी उतर गया है.
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