जयपुर शहर सीटः भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों पर भारी जातीय समीकरण

राजस्थान की जयपुर शहर सीट से भाजपा ने रामचरण बोहरा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने ज्योति खंडेलवाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.

जयपुर शहर सीट से भाजपा उम्मीदवार रामचरण बोहरा और कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)

राजस्थान की जयपुर शहर सीट से भाजपा ने रामचरण बोहरा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने ज्योति खंडेलवाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया है.

जयपुर शहर सीट से भाजपा उम्मीदवार रामचरण बोहरा और कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)
जयपुर शहर सीट से भाजपा उम्मीदवार रामचरण बोहरा और कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)

जयपुर: राजस्थान की जयपुर शहर लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी ने रामचरण बोहरा और कांग्रेस ने ज्योति खंडेलवाल को मैदान में उतारा है. इन दोनों प्रत्याशियों के बीच असल लड़ाई इनके नाम के साथ लगे उपनाम (सरनेम) के बीच हो रही है.

दरअसल, जयपुर शहर में 1984 के बाद ब्राह्मण और वैश्य चेहरे चुनावों में आमने-सामने रहे हैं. तब कांग्रेसी नेता नवलकिशोर शर्मा ने बीजेपी के सतीश चंद्र अग्रवाल को हराया था. 35 साल बाद एक बार फिर जयपुर शहर सीट पर ब्राह्मण और अग्रवाल आमने-सामने हैं.

जयपुर शहर सीट का आमतौर पर ब्राह्मण चेहरों ने ही प्रतिनिधित्व किया है लेकिन इस बार लड़ाई थोड़ी दिलचस्प होती दिख रही है, क्योंकि कांग्रेस ने इस बार जयपुर नगर निगम की पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल को टिकट थमा दिया है.

ज्योति खंडेलवाल ने 2009 में भाजपा की सुमन शर्मा को नगर निगम के चुनाव में हराया था. इसीलिए ज्योति को टिकट देने की वजह से इस बार जयपुर शहर सीट के समीकरण बदलते दिख रहे हैं लेकिन कांग्रेस की राह इतनी भी आसान नहीं है.

कांग्रेस का मानना है कि वैश्य प्रत्याशी होने के कारण वैश्यों के वोट एकतरफ़ा उन्हें मिलेंगे और मुसलमान-दलित वोट आसानी से उनके पाले में आ ही रहा है.

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर इस सीट से लड़े रामचरण बोहरा नरेंद्र मोदी और जनरल वीके सिंह के बाद तीसरे सबसे ज़्यादा मतों से जीते हुए उम्मीदवार रहे हैं.

बोहरा ने 2014 में कांग्रेस के महेश जोशी को रिकॉर्ड 5 लाख 39 हज़ार 345 वोटों के अंतर से हराया था. यह राजस्थान की पहली और देश में बीजेपी की देश तीसरी सबसे बड़ी जीत थी.

यह पहली बार है कि कांग्रेस ने जयपुर शहर सीट के लिए किसी महिला को अपना प्रत्याशी बनाया है. इससे पहले 1971 में स्वतंत्र पार्टी से जयपुर के पूर्व राजघराने की गायत्री देवी ने चुनाव लड़ा था. इतने साल बाद इस सीट पर महिला प्रत्याशी का उतरना ज्योति खंडेलवाल के पक्ष में जा रहा है.

बीजेपी के बोहरा पांच साल सांसद रहने के बाद चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवाद का सहारा ले रहे हैं जबकि कांग्रेस केंद्र की मोदी सरकार की विफलताओं को ही मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही है.

बता दें कि बालाकोट में भारतीय सेना की एयरस्ट्राइक के बाद बोहरा ने सेना और भारत सरकार को बधाई देते हुए पूरे जयपुर शहर को पोस्टर-बैनरों से पाट दिया था, लेकिन चुनाव आयोग के नोटिस के बाद इन्हें हटा दिया गया.

बीजेपी और आरएसएस से जुड़े नेता बोहरा की जीत को लेकर तो आश्वस्त हैं लेकिन जीतने की वजह के लिए उन्हें तीसरे नंबर पर रखते हैं. पहला मोदी चेहरा, दूसरा आरएसएस कैडर और तीसरे नंबर पर सांसद रहते हुए बोहरा द्वारा किए गए विकास के काम.

जबकि कांग्रेसी नेता राजस्थान में मोदी फैक्टर को नकारते हुए कह रहे हैं कि 2014 की तरह इस बार कुछ भी स्पष्ट नहीं है. कांग्रेस मिशन 25 लेकर चल रही है और ज़्यादातर सीटें जीत रही है.

जातीय समीकरण

जयपुर शहर लोकसभा सीट पर ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य बिरादरी का बराबर प्रभाव है, लेकिन ज़्यादातर ब्राह्मण उम्मीदवार ही यहां से जीत हासिल किए हैं. इस सीट पर मुस्लिमों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ एक चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ एक चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)

जयपुर सीट पर मतदाताओं की संख्या लगभग 20 लाख है और इनमें से आधे वोटर 40 साल से कम उम्र के हैं. 2014 लोकसभा चुनावों के अनुसार शहर में 10,47,468 पुरुष और 9,10,350 महिला मतदाता थे.

कांग्रेस को वैश्य, मुस्लिम और दलित वोट मिलने की उम्मीद है जबकि बीजेपी शहर के प्रभावशाली तबके जैसे व्यापारी, बड़े मंदिरों के प्रभाव में आने वाले वोटरों की आस लगाकर बैठी है. इसके अलावा मोदी और राष्ट्रवाद जैसे राष्ट्रीय मुद्दों से भी प्रदेश बीजेपी फायदा देख रही है.

आंकड़ों में भाजपा और कांग्रेस

जयपुर शहर की जनता ने अब तक 16 आम चुनावों में से 10 बार ब्राह्मण सांसद को चुना है. तीन बार वैश्य और तीन बार राजपूत समाज के प्रत्याशी को सांसद बनाकर संसद में भेजा है.

वैश्य समाज के तीन सांसदों में से दो बार बीजेपी के सतीश चंद्र अग्रवाल और एक बार कांग्रेस के दौलतमल भंडारी जीते हैं. वहीं, लगातार तीन बार स्वतंत्र पार्टी से पूर्व राजपरिवार की सदस्य गायत्री देवी सांसद रही थीं. सबसे ज़्यादा नौ बार बीजेपी यहां से जीतकर संसद पहुंची है.

बीजेपी के लिए लोकसभा चुनावों के आंकड़े उसके पक्ष में रहे हैं लेकिन 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में हैं.

कांग्रेस ने 8 में से 5 विधानसभा सीटें यहां जीती हैं. हवामहल, सिविल लाइंस, किशनपोल, आदर्शनगर और बगरू विधानसभा सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी, जबकि विद्याधर नगर, मालवीय नगर और सांगानेर सीट पर भाजपा ने जीती थी.

विधानसभा चुनावों में बीजेपी को इन आठ सीटों पर कांग्रेस से महज़ 14,315 वोट ही ज़्यादा मिले थे. ऐसे में कांग्रेस को जीतने के लिए बीजेपी की जीती तीनों सीटों के वोटरों को अपनी ओर खींचना होगा. इसी तरह बीजेपी को कांग्रेस की पांचों सीटों से वोटरों को अपने खेमे में आना पड़ेगा.

बीजेपी नेता नीरज जैन मानते हैं कि जयपुर शहर में हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी ही जीतेगी. जैन कहते हैं, ‘पिछली बार बोहरा 5 लाख से ज़्यादा वोट से जीते हैं. हम केंद्र में मोदी सरकार के किए विकास कार्य, दूसरा देश के लिए वोट मांग रहे हैं. तीसरा जयपुर हमेशा से बीजेपी की सीट रही है तो हमारी जीत तय है.’

बीजेपी के प्रवक्ता जितेंद्र श्रीमाली नीरज जैन से थोड़ा उलट बोलते हैं. श्रीमाली कहते हैं, ‘हम वोट मोदी के नाम पर और आरएसएस कैडर के दम पर मांग रहे हैं. बोहरा वोट मांगने के लिए तीसरे नंबर पर हैं.’

वहीं, कांग्रेस की प्रदेश उपाध्यक्ष और प्रवक्ता अर्चना शर्मा कहती हैं, ‘पिछली बार हार का मार्जिन ज़्यादा था लेकिन इस बार मोदी फैक्टर नहीं है. इसके अलावा जनता में अंडर करंट है क्योंकि लोगों से 5 सालों में सांसद का संवाद ही नहीं रहा. 2014 में काठ की हांडी चढ़ चुकी जो इस बार नहीं चढ़ रही. ये सही है कि जयपुर शहर सीट पर हमेशा ब्राह्मण चेहरा रहा है लेकिन इस बार पार्टी ने कुछ सोचकर ही खंडेलवाल को टिकट दिया है. हमें महिला प्रत्याशी होने का फायदा भी मिल रहा है.’

जयपुर में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा उम्मीदवार रामचरण बोहरा. (फोटो साभार: फेसबुक)
जयपुर में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा उम्मीदवार रामचरण बोहरा. (फोटो साभार: फेसबुक)

वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ कहते हैं, ‘इस बार बीजेपी के वोट बैंक के सामने एक तरफ ब्राह्मण तो दूसरी तरफ वैश्य है, जो कि बीजेपी का कोर वोट बैंक है इसीलिए असली परीक्षा तो शहर के वोटर के सामने है. बीजेपी का मजबूत पक्ष ये है कि जयपुर शहर पारंपरिक रूप से उनकी सीट रही है. समाज के प्रभावशाली तबकों का सपोर्ट बीजेपी को यहां मिलता आया है.’

वे कहते हैं, ‘ज्योति खंडेलवाल भी अच्छी प्रत्याशी है लेकिन कांग्रेस का संगठन बीजेपी की तरह ज़मीन पर नहीं होता. दलित, मुसलमान और कच्ची बस्ती का वोट कांग्रेस के लिए जा सकता है. रैगर, खटीक जैसा वर्ग हमेशा बंटता है. हालांकि इस बार बीजेपी को हर बार की तरह आसानी से ये सीट हाथ नहीं लगने वाली है.’

दैनिक भास्कर जयपुर में विशेष संवाददाता एवं वरिष्ठ पत्रकार आनंद चौधरी का मानना है कि, ‘कांग्रेस अगर ज्योति खंडेलवाल की जगह किसी अन्य महिला को टिकट देती तो यह सीट आसानी से उसके खाते में जा सकती थी, लेकिन अब लड़ाई टक्कर की है. जयपुर में ब्राह्मण वोट वैश्य वोटों से ज़्यादा हैं. दूसरा, जब ज्योति जयपुर की मेयर बनी थीं तब यहां कांग्रेसी सांसद था. सांसद का वोट निगम चुनावों में सीधे ज्योति को ट्रांसफर हुआ था. इस बार भले विधानसभा में 5 सीटें कांग्रेस के पास हैं लेकिन सबसे ज़्यादा लीड देने वाली सीट मालवीय नगर और सांगानेर पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है. तीसरा, कांग्रेस प्रत्याशी हाल ही में एक चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में फंस चुकी हैं. बीजेपी चुनाव नज़दीक आते ही इसे भुनाएगी और चौथा सबसे बड़ा ख़तरा कांग्रेस की आपसी गुटबाज़ी है, क्योंकि शहर के ज़्यादातर नेता ज्योति के ख़िलाफ़ हैं.’

भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों का राजनीतिक करिअर

भाजपा के उम्मीदवार रामचरण बोहरा 1995 से 2000 तक जयपुर ज़िला प्रमुख रहे हैं और भाजपा के प्रदेश महामंत्री भी रह चुके हैं. 2009 में पहली बार सांसद बने और रिकॉर्ड 5.39 लाख वोटों से जीत हासिल की थी.

दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल 2004 में जयपुर नगर निगम की पार्षद रहीं और इसके बाद 2009 में करीब 15 हज़ार वोटों से बीजेपी की सुमन शर्मा को हराकर मेयर बनीं. इसके अलावा ज्योति राजस्थान प्रदेश कांग्रेस की महासचिव भी हैं.

घनश्याम तिवाड़ी का कांग्रेस में आना फायदेमंद होगा या नहीं

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के महेश जोशी ने दिग्गज बीजेपी नेता घनश्याम तिवाड़ी को 16,099 वोटों से हराया था. इन्हीं घनश्याम तिवाड़ी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में भारत वाहिनी पार्टी बनाकर तीसरे मोर्चे के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन पिछले ही महीने तिवाड़ी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है.

तिवाड़ी जयपुर की सांगानेर सीट से विधायकी लड़ते आए हैं, जहां फिलहाल बीजेपी के अशोक लाहोटी विधायक हैं. तिवाड़ी का ब्राह्मण चेहरा क्या कांग्रेस के काम आएगा यह अनुमान कोई राजनीतिक जानकार ठीक तरह से नहीं लगा पा रहा.

इसलिए फिलहाल यह कहना कठिन है कि तिवाड़ी कांग्रेस को कोई फायदा दिला पाएंगे क्योंकि घनश्याम तिवाड़ी को सांगानेर का वोटर विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से नकार चुके हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)