ग्राउंड रिपोर्ट: प्रतिष्ठा का सवाल बना अयोध्या का रण भाजपा के लिए जीतना इतना आसान नहीं है. स्थानीय मुद्दों को लेकर भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को वोटरों की नाराज़गी का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस ने यहां पूर्व सांसद निर्मल खत्री को टिकट दिया है. गठबंधन की ओर से सपा ने पूर्व मंत्री आनंदसेन यादव को मैदान में उतारा है.
अयोध्या: उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 39 सीटों पर चार चरणों में चुनाव खत्म हो चुका है. छह मई को पांचवें चरण का मुकाबला अवध की 14 लोकसभा सीटों के लिए है. पांचवें चरण में ही अध्योध्या भी है जो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक इस सीट को अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं. गठबंधन भी इस सीट पर भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.
राम मंदिर इस चुनाव में यहां कोई मुद्दा नहीं है. मुद्दे स्थानीय हैं और प्रदेश व केंद्र में भाजपा की ही सरकार है. ऐसे में स्थानीय मुद्दों को लेकर भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को वोटरों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ रहा है.
अयोध्या में राम मंदिर नहीं रहा मुद्दा
लोकसभा चुनाव से पूर्व राम मंदिर आंदोलन को धार देकर मजबूत मुद्दा बनाए जाने का प्रयास तो खूब हुआ लेकिन चुनाव आते आते अयोध्या में ही राम मंदिर का मुद्दा गुम सा हो गया. खुद भाजपा के बड़े नेता राम मंदिर के मुद्दे को चुनाव के समय हवा नहीं देना चाहते हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी अभी पिछले सप्ताह ही अयोध्या जिले के मायाबाजार में रैली करने पहुंचे लेकिन उन्होंने भी राम मंदिर पर बात करने के बजाय आतंकवाद और विपक्ष पर ही निशाना साधते हुए अपने पक्ष में वोट देने की अपील की.
राम मंदिर के लिए जिस कार्यशाला में पत्थर तराशे जाने का काम हो रहा है वहां भी चुनाव के समय शांति ही है. कार्यशाला के सुपरवाइजर अन्नू भाई सोमपुरा बताते हैं कि पिछले छह महीने से पत्थर आए ही नहीं हैं.
सरयू के घाट पर नाव चला कर परिवार का पेट पालने वाले मिथुन माझी कहते हैं कि राम के नाम पर पूरी दुनिया में लोग अयोध्या को जानने तो लगे हैं लेकिन अयोध्या में मंदिरों व घाटों का जिस तरह विकास होना चाहिए वो अभी तक नहीं हुआ है.
अयोध्या के घाटों पर मिथुन जैसे एक दो नहीं बल्कि साठ ऐसे युवक हैं जो आने वाले तीर्थयात्रियों को नाव में बिठा कर सरयू नदी में घुमाने का काम करते हैं. इन सब का एक ही कहना है कि जिस तरह अयोध्या का नाम हुआ है उसी तर्ज पर यदि अयोध्या को संवारने का काम हो जाए तो तीर्थयात्रियों के आने में भी बढ़ोतरी होगी, जिससे यहां के लोगों को भरपूर रोजगार भी मिलेगा.
सरयू नदी के घाट पर लाखों दीप जला के दीपावली में दीपोत्सव का आयोजन सरकार की ओर से किया जाता है. खुद पीएम मोदी ने भी अपनी रैली में अयोध्या के दीपोत्सव का जिक्र करते हुए इसे सरकार की उपलब्ध्यिों में गिनाया.
सरकार के इस प्रयास की सराहना स्थानीय लोग भी करते हैं लेकिन राम की पौड़ी हो चाहे घाट, सभी जगहों पर गंदगी और साफ सफाई का अभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है. राम की पौड़ी में जो पानी भरा है, गंदगी के कारण उसका रंग काला हो रहा है.
सरकारी लापरवाही का आलम यह है कि पौराणिक स्थलों पर लगातार कब्जे होते जा रहे हैं. अयोध्या के रहने वाले संत व कथावाचक अखिलेश दास बताते हैं कि अयोध्या में स्थित सप्तसागर कुंड का जिक्र रामायण तक में है.
अतिक्रमण के चलते सप्तसागर कुंड आज विलुप्त हो गया है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी कुंड में भगवान राम ने समुद्र से जल मंगवाकर एकत्र कराया था.
स्थानीय मुद्दे भाजपा को पड़ रहे हैं भारी
प्रतिष्ठा का सवाल बना अयोध्या का रण भाजपा के लिए जीतना इतना आसान भी नहीं है. इस सीट पर भाजपा ने वर्तमान सांसद लल्लू सिंह पर एक बार फिर दांव लगाया है. जबकि कांग्रेस ने पूर्व सांसद निर्मल खत्री को टिकट दिया है.
गठबंधन की ओर से सपा ने यहां पूर्व मंत्री आनंदसेन यादव को मैदान में उतारा है. आनंदसेन यादव के पिता मित्रसेन यादव इस सीट से दो बार सांसद रह चुके हैं. ऐसे में इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय है.
बैरहटा गांव की सावित्री निषाद हों चाहे शहनवाजपुर की दलित फूला देवी, सभी को स्थानीय विधायक व सांसद से भरपूर नाराजगी है. नाराजगी का कारण एक ही है, वो है इस वर्ग की उपेक्षा.
सावित्री बताती हैं कि लाख प्रयास के बाद भी उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला. पूरा परिवार छप्पर के नीचे रह कर गुजारा करता है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है.
फूला देवी की पीड़ा भी कुछ ऐसी ही है. फूला देवी को सरकार की ओर से न तो कॉलोनी का आवंटन हुआ और न ही गैस चूल्हा व सिलेंडर का ही लाभ अभी तक मिला है. शहनवाजपुर के दलितों का आरोप है कि प्रधान ने ऊंची जाति के लोगों को ही आवास, पट्टे आदि का लाभ दिया है.
अमेठी व सुल्तानपुर लोकसभा सीट से सटे अयोध्या के गावों में किसानों की सबसे बड़ी समस्या आवारा पशु, खाद व बिजली है. बलारमऊ गांव के दलित नकछेद हों चाहे ओम प्रकाश, सबको इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है.
तीन लोकसभा क्षेत्रों को जोड़ने वाला ये पूरा एरिया विकास से आज भी कोसों दूर है. नकछेद कहते हैं कि पहले यूरिया की बोरी पचास किलोग्राम की आती थी जो अब घट कर 45 किलोग्राम की रह गई है.
यूरिया की मात्रा तो सरकार ने घटा दिया लेकिन उसका मूल्य नहीं घटाया. खेती व मजदूरी कर परिवार का गुजारा करने वाले ओम प्रकाश बताते हैं कि पहले केरोसिन ऑयल सस्ते राशन की दुकान से मिल जाता था लेकिन अब उसमें भी कटौती हो गई है.
ओम प्रकाश जैसे लोगों के हिस्से की केरोसिन यह कहते हुए कम कर दी गई है कि अब तो सरकार की ओर से गैस उपलब्ध कराई जा रही है. नकछेद, ओम प्रकाश और फूला देवी जैसे हजारों लोग हैं जिनके नाम पर कागजों में तो योजनाएं फर्राटा भर रही हैं लेकिन धरातल पर हाल कुछ और ही है.
क्या है सियासी समीकरण
इस सीट का सियासी समीकरण बहुत अधिक जात-पात पर आधारित नहीं है. गठबंधन हो या चाहे कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां यहां भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने प्रत्याशी के समर्थन में जहां शहर में रैली कर माहौल तैयार कर रहे हैं, वहीं बीएसपी प्रमुख मायावती देहात क्षेत्र में रैली कर वोटों के बिखराव को रोकने का प्रयास कर रही हैं.
कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल खत्री के लिए राहुल व प्रियंका गांधी भी रोड शो कर चुके हैं.
गठबंधन प्रत्याशी को सजातीय वोटरों के अलावा दलित व मुस्लिम वोटों का सहारा है. लेकिन दलितों का वोट अपने पक्ष में करना गठबंधन प्रत्याशी आनंदसेन के लिए चुनौतीपूर्ण है.
दरअसल मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र की रहने वाली शशि नाम के दलित युवती की हत्या कुछ साल पहले हुई थी. हत्या के मामले में आनंदसेन को आरोपी बनाया गया था. शशि की हत्या के आरोप में आनंदसेन को केवल मंत्री पद ही नहीं गंवाना पड़ा बल्कि जेल भी जाना पड़ा था.
शशि हत्याकांड को लेकर आज भी मिल्कीपुर व आसपास के क्षेत्र में दलितों के बीच आनंदसेन को लेकर खासी नाराजगी है.
कुमारगंज के रहने वाले शैलेन्द्र पांडेय बताते हैं कि क्षेत्र का दलित हो या मुस्लिम मतदाता, सभी गठबंधन के बजाय कांग्रेस के पाले में खड़े दिख रहे हैं. इसके पीछे पांडेय का तर्क है कि कांग्रेस प्रत्याशी की छवि साफ सुथरी है और किसी भी विवाद मे उनका नाम आज तक नहीं आया है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)