आज़मगढ़: क्या निरहुआ ‘रिक्शावाला’ अखिलेश यादव की साइकिल रोक पाएंगे?

ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वी उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ सदर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं, वहीं भाजपा ने भोजपुरी अभिनेता और गायक दिनेश लाल यादव निरहुआ को टिकट दिया है.

ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वी उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ सदर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं, वहीं भाजपा ने भोजपुरी अभिनेता और गायक दिनेश लाल यादव निरहुआ को टिकट दिया है.

Nirahua Rickshaw
दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ की फिल्म निरहुआ रिक्शावाला का एक दृश्य (फोटो साभार: यूट्यूब स्क्रीनशॉट)

छठे चरण के चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश का आज़मगढ़ जिला राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. ज़िले में दो लोकसभा सीटें हैं. पहली आज़मगढ़ सदर जो सामान्य सीट है दूसरी लालगंज जो आरक्षित सीट है.

आजमगढ़ सदर सीट से समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव गठबंधन के प्रत्याशी हैं तो भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को मैदान में उतारा है. दिनेश लाल भोजपुरी फिल्म ‘निरहुआ रिक्शावाला’ से चर्चा में आये थे.

मुलायम सिंह यादव यहां से पिछला चुनाव 63 हज़ार वोटों से जीते थे. उन्होंने बीजेपी के रमाकांत यादव को हराया था. पिछले साठ सालों के दौरान इस सीट पर 16 बार लोकसभा चुनाव हुआ है, जिसमें से 12 चुनाव यादव प्रत्याशी ही जीते हैं. आज़मगढ़ सदर हो चाहे लालगंज सुरक्षित सीट, दोनों ही जगह बीजेपी को अभी तक एक-एक बार ही जीत हासिल हुई है.

बीजेपी मोदी तो गठबंधन विकास के नाम पर मांग रहा वोट

अखिलेश यादव के कारण सदर सीट गठबंधन के लिए जहां नाक का सवाल बनी हुई है वहीं बीजेपी भी इस सीट को हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. प्रचार के अंतिम दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व मायावती तक की जनसभाएं आज़मगढ़ में हुईं.

पीएम मोदी अपनी सभा में सरकार की विकास योजनाओं के साथ-साथ ये बताना भी नहीं भूलते कि 2014 से पहले देश में कहीं भी कोई आतंकी घटना होती थी तो तार आज़मगढ़ से जुड़ते थे. वहीं अखिलेश यादव सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोज़गारी और बुनकरों की समस्याओं को अपने भाषण में स्थान देते हैं.

बीजेपी प्रत्याशी निरहुआ रोज़ एक दर्जन से अधिक नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं. उनकी हर सभा में भोजपुरी लोकगीतों को आतंकवाद, पाकिस्तान और सर्जिकल स्टाइक पर केंद्रित कर पीएम मोदी का बखान किया जा रहा है. भोजपुरी गाने के माध्यम से बीजेपी गेस्ट हाउस कांड को भी बताना नहीं भूलती.

चंद रोज़ पहले ज़िला मुख्यालय से करीब चालीस किलोमीटर दूर भुसउल चौराहे पर अखिलेश यादव के प्रचार के लिए उनके छोटे भाई सांसद धर्मेंद्र यादव आए थे. वहां से करीब एक किलोमीटर दूर निरहुआ की भी नुक्कड़ सभा थी.

आज़मगढ़ में महागठबंधन की रैली के दौरान मायावती और अखिलेश यादव. (फोटो साभार: ट्विटर)
आज़मगढ़ में महागठबंधन की रैली के दौरान मायावती और अखिलेश यादव. (फोटो साभार: ट्विटर)

दोनों ही नेताओं को सुनने के लिए समर्थक एकत्र हुए थे. निरहुआ पहले पहुंच गए. इसकी सूचना जैसे ही धर्मेंद्र यादव के कार्यक्रम में पहुंची, वहां की भीड़ दौड़ते हुए निरहुआ को सुनने के लिए पहुंचने लगी.

यह मंजर देखकर बीजेपी के स्थानीय नेता उत्साहित हो गए. स्थानीय बीजेपी नेता सुनील सिंह आने वाली भीड़ की ओर इशारा करते हुए कहा था, देखिए निरहुआ जी को सुनने के लिए लोग कैसे भागे आ रहे हैं. लेकिन निरहुआ का भाषण व लोकगीत खत्म होते ही गांव की भीड़ फिर से धर्मेंद्र यादव की सभा की ओर तेज़ी से चली जाती है. क्योंकि जब तक निरहुआ की सभा चल रही थी तब तक धर्मेंद्र यादव भुसउल चौराहा पहुंचे थे.

निरहुआ जहां भी सभा करने जा रहे हैं वहां युवाओं से लेकर महिलाओं तक की भीड़ भोजपुरी गाने सुनने के लिए जुट रही है. ये भीड़ वोट में तब्दील होगी कि नहीं, इसका सीधा जवाब बीजेपी कार्यकर्ता सुरेश चंद्र सोनकर देते हैं.

सोनकर कहते हैं, ‘पिछले लोकसभा चुनाव में हम लोगों ने भी सपा को ही वोट किया था, लेकिन इस चुनाव में हम लोग मोदी जी को लक्ष्य करके वोट कर रहे हैं.’ सोनकर भी पाकिस्तान, आतंकवाद, नोटबंदी और सर्जिकल स्टाइक को ही अपनी प्राथमिकता मानते हुए बीजेपी के पक्ष में वोट करने की बात करते हैं.

सोनौरा गांव के बीडीसी सदस्य विजय राय भी सुरेश सोनकर की बातों से ही इत्तेफाक रखते हैं.

राय कहते हैं, ‘पिछले चुनाव तक मैं भी सपा के साथ था लेकिन इस बार बीजेपी के पक्ष में वोट करूंगा.’ इसके पीछे राय का तर्क है कि पिछले चुनाव में मोदी की लहर थी इस बार सुनामी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आज़मगढ़ से भाजपा के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ. (फोटो साभार: ट्विटर)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आज़मगढ़ से भाजपा के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ. (फोटो साभार: ट्विटर)

पिछले पांच सालों में विकास क्या हुआ है, इस सवाल के जवाब में राय कोई मज़बूत तर्क नहीं दे पाते हैं. वे बस इतना कहते हैं कि कुछ हुआ है और जो बाकी है वो निरहुआ जी के जीतने के बाद हो जाएगा.

इन सबके इतर 24 वर्षीय रजनीकांत की राय अलग है. रजनीकांत प्रचार तो निरहुआ के साथ बीजेपी का कर रहे हैं लेकिन बड़ी बेबाकी से बताते हैं कि जिस हैदराबाद क्षेत्र में आप खड़े हैं पांच साल पहले यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. सड़कें नहीं थीं, दिनदहाड़े लूटपाट आम बात थी.

रजनीकांत धीरे से बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव के सांसद बनने के बाद यहां सड़कों का जाल बिछा, जिससे आवागमन आसान हुआ और अपराध पर भी अंकुश लगा.

स्थानीय युवक बृजेश विश्वकर्मा बताते हैं, ‘निरहुआ की सभाओं में भीड़ तो हो रही है लेकिन ये भीड़ उनको वोट करने के लिए नहीं बल्कि उनके भोजपुरी गाने सुनने के लिए हो रही है.’ बृजेश का तर्क है कि यहां विकास ही मुद्दा है. वे बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज हो चाहे शुगर मिल, सभी कुछ सपा के शासन काल में ही आज़मगढ़ को मिला है.

क्या है जातीय समीकरण

अखिलेश यादव के खिलाफ यादव प्रत्याशी उतार कर बीजेपी ने जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास किया है. सदर सीट पर अकेले यादव वोटरों की संख्या चार लाख के करीब है. जबकि तीन लाख के करीब दलित मतदाता हैं.

बीजेपी के स्थानीय नेताओं का आकलन है कि मुलायम सिंह यादव पिछला चुनाव महज़ साठ हज़ार वोटों से ही जीते थे. ये स्थिति तब थी जब निरहुआ जैसा प्रत्याशी उनके सामने नहीं था.

बीजेपी नेताओं का मानना है कि निरहुआ पिछले प्रत्याशी रमाकांत यादव से अधिक लोकप्रिय हैं. लिहाज़ा उन्हें यादवों के साथ-साथ दलितों और अपर कास्ट का भी वोट मिलेगा.

आज़मगढ़ ज़िले की लालगढ़ सीट से भाजपा उम्मीदवार नीलम सोनकर. (फोटो साभार: फेसबुक)
आज़मगढ़ ज़िले की लालगढ़ सीट से भाजपा उम्मीदवार नीलम सोनकर. (फोटो साभार: फेसबुक)

निरहुआ खुद भी इसी समीकरण पर चल रहे हैं. इस समीकरण को बनाते समय बीजेपी के नेता ये भूल जाते हैं कि पिछले चुनाव में बसपा ने भी इस सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा था. बसपा प्रत्याशी को ढाई लाख से अधिक वोट मिले थे.

इस चुनाव में सपा व बसपा मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में सपा व बसपा को मिलाकर छह लाख से अधिक वोट मिला था. ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी के सामने इस चुनाव में सपा व बसपा के वोटरों में सेंध लगाना आसान नहीं होगा.

द वायर से बातचीत में निरहुआ बताते हैं, ‘मैंने इस ज़िले के गांवों में एक दर्जन से अधिक फिल्मों की शूटिंग की है. लिहाज़ा स्थानीय लोग मुझे अच्छी तरह से जानते हैं. मैं चुनाव लड़ने तो पहली बार आया हूं लेकिन हर गांव और घर का बच्चा-बच्चा मुझसे परिचित है. इसका फायदा मुझे चुनाव में भी मिल रहा है.’

सभा के दौरान निरहुआ अखिलेश यादव को बड़के भइया ही कहकर संबोधित करते हैं.

पूरे प्रदेश से एकत्र हुए हैं सपाई

अखिलेश यादव के चुनाव में स्थानीय ही नहीं पूरे प्रदेश भर से सपा के नेता आज़मगढ़ में जुटे हैं. शहर हो या देहात, हर जगह सड़कों पर बाहर के नंबर वाली बड़ी-बड़ी एसयूवी गाड़ियां दौड़ती देखी जा सकती हैं.

यादव परिवार के अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव के अतिरिक्त एटा, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा आदि जगहों से सपा कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के लिए पहुंच रहे हैं.

भाजपा के लिए आसान नहीं है लालगंज की राह

आज़मगढ़ ज़िले की लालगंज लोकसभा सीट की बात करें तो बीजेपी की राह यहां आसान नहीं दिखती है. करीब 63 हज़ार वोटों से जीतकर नीलम सोनकर ने पहली बार इस सीट पर भाजपा का खाता खोला. बीजेपी ने एक बार फिर से नीलम को मैदान में उतारा है. नीलम को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश कम नहीं है.

संजरपुर बाज़ार में मेडिकल स्टोर चलाने वाले रिंकू तिवारी कहते हैं, ‘पिछले पांच सालों के दौरान सांसद ने विकास के नाम पर क्या किया ये तो हम लोगों को नहीं दिखा, हां इतना जरूर है जो लोग सांसद के इर्द-गिर्द थे उनका विकास ज़रूर हो गया है.’

आज़मगढ़ की लालगंज सीट से सपा बसपा गठबंधन प्रत्याशी संगीता आज़ाद. (फोटो साभार: फेसबुक)
आज़मगढ़ की लालगंज सीट से सपा बसपा गठबंधन प्रत्याशी संगीता आज़ाद. (फोटो साभार: फेसबुक)

दरिखा शेखपुर के प्रधान इरशाद बताते हैं, ‘यहां के किसानों को सबसे बड़ी समस्या आवारा पशुओं से है. आलम यह है कि किसानों को रात-दिन खेतों की रखवाली करनी पड़ती है.’

इरशाद का आरोप है कि सांसद ने जो भी विकास कार्य कराया है वो एक क्षेत्र तक ही सीमित है. एक निश्चित क्षेत्र के बाहर सांसद का विकास कार्य देखने को नहीं मिलता है.

स्थानीय निवासी तारिक बताते हैं, ‘युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोज़गार का कोई साधन उपलब्ध नहीं है. यही कारण है कि पूरे क्षेत्र में लगभग हर घर से एक या दो लोग आजीविका के लिए देश के दूसरे शहरों में पलायन करने को मजबूर हैं.’

तारिक कहते हैं, ‘पूरा चुनाव मुद्दा विहीन है. नेता माइक पकड़ कर बस एक दूसरे को चिढ़ाने का काम कर रहे हैं.’

तारिक साफ शब्दों में कहते हैं, ‘सपा व बसपा का गठबंधन होने के बाद बीजेपी के लिए यहां कोई स्कोप ही नहीं बचता.’

इस लोकसभा सीट पर भीम आर्मी के भी सपोर्टर देखने को मिलते हैं. एडवोकेट राजेश कुमार बताते हैं, ‘मैं सपोर्टर तो भीम आर्मी का हूं लेकिन वोट बसपा को ही करूंगा. हमारे यहां अस्पताल तो है लेकिन डॉक्टर नहीं हैं. बच्चों को इंटर की पढ़ाई के लिए करीब दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. बिजली आती तो है लेकिन उसका कोई टाइम निर्धारित नहीं है.’

1996 से लेकर अब तक इस सीट पर तीन बार बीएसपी तो तीन बार सपा प्रत्याशी जीत चुके हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को पहली बार जीत हासिल हुई. पिछले चुनाव की बात करें तो सपा व बसपा को मिलाकर इस सीट पर पांच लाख के करीब वोट मिला था जबकि बसपा प्रत्याशी को सवा तीन लाख के करीब वोट हासिल हुआ था.

बीजेपी फिलहाल इस सीट को एक बार और हासिल करने के लिए जी जान लगाए है. बीजेपी की ओर से राम विलास पासवान और अनुप्रिया पटेल जैसे नेताओं ने यहां रैली की है.

गठबंधन प्रत्याशी संगीता आज़ाद के लिए मायावती व अखिलेश यादव भी रैली कर चुके हैं. मायावती ने अपनी रैली में कहा भी है कि नमो-नमो की छुट्टी करने वाले हैं, अपने जय भीम वालों को लाने वाले हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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