विशेष रिपोर्ट: झारखंड के सिमडेगा ज़िले के करंगागुड़ी गांव में बड़ी संख्या में हॉकी खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं.
सिमडेगा: लोकसभा चुनाव की सरगर्मियों से बेफिक्र पांच लड़कियां झारखंड की राजधानी रांची से 140 किलोमीटर दूर सिमडेगा जिले के हॉकी डे बोर्डिंग सेंटर में दोपहर का भोजन कर आराम कर रही है. सभी हाल ही में बेंगलुरु में एक महीने तक चले जूनियर हॉकी इंडिया कैंप में ट्रेनिंग लेकर वापस लौटी हैं.
हालांकि वे शाम के अभ्यास के लिए चिंतित है, क्योंकि एस्ट्रो टर्फ पर पानी की सप्लाई पिछले 15 दिन से नहीं हो पा रही है. सेंटर की मुख्य प्रशिक्षक प्रतिमा बारबा बताती हैं कि जिला प्रशासन के सामने इसकी शिकायत दो बार कर चुकी हैं. लेकिन बीडीओ ने साफ कहा कि अब जो कुछ होगा, चुनाव के बाद ही होगा.
इन पांच लड़कियों में से दो अनफिट हो चुकी हैं, ऐसे में केवल तीन लड़कियां ही दोबारा ट्रेनिंग कैंप में बेंगलुरु जा रही हैं. इस बीच दो मई को जब सिमडेगा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जनसभा कर रहे थे, ठीक उसी वक्त हम इन पांचों लड़कियों के घर पहुंचे थे.
सिमडेगा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर करंगागुड़ी गांव की खासियत ये है कि यहां से अब तक लगभग तीन दर्जन अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय खिलाड़ी निकल चुके हैं.
संगीता कुमारी, सुषमा कुमारी, ब्यूटी डुंगडुंग, रेशमा सोरेंग और दीपिका सोरेंग जो अभी बेंगलुरु से लौटी हैं, इनमें से कुछ हैं. इसके अलावा सलीमा टेटे अभी महिला हॉकी सीनियर टीम की प्रमुख सदस्य है. सबसे खास बात, ये सभी एक ही स्कूल से प्राथमिक शिक्षा लेकर निकली हैं.
फादर वेनेदिक की एक पहल और बदल गई तस्वीर
यह स्कूल है उत्क्रमित मध्य विद्यालय, करंगागुड़ी. शाम के चार बजे हैं. लगभग 50 से अधिक बच्चे हॉकी स्टिक लिए अभ्यास में जुटे हुए हैं.
लड़के और लड़कियां दोनों साथ में अभ्यास कर रहे हैं. फिलहाल कोई भी खिलाड़ी खास पोजिशन पर नहीं खेल रहा है. गोलकीपर भी नहीं है. एक ही गोलपोस्ट है. खिलाड़ी बस एक दूसरे से गेंद छीन रहे हैं और लेकर भाग रहे हैं. लड़कों के पैर में जूते हैं, किसी के फटे तो किसी के पुराने.
अचानक एक लड़की हल्की-सी चीख के साथ गेंद को ड्रैग करती है. चीख की वजह उसके पैर में लगी चोट है. क्योंकि उसने जूते नहीं पहन रखे हैं. गौर करने पर देखा कि किसी भी लड़की के पैर में जूते या चप्पल नहीं हैं.
स्कूल के प्रिंसिपल फादर पौलुस बागे ने बताया, ‘इस विद्यालय के पूर्व प्राचार्य फादर वेनेदिक कुजूर ने लगभग 40 साल पहले एक नियम बनाया था. इसमें सभी छात्रों को हॉकी स्टिक लेकर ही स्कूल आना था. अगर किसी दिन कोई छात्र लाना भूल गया तो उसे स्कूल से बाहर कर दिया जाता था. किसी से पास स्टिक नहीं होता था, उसे फादर खुद तत्काल इंतजाम कर देते थे. ये नियम आज तक जारी है.’
फादर पौलुस के मुताबिक, सिमडेगा से बाहर के लोगों के लिए यह जरूर चौंकाने वाली बात हो सकती है, लेकिन फादर वेनेदिक अपने इस नियम को लागू करने में इसलिए सफल हो गए क्योंकि यहां के बच्चों के लिए पढ़ाई से ज्यादा हॉकी मैच में अव्वल आना शान की बात होती है. इनके मां-बाप पैसा केवल इसलिए जमा करते हैं कि किसी तरह हॉकी खेलने वाला खास जूता वह अपने बच्चों को दे सकें.
राउरकेला में दिहाड़ी मजदूर बेटी की हिम्मत की कहानी
ये लड़कियां कच्चा शरीफा, अमरूद को गेंद बनाकर और बांस के स्टिक से अभ्यास कर भारत के लिए खेल रही हैं. दीपिका सोरेंग (17 साल, पोजिशन- फॉरवर्ड) के पिताजी डेनियर सोरेंग उस वक्त उसे छोड़ गए जब उसकी उम्र तीन साल थी. मां फ्रीस्का सोरेंग परिवार पालने के लिए ओडिशा के राउरकेला में मजदूरी करने चली गई हैं.
भाई कुलदीप सोरेंग (30 साल) के साथ हॉकी खेलते हुए वह झारखंड की टीम में चुनी गई. साल 2017 में तमिलनाडु में आयोजित सब जूनियर चैंपियनशिप में सात मैचों में कुल 18 गोल मार वह झारखंड लौटी थी. इसका परिणाम था कि साल 2018 में इंडिया एकादश टीम की प्रमुख हिस्सा बनकर वह हॉलैंड खेलने गई.
दीपिका कहती हैं, ‘जब भी कहीं टूर्नामेंट खेलने जाती हूं, पहले पैसे का इंतजाम खुद करना पड़ता है. भैया से कहूं कि मां से कहूं, समझना मुश्किल होता है. लेकिन कभी मां तो कभी भैया इंतजाम कर पैसा देते हैं. हालांकि यह पैसा टीम प्रबंधन की ओर से बाद में लौटा दिया जाता है.’
दीपिका के भैया पहले हॉकी खेलते थे, अब किसानी और मजदूरी करते हैं.
खसी (बकरा) टूर्नामेंट से करिअर की शुरुआत करने वाली दीपिका कहती हैं, ‘मैं मेहनत कर रही हूं, भारत के लिए जरूर खेलूंगी. मेरे बस तीन सपने हैं- मां को गांव वापस लेकर आना, एक छोटा सा घर और सरकार से अनुरोध कर गांव में सड़क बनवाना.’
मुख्य सड़क से लगभग दो किलोमीटर मिट्टी के ऊबड़-खाबड़ रास्ते होकर ही दीपिका के मोहल्ले में जाया जा सकता है. यहां अभी तक बिजली नहीं है. बेंगलुरु कैंप में उनके टखने में चोट लग गई थी. इस चोट की वजह से ही वह दूसरी बार वह कैंप में नहीं जा पा रही हैं. मां को बिना बताए वह 26 मई से हरियाणा में सब जूनियर, अगले साल जूनियर नेशनल खेलने की तैयारी कर रही हैं.
क़र्ज़ लेकर बेटी को भेजते हैं हॉकी कैंप
संगीता कुमारी (18 साल, पोजिशन- फॉरवर्ड) ने 2016 में भारत की तरफ से अंडर-19 एशिया कप में बतौर सेंटर फॉरवॉर्ड हिस्सा लिया था. थाइलैंड में आयोजित इस टूर्नामेंट में भारत की तरफ से कुल 14 गोल किए गए, जिसमें आठ गोल अकेले संगीता ने मारे थे.
संगीता कहती हैं, ‘मैंने भी कच्चा शरीफा की गेंद और बांस के बने स्टिक से हॉकी खेलना शुरू किया था. साल 2012 में पहली बार जूता पहना था.’
उनके किसान पिता रंजीत मांझी खुद हॉकी खिलाड़ी रह चुके हैं. चार बकरी, दो बैल के अलावा कुछ मुर्गियों के मालिक रंजीत बताते हैं, ‘धान के अलावा और कुछ उपज नहीं है. अभी संगीता बेंगलुरु जा रही थी, तब 15 हजार रुपये की जरूरत थी, तीन लोगों से मांग कर उसे दिया. छह भाई बहन में संगीता चौथे नंबर पर है. घर में उसकी मां को छोड़ सभी हॉकी खिलाड़ी हैं.’
परिवार के नौ सदस्य हैं खिलाड़ी
ब्यूटी डुंगडुंग (15 साल, पोजिशन- सेंटर फारवर्ड) के घर में कुल 11 सदस्य हैं. जिसमें नौ सदस्य हॉकी खिलाड़ी और एक फुटबॉल और एक वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं. दूसरी बार जूनियर नेशनल कैंप में शामिल होने जा रही ब्यूटी ने साल 2018 में हुए जूनियर नेशनल टूर्नामेंट में कुल आठ गोल दागे थे.
पिता अफरोज डुंडडुंग किसान हैं. कहते हैं, ‘हम लोग तो स्टेट तक ही पहुंच पाए. अगर गांव वाले स्कूल में अभी भी सभी बच्चों को कम से कम जूते और बढ़िया हॉकी स्टिक मुहैया करा दिया जाता है, सिमडेगा देश को और बड़ा खिलाड़ी देगा.’
टीम इंडिया में शामिल होने की जद्दोजहद
सुषमा कुमारी (18 साल, पोजिशन- फारवर्ड) पांच मई को दोबारा जूनियर नेशनल कैंप का हिस्सा होने जा रही हैं. कहती हैं, ‘पिछली बार कैंप जाने को हवाई किराये के लिए जो पैसे उधार लिए थे, उसे चुकाया भी नहीं है. दूसरी बार जाने के लिए फिर से लेना पड़ रहा है.’
सुषमा ने कहा, ‘खेती-मजदूरी के अलावा घर में आय का कोई साधन नहीं है. पिछले कई टूर्नामेंट का पैसा झारखंड सरकार के पास बकाया रखा है. मेरी तरह कई और खिलाड़ी हैं जिस पर झारखंड सरकार का लगभग 2 लाख रुपये (प्रत्येक खिलाड़ी) बकाया है.’
सुषमा कहती है, ‘कर्ज लेकर इसी उम्मीद से खेलती हूं कि एक दिन असुंता दी (असुंता लकड़ा, भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान) की तरह देश के लिए खेल सकूं.’
चंदा जमाकर चॉकलेट, बिस्कुट, खस्सी पर बच्चों के लिए हॉकी टूर्नामेंट का कई सालों से आयोजन करा रहे और अब हॉकी सिमडेगा के जनरल सेक्रेटरी मनोज प्रसाद कहते हैं, ‘कैंप में इन लड़कियों को बढ़िया खाना, जिम, सोने के लिए बढ़िया जगह मिलता है. खास तरह की ट्रेनिंग के बाद जब सिमडेगा वापस आती है तो ऐसा कुछ नहीं मिलता, सिवाय रूटीन प्रैक्टिस के.’
मनोज चिंता व्यक्त करते हैं कि सही ट्रेनिंग न होने की वजह से इस वक्त प्रिया डुंगडुंग, काजल बारा, रेशमा सोरेंग, दीपिका सोरेंग, रूमाना खातून सहित लगभग 40 प्रतिशत खिलाड़ी चोटिल हैं.
वो ये भी बताते हैं कि केवल सिमडेगा जिले से सीनियर और जूनियर मिलाकर इंडिया के लिए माइकल किंडो (अर्जुन अवॉर्ड, तीन वर्ल्ड कप मेडल), सिल्वानुस डुंगडुंग (ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट, ध्यानचंद अवार्डी), समुराय टेटे (ध्यानचंद अवार्डी), असुंता लकड़ा (पूर्व कप्तान), विमल लकड़ा, कांति बा, मसुरा सुरीन, सलीमा टेटे (वर्तमान टीम इंडिया, डिफेंडर), अलका डुंगडुंग (जूनियर इंडिया टीम) सहित लगभग तीन दर्जन खिलाड़ी हैं.
भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ी, महिला हॉकी टीम के पूर्व कोच और पूर्वी भारत के हाई परफॉर्मेंट डायरेक्टर रह चुके एमके कौशिक ने रांची में एक कार्यक्रम में कहा था कि झारखंड के लोगों की शारीरिक बनावट ऐसी है कि एनर्जी का स्तर नेचुरल है. यही वजह है कि 70 मिनट खेलने के बाद भी इनको थकाम किसी अन्य खिलाड़ी से कम होता है. इनको सिर्फ तकनीक सिखाने की जरूरत है. डायट के मामले में भी बहुत कम चीजें खिलाने से भी वह बेहतर परिणाम दे सकती है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)