ग्राउंड रिपोर्ट: कुंभ के बाद जमा कचरे को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने जस्टिस अरुण टंडन की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति बनाई थी. इस समिति द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक इलाहाबाद के बसवार प्लांट में इस समय करीब 60,000 मिट्रिक टन कचरा जमा हुआ है. इसमें से करीब 18,000 मिट्रिक टन कचरा कुंभ मेले का है.
इलाहाबाद: ‘भइया कुंभ के नाम पर सरकार के जितना वाहवाही बटोरई के रहा, उ त बटोर लिहिन, लेकिन कुंभ क पूरा कचरा लाई के हम लोगों के बगल फेंक दिहा गवा बा. अब कचरा खतम होई या अइसे ही पड़ा रहई, लोग मरईं या जीअईं, सरकार के इससे कोउनउ मतलब नाही बा.’
कुंभनगरी के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में ठोस कचरे को ट्रीट करने वाले एकमात्र प्लांट, बसवार प्लांट के बगल में स्थित ठकुरीपुरवा गांव के जितेंद्र निषाद ने ये बात कही. इस ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्लांट (सॉलिड वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट) में भारी मात्रा में कुंभ का कचरा जमा होने के कारण चारों तरफ हवा में बहुत ज्यादा दुर्गंध फैली हुई रहती है, जिसकी वजह से यहां रहने वाले ग्रामीणों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
यहां सबसे बड़ी समस्या ये है कि बसवार प्लांट सितंबर 2018 से ही बंद पड़ा हुआ है, इसलिए यहां के कचरे का निस्तारण नहीं हो पा रहा है और ठोस कचरे की मात्रा भी लगातार बढ़ती ही जा रही है. इस प्लांट के चारों तरफ कचरे का ही ढेर दिखाई पड़ता है.
गांव में ही समोसे का दुकान लगाए 50 वर्षीय विजय कुमार कहते हैं, ‘इतनी भयानक दुर्गंध के बाद भी सरकार की ओर से कोई भी यहां छिड़काव करने नहीं आता है. यहां पर कई तरह के कीड़े-मकोड़े और मच्छर हैं. खुद मेरे बेटे को खुजली हो गई थी, 40 हजार की दवा कराने के बाद वो ठीक हो सका.’
इलाहाबाद में कुंभ के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कुंभ से निकले कचरे के निस्तारण को लेकर अब सवालों के घेरे में है. हाल ही में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि कुंभ के कचरे से पैदा हुई स्थिति की वजह से इलाहाबाद महामारी की ओर बढ़ रहा है.
इस बार का कुंभ मेला सबसे महंगा था. योगी सरकार ने कुंभ के लिए 4,236 करोड़ रुपये का आवंटन किया था. इससे पहले की सपा सरकार ने साल 2013 में कुंभ के दौरान 1300 करोड़ रुपये खर्च किए थे.
नहीं शुरू हुआ बसवार प्लांट
डायरिया, बुखार, वायरल हेपेटाइटिस और कॉलरा की बीमारी के ख़तरे का पूर्वानुमान लगाते हुए एनजीटी ने कहा था कि तुरंत ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करने की ज़रूरत है ताकि महामारी फैलने से रोका जा सके.
हालांकि इस सख्त निर्देश के बाद भी अभी भी बसवार प्लांट चालू नहीं किया जा सका है. यहां पर कचरे की प्रोसेसिंग के लिए पांच मशीनें लगाई गई हैं और फिलहाल पांचों मशीनें बंद पड़ी हैं.
बसवार प्लांट के प्रोसेसिंग और संचालन का काम संभालने वाली ‘हरी-भरी इलाहाबाद वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड’ कंपनी के संचालनकर्ता अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि अभी यहां मशीनों में बदलाव किया जा रहा है, उनकी क्षमता को बढ़ाया जा रहा है, जिसके बाद काम शुरू हो पाएगा.
श्रीवास्तव ने कहा, ‘कुंभ की वजह से हमारी क्षमता से अधिक का कचरा यहां लाया गया. हम पुरानी मशीनों से इस पूरे कचरे को प्रोसेस करने में सक्षम नहीं थे. सरकार ने कुंभ के लिए तो बहुत सारा इंतजाम किया लेकिन उससे निकले कचरे का निस्तारण करने वाले प्लांट की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया. इस वजह से हम ऐसी स्थिति में आ गए हैं.’
उन्होंने कहा कि एनजीटी द्वारा निर्देश जारी करने के बाद सरकार की ओर से पैसे जारी किए गए हैं और जहां तक है 15 मई के बाद से ये मशीनें चालू हो जाएंगी. श्रीवास्तव ने दावा किया कि 15 जून से पहले वे कुंभ का सारा कचरा ट्रीट कर देंगे और इससे बनी खाद को ‘कुंभ खाद’ के नाम से बेचा जाएगा.
साल 2011 में बसवार प्लांट को स्थापित किया गया था, तब से ही यहां पुरानी मशीने काम कर रही थीं.
‘हरी-भरी’ के प्रोडक्शन इंचार्ज राजन नाथ ने कहा कि कुंभ के पहले ही उनकी कंपनी ने सरकार से कहा था कि इन मशीनों को बदलने की जरूरत है लेकिन प्रशासन ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा, ‘इन मशीनों की क्षमता प्रतिदिन 400 टन कचरा साफ करने की थी लेकिन कुंभ के समय 800-900 टन प्रतिदिन सॉलिड वेस्ट कचरा यहां पर आता था. इसकी वजह से पूरा प्लांट भर गया और काम नहीं हो सका.’
एनजीटी ने इस मामले को लेकर जस्टिस अरुण टंडन की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति बनाई थी. इस समिति द्वारा सौंंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक बसवार प्लांट में इस समय करीब 60,000 मिट्रिक टन कचरा जमा हुआ है. इसमें से करीब 18,000 मिट्रिक टन कचरा कुंभ मेले का है.
समिति ने यह भी पाया कि करीब 2,000 मिट्रिक टन ठोस कचरे को अलग (रिसाइकल और ऑर्गेनिक खाद बनाने के लिए कचरे में मौजूद चीजों को अलग करना) किए बिना ही उसे बसवार प्लांट में पहुंचाया गया, जो कि एनजीटी के आदेश और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन है.
हालांकि इलाहाबाद नगर आयुक्त उज्ज्वल कुमार का कहना है कि प्लांट में कचरे को लाने के बाद ही उसे अलग किया जाता है. कुमार ने कहा कि बसवार प्लांट सितंबर 2018 से बंद नही था, वो बीच-बीच में चलता रहता था.
उन्होंने द वायर से कहा, ‘जस्टिस टंडन समिति ने अपनी रिपोर्ट में जो ये कहा है कि सितंबर 2018 से ये प्लांट बंद पड़ा है, ये बात सही नहीं है. वो ऐसे ही लिखा है. प्लांट कभी चलता था, कभी बंद होता था.’ कुमार ने दावा किया कि एनजीटी के आदेश के मुताबिक 15 जून से पहले कुंभ के कचरे का निस्तारण कर दिया जाएगा.
लेकिन जस्टिस अरुण टंडन ने कहा कि अभी तक उन्हें कोई एक्शन प्लान नहीं मिला है कि आखिर किस तरह 15 जून से पहले कुंभ का कचरा खत्म किया जाएगा. उन्होंने द वायर से कहा, ‘मैं अब जिलाधिकारी और नगर निगम को पत्र लिखने वाला हूं कि किस तरह से वे इस कचरे का निस्तारण करेंगे. अभी तक मुझे उनकी तरफ से कोई एक्शन प्लान नहीं मिला है.’
सही से नहीं काम कर रहे जीओ ट्यूब
योगी सरकार ने कुंभ के दौरान नालों के ट्रीटमेंट के लिए शहर में कई जगह पर जीओ ट्यूब की व्यवस्था बनाई थी. हालांकि इनका काम संतोषजनक दिखाई नहीं पड़ता है. नालों में जितना दूषित पानी आता है, उसका सिर्फ कुछ हिस्सा ही ट्रीट किया जा रहा है.
जीओ ट्यूब में पॉलीइलेक्ट्रोलाइट और पॉलीएल्यूमीनियम क्लोराइड नाम के दो केमिकल मिलाए गए होते हैं. जैसे ही दूषित पानी जीओ ट्यूब में जाता है तो इसमें से एक केमिकल कचरे को पानी से अलग करता है और दूसरा केमिकल इन कचरों को इकट्ठा कर देता है जो कि ट्यूब में नीचे बैठ जाता है और साफ पानी ट्यूब के छिद्र से बाहर निकल आता है.
इलाहाबाद के राजापुर नाले के पास छह जीओ ट्यूब लगाए गए हैं. यहां पर ‘फ्लेक्सिटफ वेंचर्स इंटरनेशनल लिमिटेड’ नाम की एक प्राइवेट कंपनी को प्रतिदिन 1.8 करोड़ लीटर पानी ट्रीट करने की जिम्मेदारी दी गई है. हालांकि प्लांट पर मौजूद कर्मचारियों का कहना है कि इस जगह पर 2.6-2.7 करोड़ लीटर दूषित पानी आता है.
कंपनी के इंजीनियर शिवम अग्रवाल ने कहा, ‘हम जो पानी ट्रीट कर रहे हैं उसका बीओडी लेवल सात से आठ मिलीग्राम/लीटर रहता है. सीओडी 40 से नीचे रहता है और टीएसएस 20 से नीचे रहता है.’
वैज्ञानिक मापदंडों के मुताबिक स्वच्छ नदी में बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम/लीटर से कम होनी चाहिए. अगर बीओडी लेवल 3 से ज्यादा है तो इसका मतलब ये है कि वो पानी नहाने के लिए भी सही नहीं है.
जीओ ट्यूब से पानी साफ करने के लिए पहले नाले में पाइप डालकर दूषित पानी को खींचा जाता है और उसे फिर जीओ ट्यूब में भेजा जाता है. हालांकि, ऊपर तस्वीरों में देखा जा सकता है कि दूषित पानी का सिर्फ कुछ हिस्सा ही जीओ ट्यूब में भेजा जा रहा है, बाकी का दूषित पानी ओवरफ्लो होकर सीधे गंगा नदी में जा रहा है.
जस्टिस टंडन समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में जीओ ट्यूब को लेकर कई सवाल उठाए हैं. समिति ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राजापुर नाले का सिर्फ 50 फीसदी दूषित पानी ही ट्रीट किया जा रहा है और बाकी का 50 फीसदी सीधे नदी में जा रहा है.
कुंभ के दौरान कुल पांच जगहों पर जीओ ट्यूब लगाए गए थे. इसमें से एक सलोरी जीओ ट्यूब के सुपरवाइजर रामपाल पांडे ने बताया कि उन्हें प्रतिदिन एक करोड़ लीटर दूषित पानी साफ करने की जिम्मेदारी दी गई है. उन्होंने बताया कि कुंभ के दौरान पानी बहुत ज्यादा आता था, जिसकी वजह से गंदा पानी ओवरफ्लो कर के सीधे नदी में चला जाता था. हालांकि अब रोजाना 70 से 80 लाख लीटर सीवेज ट्रीट किया जाता है.
सलोरी में कुल दो जीओ ट्यूब लगाए गए हैं. हालांकि, दो में से एक ट्यूब ही काम करता हुआ दिखाई दिया. एक ट्यूब के ऊपर काई जमा होने के कारण उसमें से पानी बाहर नहीं निकल पा रहा था. नियम के मुताबिक ट्यूब के ऊपरी हिस्से को हमेशा साफ किया जाना चाहिए ताकि ट्यूब का छिद्र बंद न हो.
यहां तैनात इंजीनियर अमित का दावा है कि ट्यूब की सफाई के लिए कुल 10 लोग रखे गए हैं, हालांकि जब हम वहां गए थे तब सिर्फ चार लोग ही दिखाई दे रहे थे.
सलोरी में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी है, लेकिन इस एसटीपी से भी दूषित सीवेज सीधे गंगा में जा रहा है. इसकी क्षमता प्रतिदिन 2.9 करोड़ लीटर सीवेज साफ करने की है. हालांकि जस्टिस टंडन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक यहां क्षमता से अधिक सीवेज पहुंच रहा है और इसका काम संतोषजनक नहीं है.
समिति ने बताया कि इससे निकलने वाली पानी को बीओडी लेवल 47 मिलीग्राम/लीटर है. इसका मतलब है कि पानी भयावह तरीके से दूषित है. स्वच्छ नदी में बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम/लीटर से कम होनी चाहिए.
इसके अलावा मवईया नाले पर भी जीओ ट्यूब लगाया गया है लेकिन यहां भी एक बाईपास है, जहां से दूषित पानी सीधे गंगा नदी में गिर रहा है. इलाहाबाद के अरैल नाले की स्थिति भी इसी तरह की है.
जस्टिस टंडन समिति ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि लातेहरन ड्रेन में लगा एक जीओ ट्यूब काम नहीं कर रहा है और बाईपास के जरिये ओवरफ्लो होकर पानी नदी में जा रहा है. इसके अलावा मनसुथिया ड्रेन का ट्रीटमेंट नहीं हो रहा है और जीओ ट्यूब से ट्रीट होकर जो पानी निकल रहा है वो इसी पानी में मिलकर गंगा में जा रहा है.
जस्टिस टंडन ने कहा, ‘अगर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं, तो जीओ ट्यूब वाली स्थान पर क्यों कैमरे नहीं लगाए जा सकते. इस बात की क्या गारंटी है कि बिना सीसीटीवी के वहां अच्छे से काम हो रहा होगा. मुझे जो जानकारी दी गई है, उसके मुताबिक किसी भी जियो ट्यूब साइट पर कैमरे नहीं लगे हैं.’
तालाब और शौचालयों के वेस्ट की स्थिति
कुंभ के दौरान मेला क्षेत्र में 1,22,500 शौचालय और 36 अस्थाई तालाब बनाए गए थे. इससे निकले मल और गंदे पानी को इंद्रप्रस्थम सिटी के क्रॉस सेक्शन पॉइंट पर इकट्ठा करके इसे एसटीपी में भेजना था. हालांकि समिति ने पाया कि सभी क्रॉस सेक्शन पॉइंट सूखे पड़े हुए थे और यहां पर पानी की एक बूंद भी नहीं था.
हनुमान मंदिर के सामने बना कच्चा तालाब गंदे पानी से बजबजा रहा था और उसमें भारी संख्या में कीड़े और मच्छर मौजूद थे. समिति ने इस बात को लेकर चिंता जताई है कि शौचालय से निकले गंदे पानी को कच्चे गड्डे में जमा किया गया था, जो रिसकर जमीन के नीचे जा सकता है और भूजल दूषित होगा.
हालांकि, कुंभ के ओएसडी मेलाअधिकारी रमेश चंद्र मिश्रा का दावा है कि मेला प्रशासन ने तय नियम के मुताबिक ही कार्य किया और समिति ने अपनी रिपोर्ट में जिन कच्चे गड्ढों का जिक्र किया है, उसमें गंदगी नहीं इकट्ठा की जाती थी, बल्कि उसमें प्लास्टिक के टैंक रखे गए थे जिसमें मल को इकट्ठा किया जाता था.
उन्होंने द वायर से कहा, ‘हमने एनजीटी में अपना पक्ष रखा है और बताया है कि उन गड्ढों में हमने प्लास्टिक का टैंक रखा था, उसी में शौचालयों का मल एकत्र किया जाता था.’ मिश्रा ने बताया है सक्शन पंप के जरिये इन टैंकों से शौचालयों का मल निकाला जाता था और उसको ट्रीट करने के लिए एसटीपी में भेजा जाता था.
हालांकि मेलाधिकारी रमेश चंद्र मिश्रा ये बताने में असमर्थ रहे कि आखिर किस एसटीपी में शौचालयों का वेस्ट भेजा जाता था.
इस पर जस्टिस टंडन ने द वायर से कहा, ‘मेलाधिकारी गलत बोल रहे हैं. एनजीटी में सौंपी अपनी रिपोर्ट में हमने कुछ फोटोग्राफ लगाए थे, जिसमें ये साफ दिख रहा है कि शौचालय का दूषित पानी नदी से सिर्फ कुछ दूरी पर ही कच्चे गड्ढे में इकट्ठा किया जा रहा था. मेला खत्म होने के डेढ़ महीने बाद भी गंदा पानी उसी में पड़ा हुआ था.’
समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि इलाहाबाद के परमार्थ निकेतन अरैल में एक बहुत बड़ा तालाब बना हुआ था, जिसमें गंदे पानी के साथ-साथ मानव मल भी तैरता हुआ दिखाई दे रहा था. ऐसी स्थिति एनजीटी के आदेश का उल्लंघन है.
जस्टिस टंडन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा नदी से 10 मीटर से कम की दूरी पर शौचालयों से निकली गंदगी के लिए ड्रेन बनाए गए थे. इसकी वजह से नदी का प्रदूषण काफी बढ़ सकता है. समिति ने शौचालयों के मल को ट्रीट करने के संबंध में मेला प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई को ‘आंख में धूल झोंकने जैसा’ बताया है.
समिति का दावा है कि मेला क्षेत्र से अस्थाई शौचालयों को हटाने और इससे निकले मल को ट्रीट करने से संबंधित मामले में मेलाधिकारी और मेला प्रशासन ने न तो कोई सहयोग किया और न ही कोई जवाब दिया है.
इसके अलावा इलाहाबाद में नालियों (ड्रेन) के ट्रीटमेंट के लिए बायो-रिमेडिएशन तकनीक अपनाई गई थी. हालांकि जस्टिस टंडन समिति की रिपोर्ट के मुताबिक इनकी स्थिति भी संतोषजनक नहीं है.