मोदी जिस गंगा मैया के पुत्र बनकर बनारस आए थे, वहां आज भी नाले गिर रहे हैं: अजय राय

साक्षात्कार: वाराणसी लोकसभा सीट से नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय से बातचीत.

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साक्षात्कार: वाराणसी लोकसभा सीट से नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय से बातचीत.

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अजय राय (फोटो साभार: फेसबुक/अजय राय)

भाजपा से अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत करने वाले अजय राय पांच बार विधायक रहे हैं. अजय राय को कांग्रेस ने वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में उतारा है. इससे पहले 2014 का चुनाव भी पीएम मोदी के खिलाफ लड़ चुके हैं.

1996 में पहली बार अजय राय भाजपा के टिकट पर वाराणसी की कोलसला विधासनभा सीट से चुनाव लड़े और जीत गए थे. इसके बाद अजय राय 2009 तक भाजपा के साथ रहे. इसके बाद टिकट न मिलने से नाराज़ होकर भाजपा छोड़ सपा में आ गए और सपा के टिकट पर वाराणसी से चुनाव लड़ा, हालांकि तब मुरली मनोहर जोशी विजयी हुए और अजय राय तीसरे नंबर पर रहे.

इसके बाद अजय राय ने सपा का दामन भी छोड़ दिया और विधानसभा उपचुनाव में अपनी कोलसला सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे और जीते. 2012 में राय कांग्रेस में शामिल हुए और पिंडरा विधानसभा सीट से लड़े और जीते. 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतारा लेकिन उन्हें महज 75 हज़ार मत मिले.

इस बार वे फिर कांग्रेस के टिकट पर नरेंद्र मोदी के सामने हैं. वाराणसी में अजय राय से हुई बातचीत का संपादित अंश:

पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे आपके लिए अच्छे साबित नहीं हुए थे, इस बार स्थिति कैसी लगती है?

अरविंद केजरीवाल पिछली बार जब आए थे तो केवल बड़ी-बड़ी बातें करके बनारस के लोगों का वोट लिया, कभी बनारस के लोगों साथ नहीं आए. ये बाहर के लोग हैं, मोदी जी भी बाहर से हैं और तमाम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं.

बनारस की गलियों को, बनारस की समस्याओं को, यहां की जो चीजें हैं, वो अभी तक प्रधानमंत्री जी समझ नहीं पाए और न ही प्रधानमंत्री जी को जानकारी हो पाई है. हम लोग यहां के लोकल हैं और यहां की हर स्थिति को जानते हैं, चाहे वो हिंदू एरिया हो, मुस्लिम या सिख. सभी एरिया को हम लोग जानते हैं. जो बनारस का हो वो काम करेगा और निश्चित रूप से उसी को बनारस की जनता इस बार वोट देने वाली है.

किन मुद्दों को लेकर आप चुनाव लड़ रहे हैं?

देखिए, यहां पर चुनावी मुद्दे लोकल बनाम बाहरी है. पिछली बार भी हमने कहा था लोकल बनाम बाहरी चुनाव होगा. इस बार यही है कि लोकल व्यक्ति यहां की आबोहवा को जानेगा, यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को जानेगा, बाहर का व्यक्ति नहीं समझ पाएगा.

यहां बिजली, पानी, सड़क, मां गंगा, जिसको साफ करने की बात मोदी जी ने कहा था, जो विश्वनाथ कॉरीडोर के नाम पर आकर यहां सौंदर्यीकरण के नाम पर मंदिरों को तोड़ा है, धार्मिक स्थानों को तोड़ा है, ये सब बनारस के मुद्दे हैं और निश्चित तौर पर आने वाले समय में मोदी जी को यहां से वापस भेजने वाले हैं.

वाराणसी में कई साल से भाजपा जीतती आई है और प्रधानमंत्री मोदी वर्तमान सांसद भी हैं. आपकी नज़र में कितना बदला है बनारस?

देखिए, भाजपा का शासनकाल यहां पर रहा पर चीजें केवल ढकोसले पर चली हैं. काम तो कुछ नहीं हुआ है. हमारे कार्यालय (खजुरी, पाण्डेयपुर रोड) के बाहर निकलकर देखिए, सड़क की स्थिति कैसी है? बनारस बदला नहीं है, बनारस की स्थिति और खराब हुई है.

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अजय राय (फोटो: पीटीआई)

भाजपा, सपा, उसके बाद निर्दलीय और अब कांग्रेस, कितना फ़र्क़ महसूस किया इन पार्टियों में?

कांग्रेस पार्टी एक पार्टी ही नहीं बल्कि एक बरगद के पेड़ की तरह है. एक ऐसा बरगद का पेड़ जिसके नीचे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर-गरीब सब लोग आराम से बैठकर अपना राजनीतिक जीवन लेकर चल सकते हैं.

और उनको कोई दिक्कत या परेशानी नहीं होगी क्योंकि यहां पर पारिवारिक वातावरण हैं. यहां पर शोषण नहीं किया जाता, परेशान नहीं किया जाता. आपको काम करने की खुली छूट दी जाती है.

भाजपा छोड़ने की वजह क्या रही?

भाजपा में जब तक अटल बिहारी वाजपेयी जी का शासन चल रहा था तब वहां कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन जब अटल जी बीमार रहने लगे और निर्णय लेने के काबिल नहीं रह गए, उसके बाद भाजपा की स्थिति बहुत खराब हो गई.

पार्टी में जो कार्यकर्ता थे उनकी पूछ खत्म हो गई, इसलिए भाजपा को छोड़ना पड़ा. भाजपा में कार्यकर्ताओं की कद्र खत्म हो गई. वहां कॉरपोरेट कल्चर आ गया, कॉरपोरेट की तरह डील होती है वहां अब. ऐसा अटल जी के समय में नहीं था.

वाराणसी में पहले कांग्रेस से प्रियंका गांधी के खड़े होने की चर्चा थी, फिर आखिरी वक्त पर आपके नाम पर मुहर लगी. क्या ऐसा लगता है कि कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं था?

प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की बात कार्यकर्ताओं ने की थी, कांग्रेस पार्टी ने कभी ऐसी बात नहीं की थी. केवल कार्यकर्ताओं की मांग पर चर्चा हो रही थी. प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की बात कांग्रेस ने कभी नहीं की.

और ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास ऑप्शन नहीं था, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मान करती है. जो कार्यकर्ता जमीन पर लड़ेगा, सड़क पर लड़ेगा, निश्चित तौर पर पार्टी उसको महत्व देगी.

क्या लगता है कि अगर प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ती तो स्थिति कुछ और होती.

प्रियंका जी हमारी नेता हैं, वो लड़ेंगी, तो हम सब उनका स्वागत करेंगे.

नरेंद्र मोदी अगर जीते तो फिर प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो जनता एक प्रधानमंत्री को जिताएगी या केवल एक सांसद को?

देखिए, प्रधानमंत्री को जिताकर जनता ने पांच साल तक उनका कार्यकाल देख लिया. अब वो अपने बेटे (अजय राय) को सांसद बनाएंगे, जो उनके लिए हमेशा खड़ा रहेगा, हमेशा संघर्ष करेगा.

उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेगा. और जो जानेगा कि कौन सा व्यक्ति कहां का है, कौन सा मोहल्ला कहां है.

प्रधानमंत्री को तो पांच साल देखा, 18 से 19 बार आए.  बनारस में पुल का बीम (खंभा) गिरा, पचासों लोग मर गए लेकिन उस दिन वो लोग कर्नाटक चुनाव का जश्न दिल्ली में मना रहे थे. हमारे भाई यहां मर रहे हैं, हम लोग वहां जाकर मदद कर रहे हैं और वो जश्न मना रहे थे. ऐसा प्रधानमंत्री नहीं चाहिए, ऐसा जनप्रतिनिधि नहीं चाहिए.

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वाराणसी में हुई रैली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ अजय राय (फोटो: पीटीआई)

बीएचयू की छात्राएं कई बार विभिन्न मुद्दों को लेकर प्रदर्शन कर चुकी हैं, उस पर क्या कहेंगे?

बीएचयू की लड़कियां जब अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरीं, तो उनके ऊपर लाठीचार्ज किया गया. प्रधानमंत्री को उसी रास्ते से जाना था लेकिन उन्होंने रास्ता बदल दिया. क्या यही इंसानियत है?

आपके घर की बेटियां हैं, उनको बुलाकर मिलना चाहिए था. नहीं तो उनके बीच जाकर बात करनी चाहिए थी कि आपको क्या समस्या है पर आपने रास्ता बदल दिया. ये कायरता है ये बुजदिली है.

अगर अजय राय रहता, तो जाकर उनके बीच बैठता, तत्काल वीसी के खिलाफ कार्यवाही की मांग करता. मैं सांसद बना तो देखिएगा कि लाठी चलेगी कभी! आप देख लेना. मैं बता रहा हूं कि अजय राय उनके बीच में बैठेंगे और जब तक वीसी हटाए नहीं जाएंगे, संबंधित व्यक्ति हटाया नहीं जाएगा, तब तक अजय राय वहां से नहीं हटेंगे.

लगातार कहा जा रहा कि बीते कई सालों में बीएचयू का माहौल खराब हुआ है, महीने भर पहले एक छात्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो शैक्षणिक संस्थानों के प्रति कैसा रवैया होगा?

कांग्रेस की सरकार में हमने ऐसे-ऐसे लोगों को वाइस चांसलर बनाया, जिनका नाम पूरे देश और दुनिया में है. पंजाब सिंह, कृषि के जाने माने वैज्ञानिक हैं, लालजी सिंह, प्रोफेसर गौतम, डीपी सिंह, ये लोग शिक्षाविद थे, जानकार थे.

भाजपा की तरह नहीं खोजे कि सबसे बड़ा चड्ढीधारी कौन है, हाफ पैंट पहनने वाला कौन है, जो सुबह उठकर जाकर ध्वज प्रणाम करता है, उसको खोजकर लाकर वीसी बनाए हैं, ऐसे शिक्षण संस्थाएं नहीं चलेंगी.

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर के बारे में क्या राय है?

मंदिर कॉरीडोर के बारे में मेरी राय है कि जिन लोगों ने यह पाप किया है, जिन्होंने वो अधर्म किया है, हमारी सरकार बनेगी तो उनके खिलाफ हम कार्रवाई कराएंगे.

प्रधानमंत्री मोदी के बनारस आने के बाद यहां कोई बदलाव आया देखते हैं?

ये प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है. उनके बनारस आने के बाद ठेला वाला भगा दिया जाता है, गुमटी वाले, ऑटो चलाने वाले, गरीबों को भगा दिया जाता है, जो रोज कुंआ खोद रहा है, पानी पी रहा है, उसके अंदर, आम आदमी के अंदर आक्रोश है.

मेरी नजर में यहां रोजगार के अवसर होने चाहिए, कल-कारखाने होने चाहिए, फैक्ट्रियां लगनी चाहिए. बुनकर समाज के लिए ट्रेड सेंटर बनाया गया है, उसमें आज तक बुनकरों का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ.

वहां मोहन भागवत जी जाते हैं, मोदी जी आते हैं वहां मीटिंग करते हैं, अमित शाह जी आते हैं अपने कार्यकर्ताओं की बैठक लेते हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बुनकरों के लिए बनने वाली उस जगह पर आज तक एक भी कार्यक्रम बुनकरों के लिए नहीं हुआ है. फिर कैसा बदलाव?

जिनके नाम पर वो बना है उनका कार्यक्रम ही न हो तो बदलाव कैसा. हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के पूरे कार्यकाल की एक उपलब्धि है जो बाबतपुर से बनारस तक 14 किलोमीटर तक की सड़क बनाकर उसी का ढिंढोरा पीटा जा रहा है.

प्रधानमंत्री के स्तर का बस वही काम हुआ है. बाकी एक कल कारखाने, एक फैक्ट्री, किसी पढ़े-लिखे लड़के को नौकरी, कुछ नहीं हुआ है. गंगा मैया का पुत्र बनकर आए थे, आज भी वहां नाले गिर रहे हैं.

पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने लोगों से चंदा लेकर, दान लेकर इसलिए इतने बड़े संस्थान का निर्माण नहीं किया था कि हमारी बगिया में संघ की शाखा चलेगी, कैंपस में जो बच्चे शिक्षा ले रहे हैं उनकी हत्या कराई जाएगी!

(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं.)