अनुसूचित जातियों के लिए मैट्रिक से पूर्व की छात्रवृत्ति के लिए 2016-17 के बजट अनुमान में 550 करोड़ रुपये का प्रावधान था पर इस वर्ष 2017-18 में इसका बजट अनुमान मात्र 50 करोड़ रुपये रखा गया है.
यह सच है कि विभिन्न लोक कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करने की सरकार की अपनी सीमा होती है. ऐसे कार्यों के लिए सरकार अपना बजट नहीं बढ़ा सकती है.
फिर भी इतना तो माना जा सकता है कि विकास के जो कार्य या कार्यक्रम उच्च प्राथमिकता के हैं, उन्हें तो कम से कम पहले की तुलना में कम नहीं किया जाएगा (अथवा कम से कम बजट उतना तो बढ़ाया ही जाएगा जो महंगाई के असर को दूर करने के लिए ज़रूरी है).
इस वित्तीय वर्ष 2017-18 में सरकार ने कई लोक-कल्याणकारी कार्यों के लिए बजट अवश्य बढ़ाया है जिसका स्वागत होना चाहिए, हुआ भी है. पर कुछ उच्च प्राथमिकता के कार्यों या मदों पर जिस तरह बजट में अचानक कमी की गई है, उसका औचित्य अब तक समझ नहीं आ रहा है.
इस संदर्भ में सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए व कुछ महीनों बाद संशोधित अनुमान तय करते समय इस कमी को पूरा करना चाहिए.
शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं सुधारने व विशेषकर निर्धन वर्ग के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने का मुख्य कार्यक्रम है राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन. इसके लिए पिछले वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट अनुमान में 950 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, जबकि इस वर्ष (2017-18) के बजट अनुमान को मात्र 752 करोड़ रुपये रखा गया है.
एक ऐसे समय जब हमारे शहर तरह-तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं उस समय शहरी स्वास्थ्य सुधार के मुख्य कार्यक्रम में इतनी बड़ी गिरावट किसी के गले नहीं उतर रही है.
प्रजनन व बाल स्वास्थ्य (रिप्रोडक्टिव व चाइल्ड हैल्थ-आरसीएच) या आर.सी.एच. फ्लैक्सी पूल के लिए वर्ष 2016-17 के बजट अनुमान में 7,775 करोड़ रुपये उपलब्ध थे पर इस वर्ष के बजट अनुमान में मात्र 5,996 करोड़ रुपये आवंटित हैं.
जहां एक ओर सरकार ने बाल मृत्युदर कम करने को बहुत उच्च प्राथमिकता दी है वहां दूसरी ओर आरसीएच के बजट में इतनी गिरावट का अर्थ समझ पाना मुश्किल है.
शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आश्चर्य का मुद्दा यह चर्चित हुआ है कि अनुसूचित जातियों के लिए मैट्रिक से पूर्व की छात्रवृत्ति के लिए पिछले वर्ष 2016-17 के बजट अनुमान में 550 करोड़ रुपये का प्रावधान था, पर इस वर्ष 2017-18 में इसका बजट अनुमान मात्र 50 करोड़ रुपये रखा गया है.
जहां दलित छात्रों को मैट्रिक से पूर्व छात्रवृत्ति की बहुत ज़रूरत है, वहां इसमें अचानक इतनी बड़ी कमी कर देना बहुत दुखद है. यदि इसके उपयोग में कुछ कमी थी तो उसमें सुधार करना सरकार का ही काम था. सुधार करने के स्थान पर इसके लिए तय अधिकांश बजट को ही हटा देना बहुत अनुचित है.
इसके अतिरिक्त सामाजिक न्याय व सशक्तिकरण के विभाग का स्कूली शिक्षा बजट समग्र रूप से भी पहले से काफी कम कर दिया गया है. सवाल यह है कि इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए व इतनी उच्च प्राथमिकता के लिए बजट में यह कमी किस आधार पर की गई है? क्या सरकार इसकी क्षतिपूर्ति के लिए कोई कदम उठाने जा रही है? यह स्थिति सरकार को शीघ्र ही स्पष्ट करनी चाहिए.
राष्ट्रीय विरासत शहरी विकास व संवृद्धि योजना से कई उम्मीदें हैं, अतः इसके बजट को 250 करोड़ रुपये से कम कर 150 करोड़ रुपये करना उचित नहीं है.
विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों की सहायता के उपकरणों संबंधी सहयोग के लिए वर्ष 2016-17 के संशोधित बजट की तुलना वर्ष 2017-18 के बजट अनुमान से करें तो इसमें पहले से 20 करोड़ रुपये कम हुए नज़र आते हैं.
मैला ढोने में लगे व्यक्तियों के पुनर्वास की स्व-रोजगार योजना के लिए पिछले वर्ष के बजट-अनुमान में 10 करोड़ रुपये की व्यवस्था थी, जबकि इस वर्ष के बजट अनुमान में इसे मात्र 5 करोड़ रुपये कर दिया गया है. यह बहुत अनुचित है क्योंकि इस पुनर्वास के लिए अभी बहुत कार्य करना शेष है.
जलवायु बदलाव के दौर में शाश्वत ऊर्जा स्रोतों को बहुत बढ़ाने की ज़रूरत है. इसके बावजूद पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में इस वर्ष के बजट अनुमान में शाश्वत ऊर्जा मंत्रालय के बजट में लगभग 33 प्रतिशत की कमी नज़र आती है.
इस मंत्रालय के अंतर्गत शाश्वत ऊर्जा स्रोतों के अनुसंधान, विकास व अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग पर वर्ष 2016-17 के बजट अनुमान में 445 करोड़ रुपये की व्यवस्था थी जबकि वर्ष 2017-18 के बजट अनुमान में मात्र 144 करोड़ रुपये की व्यवस्था है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जलवायु बदलाव के इस दौर में तो इस मद के बजट को बहुत बढ़ाने की ज़रूरत थी.
यदि इन विभिन्न महत्त्वपूर्ण मदों पर संशोधित अनुमान तैयार करते समय बजट में वृद्धि कर दी जाए तो यह एक ऐसा न्यायसंगत कदम माना जाएगा जिससे बहुत से ज़रूरतमंद लाभान्वित हो सकेंगे.
(भारत डोगरा स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो कई सामाजिक आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं.)
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