ग्राउंड रिपोर्ट: राजस्थान के धौलपुर ज़िले के डांग क्षेत्र के गौलारी, बीलौनी और डौमई ग्राम पंचायतों के तहत आने वाले तमाम गांवों में इन दिनों पीने के पानी की भारी किल्लत बनी हुई है.
धौलपुर: राजस्थान के पूर्वी जिले धौलपुर के डांग क्षेत्र में आने वाली गौलारी, बीलौनी और डौमई ग्राम पंचायतों में इन दिनों पीने के पानी की भयंकर समस्या बनी हुई है. ग्रामीण अपने मवेशी और परिवार के साथ नदी किनारों पर पलायन कर गए हैं.
कई गांवों में महिलाएं अपना आधा समय सिर्फ पानी लाने के लिए बिता रही हैं. पलायन की स्थिति इतनी विकराल है कि गौलारी ग्राम पंचायत में चंदरपुरा और थाने का पुरा गांव में सिर्फ चार लोग ही बचे हैं.
बाकी लोग अपनी मवेशी लेकर उत्तर प्रदेश पलायन कर चुके हैं. ये लोग अब बारिश आने के बाद ही अपने गांव लौटेंगे. ग्रामीणों के अनुसार हर साल इन गांवों से करीब 100 से ज्यादा परिवार अपनी मवेशी और परिवार के साथ पलायन कर जाते हैं.
इतना ही नहीं जिन गांव में लोग बचे हैं वे पीने के पानी के लिए रोजाना जद्दोजहद कर रहे हैं. गौलारी ग्राम पंचायत के ही बल्लापुरा गांव में लोग एक पोखर के सड़े हुए पानी को पीने के लिए मजबूर हैं तो बीलौनी ग्राम पंचायत के कई गांवों की महिलाएं कई किलोमीटर दूर से पानी का इंतजाम कर रही हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि पार्वती बांध से सप्लाई का पानी तीन-चार दिन में बमुश्किल 5-10 मिनट के लिए आता है जिसमें दो बर्तन भी नहीं भर पाते. वहीं, जिन गांवों की राजनीतिक पहुंच और ताकत है वे लोग सप्लाई की पाइप लाइन को ही लीक कर लेते हैं और दूसरे गांवों का पानी रोक लेते हैं.
गौलारी ग्राम पंचायत के महुआ की झोर, कोटरा, बहेरीपुरा, बल्लापुरा, चंदरपुरा, थाने का पुरा, बोहरे का पुरा, बिजलपुरा, अहीर का पुरा, घुराकी और गोलारी गांव के अलावा आस-पास के गांवों में यह समस्या काफी पुरानी और बड़ी है.
हर साल गर्मी शुरू होती ही कुएं-हैंडपंप सूख जाते हैं और ग्रामीण पानी के लिए भटकते रहते हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी इस समस्या पर आंख मूंदे बैठे हैं.
ग्रामीणों ने बताया कि चुनावों के दौरान हमसे वोट मांगने आए नेताओं से पानी की मांग की लेकिन हर बार की तरह इस बार भी आश्वासन देकर चले गए.
पानी की ये समस्या गौलारी ग्राम पंचायत के 28 गांव-ढाणियों, बिलौनी के करीब 20 गांवों और डौमई के करीब 15 गांवों में है. इससे इन गांवों के करीब 15 हजार से ज्यादा की आबादी प्रभावित हो रही है.
200 लोगों के गांव में बचे हैं सिर्फ चार लोग
गौलारी ग्राम पंचायत के चंदरपुर गांव में पानी के लिए हर साल लोग पलायन कर जाते हैं. पूरा गांव मुर्दा शांति से भरा है. हर घर पर ताले लटके हुए हैं. करीब 30 घरों की 200 लोगों की आबादी वाले इस गांव में दो परिवारों के चार लोग ही बचे हुए हैं.
गांव में घूमने के बाद एक घर में हमें लोकेश और उनकी मां गिरराज देवी मिलती हैं. गिरराज कहती हैं, ‘होली के बाद से गांव के लोग मवेशी लेकर पार्वती और चंबल नदी के किनारों पर चले गए हैं. जून में बारिश आने के बाद ही लोग लौटने लगते हैं. फिलहाल गांव में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. 4-5 दिन में सप्लाई के पानी से ही काम चलाना पड़ रहा है. हम 5 दिन पुराने पानी से ही अपने सारे काम करते हैं.’
लोकेश अपनी मां की बात आगे बढ़ाते हैं, ‘मेरे परिवार में करीब 45 लोग हैं जिनमें से गांव में हम दो ही बचे हुए हैं. पलायन करने वालों में छोटे बच्चे भी शामिल होते हैं. घर में करीब 20 गाय और भैंस हैं. चारे की कमी के कारण गांव के लोगों को अपने घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ता है.’
चंदरपुरा गांव में ही रामरज गुर्जर और उनकी पत्नी भगवानदेई मिलती हैं. रामरज कहते हैं, ‘हमारी कई पीढियां इसी तरह गुजर गईं, लेकिन पानी की समस्या हल नहीं हुई है. सरकार ने पाइप लाइन डाली लेकिन उसे ताकतवर लोग फोड़कर पानी रोक लेते हैं. पशुओं को चारा, पानी नहीं होने के कारण आस-पास के गांव नदियों के किनारे चार महीने खानाबदोशों की तरह गुजारते हैं.’
भगवानदेई रामरज की बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, ‘पानी की कमी के कारण गांव ही खाली हो गए. प्यास से पशु मरने लगे हैं. गांव में कोई नहीं होने के कारण हमारे देवताओं की पूजा भी नहीं हो पा रही. हालात इतने खराब हैं कि पानी नहीं होने की वजह से लोग अपनी लड़कियों की शादी भी हमारे गांवों में करने से कतराने लगे हैं.’
चंदरपुरा जैसे हालात यहां के थाने का पुरा, बल्लापुरा, महुआ की झोर में भी है. प्रत्येक परिवार से 2-3 लोग मवेशी लेकर नदियों की ओर पलायन कर गए हैं.
चंदरपुरा के पास ही एक ढाणी बल्लापुरा के ग्रामीणों का इन दिनों आधे से ज्यादा दिन पानी की जुगत करने में ही बीत रहा है. गांव के हैंडपंप और कुएं सूख चुके हैं. एक पोखर में गंदा पानी है, जिसे गांव के लोग ढोकर कुएं के पास लाते हैं और फिर जो पानी जमीन में रिसकर कुएं में पहुंचता है उसी से ये अपना काम चला रहे हैं.
हालांकि यह पानी भी पीने लायक नहीं है. गंदा होने के साथ-साथ ये पानी बदबूदार भी है. गांव के करीब 150 लोग पूरी गर्मी के मौसम में इसी पोखर के पानी से काम चलाते हैं.
शिकायत पर सुनवाई नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि कई बार हमने प्रशासन को शिकायत की है लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं होती. विधानसभा चुनावों में भी हमने अपनी समस्या नेताओं के सामने रखी थी लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है.
गांव के एकमात्र पोखर से गांव के मवेशी पानी पीते हैं इसी से निकाले गए पानी को गांव के लोग पीने को मजबूर हैं.
बल्लापुरा की रहने वाली 7वीं में पढ़ने वाली सुनीता कहती है, ‘कुछ दिन बाद जब ये पोखर भी सूख जाएगा तो पानी के लिए छह किमी. दूर बाइक से जाना पड़ेगा. हर साल यही होता है. सप्लाई का पानी 3-4 दिन में कुछ मिनटों के लिए आता है. पोखर के पानी में ही पूरे गांव के जानवर नहाते हैं और उसी पानी को हम लोग पी रहे हैं.’
पानी की इस समस्या पर बसेड़ी विधानसभा से विधायक खिलाड़ीलाल बैरवा कहते हैं, ‘पूरे इलाके में पार्वती बांध से पीने का पानी सप्लाई होता है. गर्मियों में समस्या होती है लेकिन गांव के लोग ही पाइप लाइन को बीच में से फोड़कर पानी चुरा लेते हैं. मेरी जन-सुनवाई में भी यह मुद्दा उठा और मैंने प्रशासन को ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए कहा है.’
वहीं, सरमथुरा उपखंड में जलदाय विभाग के जेईएन विजय सिंह कहते हैं, ‘पूरा इलाके में पानी की सप्लाई तो होती है लेकिन हम सिर्फ लोगों के लिए पीने का पानी मुहैया कराते हैं. ग्रामीण इलाकों में गर्मियों में मवेशियों के लिए चारे-पानी की व्यवस्था नहीं होती. ऐसे में पानी की समस्या होती है और लोग पलायन कर जाते हैं. हम अपनी तरफ से कोशिश करते हैं कि लोगों को पानी मिलता रहे, लेकिन कई बार समस्याएं आ जाती हैं. हैंडपंप और कुओं में इन दिनों पानी नहीं रहता, इसीलिए ग्रामीणों को ज्यादा परेशानी होती है.’
बल्लापुरा के रहने वाले राममहान कहते हैं, ‘पलायन करने वालों में बच्चे भी शामिल होते हैं जो होली के बाद अपने स्कूल छोड़ जाते हैं और स्कूल शुरू होने के करीब 20 दिन बाद लौटते हैं. इसी तरह गंदा पानी पीने से इस मौसम में हर एक घर में छोटे बच्चे बीमार पड़े हैं.’
बता दें कि 2013 में डांग क्षेत्र के 82 गांव और 61 ढाणियों को पेयजल आपूर्ति के लिए पार्वती बांध से पाइप लाइन बिछाई गई थी, लेकिन प्लान में यह ध्यान नहीं रखा गया कि इन इलाकों में लोगों के पास पशुधन बहुत संख्या में है और गर्मियों में उनके चारे-पानी का कोई इंतजाम डांग के गांवों में नहीं होता है.
पशुओं के साथ-साथ लोगों के लिए भी पीने का पानी नहीं मिल पाता इसीलिए गांव के गांव नदियों के किनारे अपनी मवेशी के साथ पलायन कर जाते हैं और बारिश आने पर ही वापस आते हैं.
इस क्षेत्र के गांवों में गर्मियों के मौसम में पलायन कई दशकों से हो रहा है लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते इन इलाकों में ग्रामीणों और उनके पशुओं के लिए पीने के पानी के माकूल इंतजाम नहीं हो पा रहे.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)