राहुल गांधी का इस्तीफ़ा मांगने वालों से कुछ सवाल

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही विभिन्न हलकों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पद छोड़ने की मांग उठाई जा रही है पर क्या यही कांग्रेस की मुश्किलों का हल है?

/
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो: पीटीआई)

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही विभिन्न हलकों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पद छोड़ने की मांग उठाई जा रही है पर क्या यही कांग्रेस की मुश्किलों का हल है?

 कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो: पीटीआई)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो: पीटीआई)

लोकसभा चुनाव के ओपिनियन पोल आने के बाद जहां मीडिया में कुछ लोगों ने कांग्रेस को ही खत्म करने की दलील दे डाली, वहीं परिणाम आने के बाद से ही मीडिया के बड़े वर्ग ने राहुल गांधी के इस्तीफे की मांग जोर-शोर से शुरू कर दी है.

जहां मीडिया का काम और जिम्मेदारी है कि वो राहुल गांधी के नेतृत्व पर टिप्पणी करे, उनकी कमियां गिनाएं, कांग्रेस की नीतियों पर बहस करे, उसे जनता के सामने लाए, वहीं इस्तीफे के इस मुद्दे को पार्टी के लिए छोड़ देना चाहिए.

मालूम नहीं क्यों मीडिया कांग्रेस की अपनी प्रक्रिया का इंतजार किए बिना किसी पार्टी के इस अंदरूनी मसले को इतना तूल दे रही है. मैं कांग्रेस की अनेक नीतियों और राहुल गांधी के काम करने के कई तरीकों से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता.

मैंने कांग्रेस के खिलाफ एक लंबी राजनीतिक लड़ाई लड़ी है और यह भी मानता हूं कि वो गांधी होने के कारण ही पार्टी अध्यक्ष बने हैं, मगर मैं यह मानता हूं कि वर्तमान संदर्भ में इस समय देश को कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों की जरूरत है.

और यह क्यों जरूरी है इस पर जाने से पहले हम उनसे इस्तीफे मांगने के कुछ कारणों को देख लें:

सबसे पहला मुद्दा है वंशवाद, वो कुछ हद तक सही भी है, लेकिन जिस आधार पर कांग्रेस के नेतृत्व को वंशवादी बताया जा रहा है, उस आधार पर तो देश की 75% पार्टियां इस दायरे में आ जाएगीं, जैसे समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल, वायएसआर कांग्रेस, टीआरएस, एनसीपी, राजद, लोजपा, जनता दल (एस) और अब तो बसपा और तृणमूल में भी ममता और मायावती के भतीजे अगले मुखिया बनते जा रहे हैं.

और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जितना खतरनाक वंशवाद है, उतना ही या उससे ज्यादा खतरनाक व्यक्तिवाद है. और इस समय लेफ्ट पार्टियों को छोड़कर कोई भी पार्टी व्यक्तिवाद से अछूती नहीं है; बल्कि व्यक्ति ही पार्टी की पहचान बन गए है.

यहां तक कि आम आदमी पार्टी, जो वैकल्पिक राजनीति के वादे पर आई थी, वो भी अब अरविंद केजरीवाल के नाम पर वोट मांगती है. जनता दल (यू) भी नीतीश कुमार के व्यक्तित्व के बाहर अपना अस्तित्व खो चुकी है.

इससे एक कदम आगे बढ़कर मोदी ने कैडर आधारित पूरी की पूरी भाजपा को ही अपने व्यक्तित्व की पीछे छुपा दिया. इस बार के चुनाव में भाजपा अपने चुनाव चिह्न के अलावा ‘फिर एक बार- मोदी सरकार’ के नारे में पूरी तरह से गुम हो गई. देश में सारी सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार नहीं मोदी चुनाव लड़ रहे थे.

इतना ही नहीं, उनके सहयोगी दल भी मोदी का चेहरा सामने रखकर वोट मांग रहे थे. अगर कांग्रेस के अलावा मोदी के विरोध में खड़ी बाकी पार्टियों ने अच्छा प्रदर्शन किया होता तो भी अलग बात थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

इसलिए अगर बात हार की जिम्मेदारी लेकर पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की ही है, तो फिर जिस नैतिक आधार पर कांग्रेस के अध्यक्ष पद से राहुल गांधी को इस्तीफा देना चाहिए, उसी आधार पर सपा, बसपा, तृणमूल, टीडीपी, एनसीपी, राजद, जनता दल (एस) सहित देश के लगभग दो तिहाई दलों के मुखियाओं को अपना इस्तीफा दे देना चाहिए.

मीडिया को यह ध्यान रखना होगा कि जहां क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र में सिमट गए, वहां कांग्रेस के नेतृत्व में राहुल गांधी ही पूरे देश में मोदी के मुकाबले अपनी बात रख रहे थे. पिछले लंबे समय से देशभर में वो मोदी-शाह ब्रांड की राजनीति के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है, इसलिए इस चुनाव में अगर कोई एक व्यक्ति मोदी के सबसे ज्यादा निशाने पर था, तो वो थे राहुल गांधी.

मोदी के पूंजीवादी दोस्तों को फायदे पहुंचाने का मुद्दा किसी ने उठाया तो वो सिर्फ राहुल गांधी ने. भले ही वो सफल नहीं हुए हों, लेकिन वो अकेले थे जो मोदी के अपने चहेते पूंजीपतियों को नाजायज पहुंचाने के मुद्दे को जनता के बीच इस हद तक ले गए कि मोदी को अपने ट्विटर के साथ कई दिनों तक अन्य मंचो से ‘मैं भी चौकीदार’ का अभियान चलाना पड़ा. बाकी सभी पार्टियां इस मुद्दे पर चुप सी रहीं.

उन्होंने किसानों के लिए अलग बजट, रोजगार के मुद्दों के साथ ही, राजद्रोह के कानून और आफस्पा जैसे मुद्दे उठाए. इतना ही नहीं, जब बाकी सब पार्टियां चुप थीं, तब इस अतिराष्ट्रवाद के माहौल में भी अपनी पार्टी के घोषणा पत्र में इन मुद्दों को उठाने का खतरा लिया.

यही नहीं, उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर भी अपनी पार्टी की सोच रखने की हिम्मत दिखाई. यह आरएसएस की विचारधारा से हमारी लड़ाई है और यह चुनाव नफरत और प्रेम की राजनीति के बीच की लड़ाई है, यह बात राहुल गांधी के अलावा किसी और नेता ने नहीं कही. और राहुल गांधी ने उसकी कीमत भी चुकाई.

बाकी क्षेत्रीय पार्टियां बाकी समय में तो छोड़ दीजिए चुनाव में भी ठीक से मुद्दे भी नहीं उठा पाई. अखिलेश और मायावती सिर्फ देश को नया प्रधानमंत्री देने (मतलब उनके बीच से एक) और असली-नकली पिछड़े जैसे बिना बात के मुद्दों से ही बाहर नहीं आ पाए.

वो उत्तर प्रदेश के किसानों और दलितों के मुद्दे भी ढंग से नहीं उठा पाए. मंचों से साझा रैली संबोधित करने के अलावा यह दोनों नेताओं ने पूरे उत्तर प्रदेश की खाक भी नहीं छानी. ममता भी बंगाली अस्मिता के मुद्दे से बाहर नहीं निकल पाईं और अपनी तमाम क्षमताओं के बावजूद मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने में ही फंस गईं.

इस देश में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है जब भारत सरकार एक व्यक्ति के नाम में समा जाए. वो भी तब जब हमारा लोकतंत्र 70 साल का हो चुका हो. ऐसे समय में राहुल गांधी के इस्तीफे से न सिर्फ मोदी-शाह का निशाना सफल हो जाएगा, बल्कि कांग्रेस का संकट और बढ़ेगा.

सेना की हार के बाद नया सेनापति तैयार करने के पहले पुराने के इस्तीफे से सेना कमजोर ही होती. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि राहुल गांधी कही भी गलत नहीं थे या उन्हें गलती सुधारने की जरूरत नहीं है. बिल्कुल उनके लिए अपनी गलती सुधारना जरूरी है, लेकिन जब कांग्रेस को क्रूरता से सुधार लाना है तब नेतृत्व बदलने से तो कमजोरी ही आएगी.

नए नेता को जमने में ही समय लग जाएगा और फिर कांग्रेस में नया नेता कौन है?  इसलिए राहुल गांधी को पद से हटाने की बजाए उन्हें और ज्यादा अधिकार देने की जरूरत है, जिससे वो कांग्रेस के अंदर सारे पुराने लोग, जो वर्षो से दिल्ली में जमे रहने के कारण अपना जनाधार और जमीनी हकीकत से वास्ता छोड़ चुके हैं, उन्हें वो पार्टी के मागदर्शक मंडल में डाल सकें.

कांग्रेस पहले ही मनमोहन सिंह जैसे जमीन से कटे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने से पार्टी उस पद और कद के व्यक्ति का, जो राजनीतिक फायदा ले सकती थी वो नहीं ले पाई और उसने दिल्ली में ऐसे दर्जनों नेताओं की फौज इकठ्ठा कर रखी है.

साथ ही साथ वे एक ऐसी टीम तैयार करें, जहां उन्हें पार्टी में सलाह की बजाय अपने परिवार से सलाह पर निर्भर न रहना पड़ा. यह न सिर्फ पार्टी के लिए सही नहीं हैं. मगर यह देश की जनता के बीच मोदी के इस आरोप को पुख्ता करता है कि कांग्रेस एक परिवार की पार्टी रह गई है. उन्हें मुद्दों पर भी सोचना होगा.

राष्ट्रवाद को अपने विचार के अनुसार परिभाषित करना होगा और अगर यह वैचारिक लड़ाई है तो कांग्रेस के विचार कम से कम अपने कार्यकर्ताओं तक तो ले जाने होंगे. यह भी सोचना होगा कि उनकी पार्टी ने अपने आपको किसान की कर्ज माफ़ी तक सीमित क्यों कर लिया?

क्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में, जिस दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग के मतदाता ने उसका सबसे ज्यादा साथ दिया उनतक उनकी सरकारें नहीं पहुंच पाई? ब्लॉक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पार्टी को नेताओं से मुक्त कर समर्पित कार्यकर्ताओं को आगे लाना होगा.

पार्टी में दलित, मुसलमान, आदिवासी, पिछड़े, महिलाओं सहित हर वर्ग के युवाओं को स्थान देना. जैसे आदिवासी बाहुल्य जिलों में भी शहर में बैठे निष्क्रिय नेताओं जिला अध्यक्ष बने बैठे हैं. पार्टी में महिलाओं को पर्याप्त स्थान नहीं है.

एनएसयूआई और मृत पड़े भारतीय किसान कांग्रेस और अन्य पार्टी के अन्य संगठनों में पुन: जान फूंकना. एकतरफ जहां युवाओं में बेरोजगारी चरम पर है, और किसानी पर संकट है, तब यह संगठन इन लोगों के बीच जाकर काम नहीं कर रहे हैं.

यह सब कहने की बावजूद, राहुल गांधी का इस्तीफा इसका फैसला तो कांग्रेस पार्टी ही करेगी. मीडिया को चाहिए कि वो जीतने वाले के साथ न बहे और हारने वालों को पुन: खड़े होने का थोड़ा समय और मौका देते हुए यह फैसला उस पार्टी पर छोड़ दे.

(लेखक समाजवादी जन परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं.)

https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/pkv-games/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/bandarqq/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/dominoqq/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-5k/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-10k/ https://ikpmkalsel.org/js/pkv-games/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/scatter-hitam/ https://speechify.com/wp-content/plugins/fix/scatter-hitam.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/ https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/ https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/ https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://onestopservice.rtaf.mi.th/web/rtaf/ https://www.rsudprambanan.com/rembulan/pkv-games/ depo 20 bonus 20 depo 10 bonus 10 poker qq pkv games bandarqq pkv games pkv games pkv games pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq