झारखंड की ये ‘निर्भया’ बलात्कार और हिंसा के चलते चार महीने कोमा में रही, फिर चल बसी

ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड के लातेहार ज़िले में बीते जनवरी में दो बच्चों की मां के साथ सामूहिक बलात्कार और मारपीट की गई, जिसके बाद वह कोमा में चली गईं. तकरीबन चार महीने कोमा की हालत में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकने के बाद इस आदिवासी महिला की मौत हो गई.

आदिवासी महिला का शव. (फोटो: आनंद दत्ता)

ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड के लातेहार ज़िले में बीते जनवरी में दो बच्चों की मां के साथ सामूहिक बलात्कार और मारपीट की गई, जिसके बाद वह कोमा में चली गईं. तकरीबन चार महीने कोमा की हालत में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकने के बाद इस आदिवासी महिला की मौत हो गई.

आदिवासी महिला का शव. (फोटो: आनंद दत्ता)
आदिवासी महिला का शव. (फोटो: आनंद दत्त)

रांची: झारखंड की राजधानी रांची के राजेंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (रिम्स) के मॉर्च्यूरी रूम के बाहर एक सात साल की बच्ची सुबक रही है. बच्ची रो रही है, क्योंकि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं हैं.

35 साल की उनकी मां के साथ बीते 23 जनवरी को तीन लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था और इस दौरान उन्हें बुरी तरह से चोट पहुंचाई गई. उनके कंधे, नाक, आंख पर छह-छह टांके लगाने पड़े. वह कोमा में चली गई थीं.

रांची से 120 किलोमीटर दूर लातेहार जिले लारी गांव की इस आदिवासी महिला ने जिंदा रहने के लिए अस्पताल में 121 दिन तक संघर्ष किया. बलात्कारियों द्वारा बेरहमी से पिटाई और फिर अस्पतालों की लापरवाही से पार नहीं पा सकीं. बीते 23 मई को उन्होंने रिम्स में ही दम तोड़ दिया.

इस तरह से सात साल की उस मासूम बच्ची और उसके 12 साल के भाई के सिर से मां का साया उठ गया.

22 मई को जब हम रिम्स पहुंचे थे, तब यह मासूम हर आधे घंटे पर अपनी मां के माथे को हिला रही थी, कोशिश थी कि वह बोल दें. दो-चार बार सिर हिलाने के बाद वह पास में रखे एक गिलास में दो अंडे फोड़ती है और उसे एक पाइप में डाल देती. यह पाइप उसकी मां की नाक में लगा था, जिसके माध्यम से से खाना दिया जा रहा था.

तीसरी कक्षा की यह छात्रा कहती है, ‘मैं और मेरे भइया 23 जनवरी को घर में थे. मां सब्जी बेचने बाजार गई थी. रात आठ बजे तक नहीं आई. इधर आंधी और बारिश बहुत तेज हो रही थी. मैं और भइया सोचे कि बारिश खत्म होने के बाद मां आ जाएगी, लेकिन वो नहीं लौटी.’

पीड़िता के बेटे के मुताबिक, ‘12 बजे रात तक मां नहीं आई तो हम दोनों रोते-रोते सो गए. सुबह मैं उनको खोजने गया तब गांव के लोगों से पता चला कि मां गांव के एक खेत में पड़ी है. हम दोनों दौड़ते हुए वहां पहुंचे. वह बेहोश थीं. बड़े चाचा के साथ हम लोग उसको लेकर लातेहार जिला अस्पताल गए.’

घटना के वक्त महिला के पति गुजरात में थे, वे वहीं पर रहकर काम करते हैं. उनके बड़े भाई ने बताया कि जिला अस्पताल ले जाने पर वहां के एक डॉक्टर ने बोला कि रेप हुआ है, यहां उचित इलाज नहीं हो सकता, रांची लेकर जाइए. उसी वक्त हम लोग रांची चले गए.’

रांची स्थित राजेंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस. (फोटो: आनंद दत्ता)
रांची स्थित राजेंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस. (फोटो: आनंद दत्त)

हालांकि घटना की सूचना मिलते ही लातेहार पुलिस की ओर से बलात्कार की पुष्टि के लिए मेडिकल कराना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, इस बात का जिक्र पुलिस के शुरुआती जांच रिपोर्ट में भी दर्ज है.

एसपी प्रशांत आनंद ने कहा कि उस वक्त महिला का बयान दर्ज नहीं हो पाया था, बाद में जांच के दौरान कई चीजें सामने आईं. वारदात स्थल पर जो सबूत मिले हैं, उसे फोरेंसिक लैब में भेजा गया है.

बेहोश महिला को दिनभर इमरजेंसी के बाहर रखा गया

पीड़िता के जेठ ने बताया कि घटना के अगले दिन 24 जनवरी को उन्हें रांची के रिम्स लाया गया. बेहोशी की हालत में उन्हें इमरजेंसी के बाहर रखा गया, क्योंकि एंट्री कार्ड और कागजी खानापूर्ति होने तक शाम हो गई थी. देर रात उन्हें मेडिसिन वार्ड में भर्ती किया गया.

इस बीच लगभग दो महीना रिम्स में एडमिट रहीं लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था. पीड़िता के पति के मुताबिक, ‘डॉक्टरों ने हमसे कहा कि उसके स्वास्थ्य में कुछ सुधार नहीं हो रहा, इसको लेकर लातेहार चले जाओ. हम बोले भी कि अभी तक तो इसका मुंह भी नहीं खुला है, बीमारी में कैसे लेकर जाएं. फिर भी उन्होंने कहा कि लेकर जाना होगा.’’

मार्च 27 को अस्पताल (रिम्स) छोड़ने से पहले जो डिस्चार्ज शीट मिली, उसमें लिखा है कि मरीज को डिफ्यूज एग्जोनल इंजुरी है. नाम न छापने की शर्त पर रांची के एक डॉक्टर ने बताया, ‘यह एक प्रकार की ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजुरी है. इसका मतलब ब्रेन का अधिकतर हिस्सा डैमेज हो चुका है. ऐसे मरीज को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है.’

बहरहाल दबाव में आकर परिजनों ने कोमा में पड़ी महिला को एक बार फिर लातेहार जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया.

इधर मामले की जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता सुनील मिंज को मिली. उन्होंने फैक्ट फाइंडिंग टीम के बतौर 27 अप्रैल को अपने साथियों फिलिप कुजूर, सेबेस्टियन कुजूर और जेम्स हेरेंज के साथ पूरे मामले की जानकारी ली. इसके बाद एक और सामाजिक संस्था ‘आली’ की पूनम विश्वकर्मा, तारामनी साहू भी जानकारी लेने लातेहार सदर अस्पताल पहुंचीं.

पूनम के मुताबिक, पीड़िता के पति ने बताया कि वहां किसी तरह का इलाज नहीं किया जा रहा है, केवल नर्स आकर पानी चढ़ाती है. उन्होंने अस्पताल प्रशासन से जब इसकी जानकारी मांगी तो पता चला कि डॉक्टरों को ये पता ही नहीं था कि कोई रेप पीड़िता उनके यहां भर्ती है.

इसके बाद आनन फानन में रजिस्टर चेक किया गया. लातेहार जिलाधिकारी से बात की और पीड़िता तो तत्काल 20 हजार रुपये कल्याण विभाग की ओर से दिलाए गए. राज्य सरकार के नियम के मुताबिक यह राशि बलात्कार पीड़िता को फौरी मदद के लिए जिला स्तर पर तत्काल मुहैया कराई जाती है.

लातेहार सिविल सर्जन डॉ. एसपी शर्मा ने पीड़िता का ठीक से इलाज न होने की बात से इनकार किया है.

उन्होंने कहा कि कोई भी नर्स बिना डॉक्टर की सलाह के पानी नहीं चढ़ाती है. इस सवाल पर कि भर्ती होने के दस दिन बाद पीड़िता को कल्याण विभाग से मिलने वाला पैसा क्यों दिया गया- उन्होंने कहा कि जब उन्हें पता चलेगा, तभी तो मदद दिलाएंगे.

पीड़ित आदिवासी महिला को अस्पताल से डिस्चार्ज करने की पर्ची.
पीड़ित आदिवासी महिला को अस्पताल से डिस्चार्ज करने की पर्ची.

लातेहार ज़िला अस्पताल के डॉ. एसके सिन्हा ने बताया, ‘उन्होंने तो पीड़िता के पति को पहले ही दिन कह दिया कि यहां उसका बेहतर इलाज नहीं हो सकता, रांची ही लेकर जाओ. लेकिन वह बात मानने को तैयार नहीं था.’

पीड़िता का पति के मुताबिक, वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर इलाज कहां होगा. रिम्स कह रहा था कि लातेहार लेकर जाओ, लातेहार जिला अस्पताल में कहा जा रहा था कि रिम्स लेकर जाओ.

इधर फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 3 मई को पूरे मामले को लेकर लातेहार में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. रिपोर्ट जब मीडिया में आई तो पीड़िता को आठ मई को इन्हीं कार्यकर्ताओं की मदद से दोबारा रिम्स में भर्ती कराया गया था.

इसके बाद आली संस्था ने 10 मई को हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, झारखंड को पीड़िता के बेहतर इलाज के लिए आवेदन किया. कमेटी ने कहा कि कोई महिला या पीड़िता के पति के माध्यम से आवेदन दिलवाइए. इसके बाद 15 मई को पीड़िता के पति की तरफ से आवेदन दिया गया और मामले की जानकारी झारखंड हाईकोर्ट को दी गई.

बीते 17 मई को हाईकोर्ट ने हेल्थ सेक्रेटरी, रिम्स डायरेक्टर और सुप्रिटेंडेंट को अदालत में हाजिर होने का नोटिस भेजा. हाईकोर्ट ने सवाल किया, ‘एक कोमा में पड़ी महिला को कैसे घर भेज दिया गया.’ कोर्ट ने जवाब देने के लिए 10 जून की तारीख तय की. फिलहाल हाईकोर्ट में गर्मी छुट्टी चल रही है.

इधर, रिम्स सुप्रिटेंडेंट डॉ. विवेक कश्यप ने कहा कि 27 मई को रिम्स कमेटी बनाएगी. इसके बाद जांच किया जाएगा कि गंभीर रूप से बीमार रहने के बाद भी कैसे पीड़िता को डिस्चार्ज स्लिप दी गई. डॉक्टरों की लापरवाही के सवाल पर उन्होंने कहा कि अब मामला कोर्ट में है, वह कुछ नहीं बोलेंगे. कोर्ट को ही जवाब देंगे.

रिम्स में दूसरी बार एडमिट होने के बाद पीड़िता का इलाज कर रहे डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि लातेहार जिला अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान पीड़िता के सीने में इंफेक्शन हो चुका था. ब्रेन में ब्लड सर्कुलेशन रुक-रुक कर हो रहा था, एनीमिया जैसी कई बीमारियों ने जकड़ लिया था. इसके अलावा उन्हें मल्टीपल फ्रैक्चर और हेड इंजुरी भी थी.

लातेहार एसपी प्रशांत आनंद की रिपोर्ट के मुताबिक महिला की नाक, दाहिनी आंख, निचले होठ, बाएं कान में जख्म था. बलात्कार के दौरान पीड़िता के मुंह में जो कपड़ा ठूसा गया, वह उसके गले में फंस गया. इस वजह से उनके गले का भी ऑपरेशन किया गया था.

मरने से सात दिन पहले मिला दो लाख, इलाज में ख़र्च हो चुके हैं 4.5 लाख

पीड़िता के पति गुजरात में दस हजार महीने के पगार पर फोकलेन चलाने का काम करते थे. उन्होंने बताया, ‘इलाज में अब तक 4.5 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, इसमें चार लाख कर्ज लेने पड़े हैं. एक एकड़ जमीन गिरवी रखी है.’

सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के बावजूद इतना पैसा लग गया, इसके जवाब में उन्होंने बताया, ‘दस दिन पहले आयुष्मान भारत योजना का कार्ड बना है. इतनी महंगी दवाई मिलती है कि क्या करें. फिर खाने में भी हर दिन पैसा खर्च होता रहा.’

हाईकोर्ट की फटकार के बाद कल्याण विभाग की ओर से लातेहार जिला प्रशासन ने पीड़िता के पति के बैंक खाते में दो लाख रुपये उनकी मौत से सात दिन पहले जमा कराए गए थे.

लातेहार सिविल कोर्ट के वकील सुनील प्रसाद के मुताबिक, पीड़िता के पति को अब कितना पैसा मिलेगा, बच्चों को क्या मिलेगा, यह सुनवाई के दौरान कोर्ट तय करेगी. मामले में अभी तक चार्जशीट भी नहीं दाखिल की गई है. ऐसे में समय लगना तय है.

मदद पाने की कठिन डगर

झारखंड पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक इस बीच झारखंड के सभी 24 जिलों में साल 2011 से लेकर 2018 तक बलात्कार के कुल 8,466 मामले दर्ज किए गए. वहीं इस साल जनवरी से फरवरी तक 226 मामले दर्ज किए गए.

पीड़िता की मौत के बाद अस्पताल में रखा उनका सामान. (फोटो: आनंद दत्ता)
पीड़िता की मौत के बाद अस्पताल में रखा उनका सामान. (फोटो: आनंद दत्त)

झारखंड लीगल सर्विसेस अथॉरिटी (झालसा) राज्यभर में लोगों को कानूनी मदद पहुंचाती है. मदद के लिए हर जिले में डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (डालसा) काम करती है. इस घटना से संबंधित खबर लगातार छपने के बाद भी लातेहार डालसा की नजर तब तक इस पर नहीं पड़ी जब तक कि पीड़िता के पति ने हाईकोर्ट को पत्र लिखकर अपनी व्यथा नहीं सुनाई. हाईकोर्ट में यह मामला घटना के चार महीने बाद पहुंचा था.

निर्भया फंड के तहत बने वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर की स्थापना झारखंड में भी की गई है. जिसके तहत पीड़िता को हर तरह की लीगल, हेल्थ, खाने-रहने की व्यवस्था की जाती है. लेकिन यह सेंटर शायद ही किसी पीड़िता के पास खुद पहुंचता हो. झारखंड में अब तक 24 में 18 जिलों में ही वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर बनाया गया है. लातेहार में वह भी नहीं है.

मुक़दमा वापस लेने का दबाव

बलात्कार के आरोपियों में से एक मुकेश ठाकुर पास के गांव डाटम का रहने वाला है. वहीं दूसरा आरोपी सुनील उरांव और आरसी उरांव दोनों लूटी के ही रहने वाले हैं. अब दोनों गांव के लोग आदिवासी महिला के परिवार पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहे हैं.

पीड़िता के बेटे के मुताबिक इसके लिए दो बार बैठक कर उसके चाचा को बुलाया गया था. उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया, हालांकि इसके बाद भी परिवार पर केस वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है.

एसपी प्रशांत आनंद ने बताया कि सभी तीन आरोपियों को जेल भेजा दिया गया है. फोरेंसिक जांच रिपोर्ट आते ही सबके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जाएगी. अगर किसी ने पीड़िता के परिजनों पर मुकदमा वापस लेने का दवाब बनाया तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)