द वायर एक्सक्लूसिव: आरटीआई के जरिए प्राप्त किए गए आंकड़ों के मुताबिक 12,867 करोड़ के कुल अनुमानित दावे में से अब तक 7,696 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया है. जबकि, खरीफ 2018 सीजन के लिए बीमा कंपनियों ने कुल 20,747 करोड़ रुपये का प्रीमियम इकट्ठा किया था.
नई दिल्ली: मोदी सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत बीमा कंपनियों ने किसानों के 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा के दावे का भुगतान अभी तक नहीं किया है, जबकि दावा भुगतान की समयसीमा पहले ही पूरी हो चुकी है. द वायर द्वारा दायर किए गए सूचना का अधिकार आवेदन में इसका खुलासा हुआ है.
दिसंबर 2018 में खत्म हुए खरीफ मौसम के लिए किसानों के 5,171 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान होना अभी बाकी है. बकाया दावा राशि कुल अनुमानित दावे का करीब 40 फीसदी है. राज्य सरकारों ने इन दावों को प्रमाणित किया है, लेकिन कंपनियों ने इसे अभी तक मंजूरी नहीं दी है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दिशानिर्देशों के मुताबिक फसल कटने के दो महीने के भीतर दावों का भुगतान किया जाना चाहिए. इसका मतलब है कि खरीफ 2018 के दावों का भुगतान ज्यादा से ज्यादा फरवरी 2019 तक में कर दिया जाना चाहिए था.
हालांकि द वायर द्वारा आरटीआई के जरिए प्राप्त किए गए आंकड़ों के मुताबिक 12,867 करोड़ के कुल अनुमानित दावे का करीब 40 फीसदी भुगतान नहीं किया गया है. ये आंकड़े 10 मई 2019 तक के हैं.
मालूम हो कि सरकार ने ये भी घोषणा किया है कि अगर दावा भुगतान में देरी होती है तो बीमा कंपनियों पर 12 प्रतिशत का जुर्माना लगाया जाएगा. कृषि मंत्रालय द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों में पीएमएफबीवाई और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) दोनों शामिल है.
हालांकि आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत करीब पांच फीसदी ही किसान कवर किए गए हैं. बाकी किसान पीएमएफबीवाई के दायरे में आते हैं. दावा भुगतान में देरी ऐसे समय पर हुई है जब बारिश में करीब 10 फीसदी की कमी आई है और देश के ज्यादातर हिस्से भयानक सूखे के चपेट में हैं.
अपने पहले कार्यकाल के दौरान भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को खासतौर से फसल नुकसान की भरपाई और ग्रामीण समस्या को हल करने के रूप में प्रचारित किया था.
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक भारत का करीब 65 फीसदी फसल क्षेत्र बारिश के पानी पर आधारित है और इसी वजह से कम बारिश होना फसल नुकसान की मुख्य वजह है. इसलिए, सरकार की फ्लैगशिप फसल बीमा योजना के प्रदर्शन का सही मूल्यांकन ऐसे साल में होगा, जब कम बारिश हुई हो.
खरीफ मौसम के लिए बुवाई जून और जुलाई महीनों में होती है और यह जून से सितंबर के मानसून पर बहुत ज्यादा निर्भर होता है. भारत की लगभग 70 फीसदी बारिश इसी दौरान होती है. हालांकि 2018 का मानसून औसत से भी नीचे था.
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक इस दौरान बारिश में 9.4 फीसदी की कमी आई थी. यह लगातार पांचवा साल था जब बारिश में गिरावट देखी गई. केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक सात राज्यों ने अपने यहां सूखा घोषित किया है.
इन राज्यों में करीब 1.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि फसल नुकसान से प्रभावित हुई है. सूखा घोषित करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और ओडिशा शामिल है.
केंद्र द्वारा दिए गए जवाब के मुताबिक 252 जिलों, जो कि देश के कुल जिलों का एक तिहाई है, में जून से सितंबर 2018 के बीच कम बारिश हुई थी. इनमें से अधिकांश जिले आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना राज्यों और उत्तर-पूर्व के कुछ हिस्से में हैं.
इन राज्यों में भयानक फसल का नुकसान हुआ है. गुजरात में 401 गांव सूखे से प्रभावित हैं और यहां पर 33 फीसदी से ज्यादा फसल का नुकसान हुआ है. इनमें से 269 गांवों में फसल का नुकसान 50 फीसदी से ज्यादा था.
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा, ‘महाराष्ट्र में सोयाबीन जैसी फसलों को 60-70 फीसदी फसल नुकसान हुआ है. कपास में, फसल का नुकसान 50 फीसदी तक है.’
2018 खरीफ सीजन के लिए फसल बीमा के तहत 5,171 करोड़ रुपये के बकाया दावा राशि में से महाराष्ट्र राज्य में सबसे अधिक बकाया है, जो कि सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से है. आरटीआई के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 3,893 करोड़ रुपये के अनुमानित दावों के मुकाबले, 36 फीसदी यानी कि 1,416 करोड़ रुपये का भुगतान अभी तक लंबित है.
कर्नाटक में 88.6 फीसदी भूमि क्षेत्र सूखा से प्रभावित है. यहां पर 176 तालुकाओं में से 156 को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है. 99 तालुकाओं को ‘गंभीर रूप से सूखा प्रभावित’ घोषित किया गया है. एक अध्ययन के अनुसार, राज्य भी सूखे से बुरी तरह प्रभावित है, क्योंकि इसके 30 में से 16 जिले ‘लंबे समय से सूखा ग्रस्त’ हैं.
लोकसभा में दिए गए बयान के मुताबिक कर्नाटक में 20 लाख हेक्टेयर से ज्यादा की भूमि फसल के नुकसान से प्रभावित है. लेकिन फसल बीमा के लिए सिर्फ 28 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान किसानों को किया गया है जबकि अनुमानित दावा 679 करोड़ रुपये है. इस हिसाब से राज्य में करीब 95 फीसदी दावा भुगतान बकाया है.
मध्य प्रदेश के 52 जिलों में से 18 जिलों में सूखा घोषित किया जा चुका है. लेकिन किसानों को फसल बीमा के तहत एक रुपये का भी भुगतान नहीं किया है. खरीफ 2018 सीजन की कटाई पूरी हुए छह महीने और दावा भुगतान करने की समय सीमा को पूरा हुए चार महीने हो चुके हैं लेकिन राज्य में 656 करोड़ रुपये के पूरा का पूरा अनुमानित दावे का भुगतान बकाया है.
मध्य प्रदेश में बीमा कंपनियों ने कुल 3,892 करोड़ रुपये का प्रीमियम लिया था. प्रीमियम इकठ्ठा करने के मामले में ये देश में दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. बीमा कंपनियों ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 4,591 करोड़ रुपये का प्रीमियम इकट्ठा किया था.
कुल मिलाकर छह राज्यों में 100 फीसदी दावा भुगतान बकाया है. ये राशि 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की है. इनमें से तीन राज्य मध्य प्रदेश, झारखंड और तेलंगाना भयानक सूझे से जूझ रहे हैं.
राजस्थान के नौ जिले सूखा प्रभावित घोषित किए गए हैं. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, राज्य में कुल 1,385 करोड़ रुपये का अनुमानित दावा है लेकिन इसमें से 900 करोड़ यानी कि अनुमानित दावे की 66 फीसदी राशि अभी तक किसानों को अदा नहीं की गई है.
द वायर ने इस बारे में विस्तार से रिपोर्ट किया है कि राजस्थान में दावों के निपटान में होने वाली दिक्कतों में गलत फसल के लिए दी जा रही प्रीमियम से लेकर सब्सिडी राशि के भुगतान में देरी जैसी चीजें शामिल हैं.
2017-18 सीजन के लिए भी, 577 करोड़ रुपये के दावे बकाया हैं. 2017-18 रबी सीजन जून 2018 में खत्म हुआ था और 88 बकाया दावे रबी सीजन से संबंधित हैं. रबी 2017-18 के लिए 3,423 करोड़ रुपये के अनुमानित दावों में से 509 करोड़ रुपये 10 मई 2019 तक बकाया है.
राजस्थान में 70 फीसदी दावे बकाया है. रबी 2017-18 में 393 करोड़ रुपये का अनुमानित दावा था, लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी अभी तक 281 करोड़ रुपये का दावा बीमा कंपनियों के पास बकाया है.
साल 2018-19 के लिए, देश भर में पीएमएफबीवाई और आरडब्ल्यूबीसीआईएस के तहत बीमा कंपनियों द्वारा 20,747 करोड़ रुपये का प्रीमियम इकट्ठा किया गया था. अभी तक कुल 7,696 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान किया गया है. इस तरह ये राशि इकट्ठा किए गए प्रीमियम के मुकाबले सिर्फ 37 फीसदी है.
पीएमएफबीवाई को देख रहे एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘फसल बीमा योजना के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि इकट्ठा किए गए प्रीमियम और भुगतान किए गए दावों के बीच भारी अंतर है. सरकार यह बताने की कोशिश कर रही है कि इतना बड़ा अंतर कैसे है. ये पैसा कहां जा रहा है?’
साल 2018-19 में सिर्फ खरीफ सीजन के लिए ही कंपनियों द्वारा एकत्र किए गए प्रीमियम और भुगतान किए गए दावों के बीच का अंतर 13,050 करोड़ रुपये था. ये राशि इकट्ठा किए गए प्रीमियम का 62 फीसदी है.
पिछले साल द वायर ने रिपोर्ट किया था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लागू होने के बाद फसल बीमा द्वारा कवर किसानों की संख्या में सिर्फ 0.42 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वहीं दूसरी तरफ फसल बीमा के नाम पर कंपनियों को चुकायी गई प्रीमियम राशि में 350 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
दावा भुगतान में देरी क्यों
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर किसानों की मुख्य शिकायत ये है कि दावा भुगतान में हमेशा देरी होती है. किसानों का तर्क है कि यदि उनकी फसल को बुवाई के किसी एक मौसम में नुकसान पहुंचा है, तो इसका मतलब है कि उन्हें उस साल खेती से कोई कमाई नहीं हुई.
नतीजतन, अगले सीजन में बुवाई के लिए उनके पास पैसे नहीं होते हैं. इसलिए अगर अगले सीजन के लिए बुवाई से पहले किसानों को दावों का भुगतान किया जाता है तो फसल बीमा उपयोगी हो सकता है.
दावों के भुगतान में देरी के कुछ कारण क्रॉप-कटिंग एक्सपेरिमेंट को पूरा करने में देरी, उपज के आंकड़े प्रस्तुत करने में देरी, बीमा कंपनियों को सरकारी सब्सिडी के भुगतान में देरी और समसीमा को बार-बार बढ़ाना है.
केंद्र सरकार ने इस समस्या को स्वीकार किया है और सितंबर 2018 में जारी किए गए दिशानिर्देशों के जरिए इनके समाधान की कोशिश की गई है. हालांकि मौजूदा आंकड़ों से ये स्पष्ट होता है कि कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है.