यह रिपोर्ट तीन आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों- राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान, राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक शोध परिषद और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंध संस्थान के अध्ययनों के आधार पर रखी गई है.
नई दिल्ली: संसद की एक समिति द्वारा सोमवार को प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार भारत के नागरिकों द्वारा विदेशों में जमा अघोषित धन संपत्ति (काला धन) 1980 से 2010 के विभिन्न कालखंडों में 216.48 अरब डॉलर से 490 अरब डॉलर के बीच रहने का अनुमान है.
यह रिपोर्ट देश के तीन प्रतिष्ठित आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों, राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी), राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक शोध परिषद (एनसीएईआर) और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंध संस्थान (एनआईएफएम) के अध्ययनों के आधार पर रखी गई है.
वित्त पर स्थायी समिति की लोक सभा में प्रस्तुत इस रिपोर्ट के अनुसार इन तीनों संस्थानों का निष्कर्ष है कि अचल संपत्ति, खनन, औषधि, पान मसाला, गुटका, सिगरेट-तंबाकू, सर्राफा, जिंस, फिल्म और शिक्षा के कारोबार में काली कमाई या अघोषित धन का लेन देन अपेक्षाकृत अधिक है.
संसदीय समिति की ‘देश के अंदर और बाहर अघोषित आय/संपत्ति की स्थिति-एक आलोचनात्मक विश्लेषण’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कमाए या जमा कराए गए काले धन का कोई विश्वसनीय हिसाब किताब नहीं है. इसके आकलन के लिए कोई सर्वमान्य पद्धति भी नहीं है. इस बारे में सभी अनुमान बुनियादी मान्यताओं और उसमें किए गए समायोजनों की बारीकियों पर निर्भर करते हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘अब तक जो भी अनुमान जारी किए गए हैं उनमें कोई एकरूपता या जांच की पद्धति और दृष्टिकोण के बारे में कोई एक राय नहीं पायी गई है.’
एनसीएईआर की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, 1980-2010 के बीच में देश से बाहर जमा कराई गई धन-संपत्ति 384 अरब डॉलर से 490 अरब डॉलर के बीच रही होगी.
एनआईएफएम का अनुमान कि इस दौरान अवैध तरीके से देश से बार भेजी गई धन-संपत्ति 9,41,837 करोड़ रुपये या 216.48 अरब डालर के बराबर रही. संस्थान का यह भी कहना है कि अवैध तरीके से विदेश भेजा गया काला धन कुल काले धन के औसतन दस प्रतिशत के बराबर रहा होगा.
इसी तरह एनआईपीएफपी का अनुमान है कि 1997-2009 की अवधि में गैर कानूनी तरीके से बाहर भेजा गया धन देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के औसतन 0.2 से 7.4 प्रतिशत के बीच था.
काले धन पर राजनीतिक विवाद के बीच मार्च 2011 में तत्कालीन सरकार ने इस तीनों संस्थाओं को देश और देश के बार भारतीयों के कालेधन का अध्ययन/सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी दी थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि अघोषित धन-संपत्ति का कोई विश्वसनीय आकलन करना बड़ा कठिन काम है. संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मुख्य आर्थिक सलाहकार का विचार है कि इन तीनों रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर अघोषित संपत्ति का कोई एक साझा अनुमान निकालने की गुंजाइश नहीं है.’
कांग्रेस के एम. वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली इस स्थायी समिति ने 16वीं लोकसभा भंग होने से पहले गत 28 मार्च को ही लोकसभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसके बाद आम चुनाव हुए और 17वीं लोकसभा का गठन हुआ है.
समिति ने कहा है वह इस विषय में संबद्ध पक्षों से पूछताछ की प्रक्रिया में कुछ सीमित संख्या में ही लोगों से बातचीत कर सकी क्योंकि उसके पास समय का अभाव था. उसने कहा है कि इसलिए इस संदर्भ में गैर सरकारी गवाहों और विशेषज्ञों से पूछताछ करने की कवायद पूरी होने तक समिति की इस रिपोर्ट को प्राथमिक रिपोर्ट के रूप में लिया जा सकता है.
समिति ने कहा है कि वह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग से अपेक्षा करती है कि वह काले धन का पता लगाने के लिए और अधिक शक्ति के साथ प्रयास करेगा. समिति यह भी अपेक्षा करती है कि विभाग इन तीनों अध्ययनों और काले धन के मुद्दे पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा प्रस्तुत की गई सातों रिपोर्ट पर आगे की आवश्यक कार्रवाई भी करेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुप्रतीक्षित प्रत्यक्ष कर संहिता को जल्द से जल्द तैयार कर उसे संसद में रखा जाए ताकि प्रत्यक्ष कर कानूनों को सरल और तर्कसंगत बनाया जा सके.