उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास तक की सज़ा की सिफ़ारिश की

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि इस तरह की हिंसा के शिकार व्यक्ति के परिवार और गंभीर रूप से घायलों को पर्याप्त मुआवज़ा मिले. इसके अलावा संपत्ति के नुकसान के लिए भी मुआवज़ा मिले.

योगी आदित्यनाथ. (फोटोः पीटीआई)

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि इस तरह की हिंसा के शिकार व्यक्ति के परिवार और गंभीर रूप से घायलों को पर्याप्त मुआवज़ा मिले. इसके अलावा संपत्ति के नुकसान के लिए भी मुआवज़ा मिले.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

 

 

 

लखनऊ: पिछले दिनों हुईं भीड़ हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने सलाह दी है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाये. आयोग ने एक प्रस्तावित विधेयक का मसौदा भी तैयार किया है.

राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एएन मित्तल ने भीड़ हिंसा पर अपनी रिपोर्ट और प्रस्तावित विधेयक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुधवार को सौंपा. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भीड़ हिंसा के जिम्मेदार लोगों को सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का सुझाव दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इस तरह की हिंसा के शिकार व्यक्ति के परिवार और गंभीर रूप से घायलों को भी पर्याप्त मुआवजा मिले. इसके अलावा संपत्ति को नुकसान के लिए भी मुआवजा मिले.

ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के पुर्नवास और संपूर्ण सुरक्षा का भी इंतजाम किया जाए.

आयोग की सचिव सपना त्रिपाठी ने बीते गुरुवार को कहा, ऐसी घटनाओं के मद्देनजर आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए भीड़तंत्र की हिंसा को रोकने के लिए राज्य सरकार को विशेष कानून बनाने की सिफारिश की है.

मुख्यमंत्री को सौंपी गई 128 पन्नों वाली इस रिपोर्ट में राज्य में भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा की घटनाओं का हवाला देते हुए जोर दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 2018 के निर्णय को ध्यान में रखते हुए विशेष कानून बनाया जाए.

आयोग का मानना है कि भीड़तंत्र की हिंसा को रोकने के लिए वर्तमान कानून प्रभावी नहीं है, इसलिए अलग से सख्त कानून बनाया जाए.

आयोग ने सुझाव दिया है कि एंटी लिंचिंग कानून के तहत अपनी डयूटी में लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारियों और जिलाधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जायें और दोषी पाए जाने पर सजा का प्राविधान भी किया जाए.

उत्तर प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 से 2019 तक ऐसी 50 घटनाएं हुईं, जिसमें 50 लोग हिंसा का शिकार बने, इनमें से 11 लोगों की हत्या हुई जबकि 25 लोगों पर गंभीर रुप से घायल हुए. इसमें गाय से जुड़े हिंसा के मामले भी शामिल हैं.

रिपोर्ट में कहा गया कि इस विषय पर अभी तक मणिपुर राज्य ने अलग से कानून बनाया है, जबकि मीडिया की खबरों के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार भी इस पर शीघ्र कानून अलग से लाने वाली है.

रिपोर्ट में राज्य में भीड़ हिंसा के अनेक मामलों का हवाला दिया गया है, जिसमें 2015 में दादरी में अखलाक की हत्या, बुलंदशहर में तीन दिसंबर 2018 को खेत में जानवरों के शव पाए जाने के बाद पुलिस और हिन्दू संगठनों के बीच हुई हिंसा के बाद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या जैसे मामले शामिल है .

आयोग के अध्यक्ष का मानना है कि भीड़ तंत्र के निशाने पर अब पुलिस भी है. ऐसी स्थिति में पुलिस को भी जनता अपना शत्रु मानने लगती है.

जस्टिस मित्तल ने रिपोर्ट में कहा है कि भीड़ तंत्र की उन्मादी हिंसा के मामले फर्रूखाबाद, उन्नाव, कानपुर, हापुड़ और मुजफ्फरनगर में भी सामने आए हैं.

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