कांग्रेस का आरोप है कि अमरकंटक में आयोजित नर्मदा सेवा यात्रा के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने सरकारी ख़जाना लुटाकर प्रधानमंत्री की सभा के लिए भीड़ बटोरी.
टैक्स पेयर्स यानी करदाताओं का पैसा सिर्फ़ जेएनयू या शिक्षण संस्थानों पर ही बर्बाद नहीं होता. करदाताओं का पैसा प्रधानमंत्री या किसी मुख्यमंत्री के ऐसे कार्यक्रम पर भी बर्बाद होता है जिससे दोहरा नुकसान हो रहा हो. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित नर्मदा सेवा यात्रा भी इसी का एक उदाहरण है जिसमें राज्य सरकार ने जनता के पैसे को प्रधानमंत्री की सभा के लिए भीड़ जुटाने में ख़र्च किया.
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित नर्मदा सेवा यात्रा का 15 मई को समापन कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए. इस पूरे आयोजन में मध्य प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक मद से करोड़ों रुपये ख़र्च किए. यहां तक कि प्रधानमंत्री की सभा के लिए भीड़ जुटाने के लिए भी सरकारी पैसा ख़र्च किया गया. जबकि क़रीब पांच महीने चलने वाली इस यात्रा का कोई आधिकारिक बजट नहीं रखा गया था.
नमामि देवी नर्मदा सेवा यात्रा की शुरुआत 11 दिसंबर को नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से हुई थी. 16 ज़िलों से गुज़रने के बाद सोमवार (15 मई) को अमरकंटक में ही इस यात्रा का समापन समारोह रखा गया था, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए.
द वायर को प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के मद का पैसा उनकी अमरकंटक यात्रा में भीड़ जुटाने पर ख़र्च किया गया. 15 मई को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वच्छता अभियान के लिए मिली राशि को भी आवंटित कर दिया. राज्य कार्यक्रम अधिकारी की ओर से ‘अमरकंटक में प्रशिक्षण हेतु जाने वाले प्रेरकों के लिए प्रति व्यक्ति 500 रुपये’ जारी किए गए.
मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री की अमरकंटक यात्रा और उनके कार्यक्रम पर 100 करोड़ रुपयों से ज़्यादा ख़र्च कर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया. उनके मुताबिक, मध्य प्रदेश सरकार ने पूरी ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ पर 1500 करोड़ रुपये ख़र्च किए.
अरुण यादव के मुताबिक, ‘सरकारी धन को पानी की तरह बहाया गया, जो सरकारी आदेशों और उनके आंकड़ों से प्रमाणित होता है. पूरे प्रदेश से लगभग 5 लाख लोगों की भीड़ को लाने-ले जाने के लिए वाहनों पर क़रीब 17 करोड़ 65 लाख रुपये और इनके प्रशिक्षण के नाम पर क़रीब 2 करोड़ 85 लाख रुपये आवंटित किए गए.’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘आयोजन में पहुंचने वाले प्रति व्यक्ति को 500 रुपये के हिसाब से क़रीब 25 करोड़ रुपये, नाश्ता-भोजन पर लगभग 4 करोड़ 12 लाख रुपये, गले में डालने वाले गमछे पर क़रीब 47 लाख रुपये, प्रधानमंत्री के हेलीकाप्टरों को अमरकंटक में उतारने का व्यय 45 लाख रुपये, आयोजन में टेंट सामग्री पर व्यय 5 करोड़ रुपये, आयोजन के दौरान फैलने वाले कचरा आदि के निवारण पर ख़र्च लगभग 2 करोड़ 84 लाख रुपये, आयोजन के प्रचार-प्रचार पर लगभग 50 करोड़ रुपये का व्यय किया गया है.’
अरुण यादव का आरोप है कि ‘नर्मदा सेवा यात्रा के माध्यम से शिवराज सिंह चौहान ने जनता की गाढ़ी कमाई को बेदर्दी से ख़र्च कर अक्षम्य कृत्य किया है. चौहान ने मां नर्मदा के संरक्षण और धार्मिक आस्था के नाम पर जनता को छला है. उन्होंने भाजपा कार्यकर्ता-नेताओं, पदाधिकारियों और अपने चहेतों को आर्थिक रूप से उपकृत करने के लिए क़र्ज़ में डूबे प्रदेश पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालकर जनता के साथ अन्याय किया है. पूरी नर्मदा सेवा यात्रा में जिस तरह से सरकारी धन का अपव्यय किया गया है, उससे ज़ाहिर होता है कि इस यात्रा के माध्यम से संगठित रूप से भारी मात्रा में धन अपनी जेबों में भरा गया है.’
उन्होंने कहा, ‘यह मोदी की कथनी और करनी का अंतर है कि वे ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा’ का उद्घोष करते हैं और उनकी यात्रा पर इस तरह जनता के पैसे की बर्बादी होती है.’
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि नर्मदा मैया की मध्य प्रदेश में अवैध रेत उत्खनन के कारण दुर्दशा हुई है. जो नर्मदा मैया हमें जीवन देती थी, जो हमारी जीवनदायिनी थी, उसका रेत अवैध तरीके से उत्खनन कर-कर के हमने आज इस स्थिति में पहुंचा दिया कि हमें नर्मदा मैया को बचाने के लिए नर्मदा सेवा यात्रा करनी पड़ रही है.
दिलचस्प यह है कि मध्य प्रदेश सरकार पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि सरकार नर्मदा में अवैध खनन पर रोक नहीं लगा सकी है. विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के क़रीबी लोग अवैध खनन में लिप्त हैं.
नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने मेल पर भेजे गए अपने बयान में आरोप लगाया कि ‘प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए लोगों को 500-500 रुपये की राशि बांटी जा रही है. ये वह राशि है, जो प्रदेश पंचायत विभाग को स्वच्छता अभियान के लिए मिली है.’ उनका यह भी आरोप था कि अमरकंटक में आयोजित कार्यक्रम के लिए परिवहन विभाग की बसों को अधिगृहीत कर लिया गया है, जिससे लोगों को तकलीफ़ उठानी पड़ रही है.
फोन पर बातचीत में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के सहयोगी मनोज पाठक ने इस दावे को दोहराते हुए कहा, ‘स्वच्छता अभियान के मद का पैसा लोगों को बांटा गया है. प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी धन को बर्बाद किया गया. यह धन प्रशिक्षण के नाम पर जारी किया गया. इसके लिए राज्य शासन ने 284.70 लाख रुपये जारी किया, जिसे प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए इस्तेमाल किया गया.’
अजय सिंह ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा नई दिल्ली में यमुना किनारे कार्यक्रम करने पर श्रीश्री रविशंकर पर जुर्माना लगाने का संदर्भ देते हुए कहा, एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नर्मदा सेवा यात्रा निकाल रहे हैं और दूसरी तरफ़ उनके कुछ क़रीबियों द्वारा नदी में अवैध खनन लगातार जारी है.
यह यात्रा नर्मदा नदी को बचाने के लिए चलाया गया एक अभियान था. कार्यक्रम के समापन कार्यक्रम पर राज्य सरकार ने अमरकंटक में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिए सभी ज़िलों के कलेक्टर और अन्य अधिकारियों को निश्चित भीड़ जुटाने का लक्ष्य सौंपा, जिसके लिए सरकार ने फंड जारी किए.
द वायर को मिले आधिकारिक दस्तावेज के मुताबिक, सिंगरौली के कलेक्टर ने अपर मुख्य सचिव को लिखा है कि अमरकंटक में प्रधानमंत्री की सभा में जनमानस को लाने ले जाने के लिए बस परमिट, डीजल, किराया आदि की आवश्यकता है. कृपया 85,60000 रुपये उपलब्ध कराने का कष्ट करें.
फ्री प्रेस जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रीवा की ज़िला पंचायत के सीईओ ने प्रशासन से 68 लाख की मांग की है. इसी तरह अशोक नगर के ज़िला परिवहन अधिकारी (DTO) ने भीड़ जुटाने के लिए 20 लाख की मांग की है. इससे संकेत मिलता है कि बाक़ी ज़िलों से इसी तरह पैसे ख़र्च करके भीड़ जुटाई गई होगी.
इस बीच सोमवार को इस महोत्सव के लिए कटनी से अमरकंटक जा रही लोगों से भरी एक बस रास्ते में पलट गई. इसमें प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के लिए भीड़ जुटाने के काम में लगे पंचायत सचिव अजय तिवारी, आशाराम साहू एवं एक अन्य आम नागरिक योगेंद्र सिंह की मौत हो गई. हादसे में कई लोग घायल भी हुए हैं.
प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिए राज्य परिवहन विभाग की सारी बसों को अधिगृहीत कर लिया गया, जिससे रोज़मर्रा के यात्रियों को ख़ासी परेशानी उठानी पड़ी. दिसंबर से अबतक चली नर्मदा यात्रा के लिए भी बसें अधिगृहीत की गईं और सरकारी ख़र्च से भीड़ जुटाई गई.
कार्यक्रम का उद्देश्य नर्मदा नदी का संरक्षण बताया गया है, जबकि नर्मदा के किनारे लाखों लोगों के जुटान और महोत्सव से नर्मदा को किस तरह का संरक्षण मिलेगा, यह रहस्य ही है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने एक आदेश में कहा था कि अमरकंटक में 1.5 लाख से ज़्यादा लोगों को एकत्र होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. जबकि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में 5 लाख से ज़्यादा लोगों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया था.
डेली ओ वेबसाइट पर छपे एक लेख में कहा गया है, ‘भोपाल में राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पहले ही आदेश दिया है कि अमरकंटक में बड़े पैमाने पर होने वाली घटना के लिए 1,50,000 से ज्यादा लोगों को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. हालांकि, कई स्थानीय विधायकों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों और आस-पास के इलाकों से पांच लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य दिया गया. अगर उनमें से आधे ही आए होंगे तो अमरकंटक पहाड़ियों की नाजुक पारिस्थितिकी को क्षतिग्रस्त होने से कोई नहीं बचा सकता. इतने बड़े पैमाने में कार्यक्रम की योजना बनाने से पहले सरकार को अधिक ज़िम्मेदार होना चाहिए था.’
सामाजिक कार्यकर्ता संदीप नाईक सवाल उठाते हैं, ‘राज्य की जीवन रेखा कही जाने वाले नर्मदा नदी एकाएक चर्चा में आ गई, जब शिवराज सरकार ने इस नदी में रेत के अवैध खनन पर कार्यवाही करने के बजाय एक यात्रा निकालने की घोषणा की थी. यात्रा को ख़ूब प्रचारित किया गया. इसमें फ़िल्मी कलाकारों से लेकर धर्मगुरुओं तक को बुलाया गया, जिसमें रविशंकर और दलाई लामा भी शामिल हैं. इसके लिए रुपया पानी की तरह बहाया गया. प्रदेश में मजबूत विकल्प नहीं है इसलिए कोई कारगर विरोध नहीं हुआ.’
मध्य प्रदेश के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गर्ग ने बताया, ‘प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए स्वच्छता अभियान के मद से पैसे जारी किए गए हैं. मुझे बताया गया है कि इंदौर में जो बसें अधिगृहीत की गईं उनके लिए 40 से 60 हज़ार रुपये प्रति बस जारी किए गए. ये कोई नई बात नहीं है. हर जगह जहां भी प्रधानमंत्री या भाजपा के कार्यक्रम हो रहे हैं, ये लोग ऐसे ही भीड़ जुटाते हैं. नर्मदा यात्रा के दौरान जहां-जहां यह यात्रा गई, आंगनबाड़ी से लेकर टॉप मशीनरी तक का इस यात्रा में इस्तेमाल किया गया.’
संदीप नाईक बताते हैं, ‘प्रधानमंत्री के अमरकंटक पहुंचने के पहले बसों के अधिग्रहण से होने वाली परेशानियों को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध देखने को मिला. ज़िलों के कलेक्टरों ने शासन से बसों के अधिग्रहण में लगने वाले डीजल और अन्य शुल्क हेतु 86 लाख रुपये प्रति जिला मांगे ताकि प्रदेश के सभी 51 ज़िलों से लोगों की भीड़ को भरकर लाया जा सके. देवास में प्रति बस 21 हज़ार दिए गए हैं और 50 बसों को अधिगृहीत किया गया है. शहडोल संभाग के तीनों जिलों शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में एक माह से सारा काम ठप रहा और प्रशासन हवाई पट्टी से लेकर प्रधानमंत्री की सुरक्षा और आवागमन जैसे व्यवस्थाओं में उलझा रहा.
पत्रकार राधेश्याम दांगी ने फोन पर बताया, ‘कुछ ज़िलों के दस्तावेज़ सामने आए हैं. मुख्य रूप से 16 ज़िलों में यात्रा गुज़री तो उनमें तो ऐसा हुआ ही है. बाक़ी दूर-दूर के ज़िलों से बसें भरकर लाई गई हैं. राजगढ़, अमरकंटक से क़रीब 800 किलोमीटर दूर है. वहां से भी बसें भरकर लाई गईं. ज़्यादातर ज़िलों में ज़िला प्रशासन को ज़िम्मेदारी दी गई कि बसों का इंतज़ाम करें. बसों को ख़र्च बहुत ज़्यादा रहा. यह जनता का पैसा है. ऐसा किया जाना बहुत दुखद है.’
संदीप नाईक उमरिया में जेनिथ संस्था के निदेशक बीरेंद्र गौतम के हवाले से अपने एक लेख में बताते हैं कि ‘आदिवासी गांवों में पीने को पानी नहीं है, रोजगार गारंटी योजना का भुगतान ग़रीब आदिवासियों को तीन सालों से नहीं किया गया है, पूरा प्रशासन ठप है, यह इलाका पिछले नौ माह में दो चुनाव झेल चुका है और रुपयों की भयानक बर्बादी देख चुका है उस पर से अब यह नौटंकी घातक है.’
संदीप नाईक सवाल उठाते हैं, ‘क्या बसों को अधिगृहित कर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भीड़ भेजना कलेक्टर या आरटीओ का काम है? क्या यह किसी संविधान में लिखा है कि किसी महामहिम के आने पर इतनी दूर के ज़िलों से भीड़ को इकट्ठा कर, बसों में ठूंसकर लाई जाए? ऐसे मजमे में जहां किसी नेता, पार्टी या सत्ता विशेष की ब्रांडिंग होती हो उसमें आम लोगों को कष्ट देकर सार्वजनिक यातायात के साधनों का दुरुपयोग करना कितना जायज़ है?’
इंदौर के रहने वाले एक नागरिक गिरीश मालवीय ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा, ‘नर्मदा सेवा यात्रा नदी सरंक्षण का सबसे बड़ा आंदोलन हो न हो पर मीडिया के मुंह में विज्ञापन ठूंस कर उसकी बोलती बंद करने का सबसे बड़ा अभियान जरूर बन गया है.’
अनिल गर्ग मीडिया की बेचारगी पर हंसते हुए कहते हैं, ‘हमें ये सूचनाएं पत्रकार साथियों ने ही दीं, हमने पूछा आप छापते क्यों नहीं? इस पर उनका जवाब है कि सर विज्ञापन भी तो उन्हीं से मिलना है.’
क्या पहले की सरकारें भी ऐसा करती रही हैं? इस सवाल के जवाब में अनिल गर्ग कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव 2014 से भाजपा की सरकारों ने इन तरीक़ों को व्यापक तौर पर अपनाया है. लोकसभा चुनावों में मोदी जी की उत्तर प्रदेश में रैली हुई मध्य प्रदेश से कार्यकर्ता भरकर ले जाए गए. महाराष्ट्र में रैली हुई तो यूपी, एमपी से कार्यकर्ता ले जाए गए. यूपी विधानसभा चुनाव में कानपुर रैली के लिए मध्य प्रदेश में बाक़ायदा पोस्टर छपवाकर लगवाए गए. मीडिया यह सब जानता है लेकिन वह चुप रहता है.’
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े रहे पर्यावरण व सामाजिक कार्यकर्ता गजानन यादव कहते हैं, ‘ऐसी ख़बरें हम सबको मिली हैं कि इस कार्यक्रम में जनता का पैसा पानी की तरह बहाया गया. ऐसे राजनीतिक काम पब्लिक के पैसे से नहीं करना चाहिए. ऐसे काम पार्टी को अपने पैसे से करना चाहिए. एक पार्टी ने अपने कार्यक्रम में पूरी राज्य मशीनरी को झोंक दिया, इसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. इस कार्यक्रम से नर्मदा के पर्यावरण को कोई फ़ायदा नहीं, बल्कि नुकसान ही होगा. मुझे पता चला है कि नर्मदा के किनारे-किनारे रोड बनाने का प्लान बन रहा है, ताकि खनन में आसानी हो. इससे पर्यावरण को तो और नुकसान ही होना है.’
वे कहते हैं, ‘ये पेड़ भी लगा रहे हैं जो फल-फूल देने वाले पेड़ हैं. जबकि पर्यावरण को फ़ायदा जंगली पेड़ों से होता है, जिनकी उम्र लंबी होती है. इन पेड़ों से पर्यावरण को बहुत फायदा नहीं होने वाला. फ़सल लगाने से नर्मदा का कितना भला होगा? अवैध खनन के बारे में ऐसा सामने आ रहा है कि सत्ता के नज़दीकी लोग ही अवैध खनन में लिप्त हैं. नर्मदा के लिए इस तरह का कर्मकांड करना मुझे तो समझ में नहीं आ रहा.’
राधेश्याम दांगी ने दुख जताते हुए कहा, ‘नर्मदा के संरक्षण के नाम पर नर्मदा के किनारे इतनी जनसंख्या जुटाई गई. पांच लाख लोगों का जो अपशिष्ट है वह भी तो नर्मदा में ही जाएगा. नर्मदा का संरक्षण अवैध खनन रोके बग़ैर कैसे होगा? वह भी नर्मदा के किनारे ही ऐसे बड़े प्रोग्राम आयोजित करके? इस पूरे कार्यक्रम में सिर्फ़ पैसे की बर्बादी हुई, जिसका मक़सद राजनीतिक था. सरकार इतने पैसे ख़र्च करके ट्रीटमेंट प्लांट लगाती, या नर्मदा में गिरने वाले गंदे नालों को साफ़ करने पर ख़र्च करती तो शायद ज़्यादा लाभ भी होता और पब्लिक का पैसा ऐसे बर्बाद न जाता.’
समाजवादी जनपरिषद से जुड़े गोपाल राठी का कहना है, ‘बालाघाट ज़िले से रूटीन की 100 बसें मोदी के कार्यक्रम में लगा दी गईं, जिससे जनता को ख़ासी परेशानी हुई. जब नर्मदा सेवा यात्रा हमारे होशंगाबाद से गुज़री, तभी हमने सवाल उठाया था कि जहां से यात्रा गुज़रती है, वहां पूरे 15 दिन पहले से पूरा प्रशासनिक महकमा लग जाता था. लोगों को जुटाना तो एक मद की बात हुई. लेकिन सरकार ने पूरी मशीनरी को इस यात्रा में इस्तेमाल किया. इस पूरे तामझाम का नर्मदा के संरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है.’
नर्मदा की दुर्दशा और सरकारी कर्मकांड पर टिप्पणी करते हुए गोपाल राठी बताते हैं, ‘एक तरफ नर्मदा सेवा यात्रा निकल रही है, दूसरी तरफ़ अवैध खनन जारी है. उस पर सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है. नर्मदा में शैवाल बढ़ गए हैं. पानी गंदा हो गया है, नहाने लायक नहीं रह गया है. जहां गर्मियों में दस फीट पानी होता था, अब घुटने भर पानी बचा है. नदी खत्म हो रही है, लेकिन सरकार कर्मकांड में उलझी है. नर्मदा का संरक्षण इस तरह जनता का पैसा बर्बाद करने से कैसे होगा? यह पूरी यात्रा सिर्फ़ जनता के धन की बर्बादी और ड्रामेबाजी है.’