अलग झारखंड के लिए आंदोलन शुरू करने वाले मार्क्सवादी और पूर्व लोकसभा सांसद एके रॉय का निधन

वरिष्ठ वाम नेता और सीटू झारखंड प्रदेश समिति के मुख्य संरक्षक रॉय को उम्र संबंधी दिक्कतों के कारण आठ जुलाई को यहां केंद्रीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

वरिष्ठ वाम नेता और सीटू झारखंड प्रदेश समिति के मुख्य संरक्षक रॉय को उम्र संबंधी दिक्कतों के कारण आठ जुलाई को यहां केंद्रीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

ak roy twitter
एके रॉय. (फोटो साभार: ट्विटर)

रांची: पूर्व लोकसभा सांसद और मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) के संस्थापक एके रॉय का रविवार को एक अस्पताल में निधन हो गया. पार्टी सूत्रों ने बताया कि रॉय 90 वर्ष के थे और अविवाहित थे.

वरिष्ठ वाम नेता और सीटू झारखंड प्रदेश समिति के मुख्य संरक्षक रॉय को उम्र संबंधी दिक्कतों के कारण आठ जुलाई को यहां केंद्रीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था जिसके कारण उनका निधन हुआ. वह झारखंड आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे. धनबाद से तीन बार के सांसद रॉय झारखंड की क्षेत्रीय पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति के संस्थापक भी थे.

रॉय 1977, 1980 और 1989 में धनबाद लोकसभा सीट से जीते. इसके अलावा उन्होंने बिहार विधानसभा में 1967, 1969 और 1972 में सिंदरी सीट का प्रतिनिधित्व किया.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) सुप्रीमो शिबू सोरेन और पूर्व सांसद दिवंगत बिनोद बिहारी महतो के साथ रॉय ने 1971 में बिहार से अलग राज्य की मांग को लेकर झारखंड आंदोलन शुरू किया था. जिसके चलते झारखंड 15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बन पाया.

रॉय का जन्म सपुरा गांव में हुआ जो अब बांग्लादेश में है. उनके पिता शिवेंद्र चंद्रा रॉय वकील थे. उन्होंने 1959 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में एमएससी की और दो साल तक एक निजी कंपनी में काम किया.

बाद में वह 1961 में पीडीआईएल सिंदरी में शामिल हो गए. उन्होंने नौ अगस्त 1966 को बिहार बंद आंदोलन में भाग लिया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

तत्कालीन सरकार का विरोध करने के कारण प्रोजेक्ट्स एंड डेवलेपमेंट इंडिया लिमिटेड (पीडीआईएल) प्रबंधन ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया. रॉय श्रमिक संघ में शामिल हुए और उन्होंने सिंदरी फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) और निजी कोयला खान मालिकों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया.

साल 1967 में उन्होंने माकपा की टिकट पर बिहार की सिंदरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए. हालांकि उन्होंने माकपा से इस्तीफा दे दिया और अपनी मार्क्सवादी समन्वय समिति बनाई.

रॉय को उनके साथी और समर्थक ‘राजनीतिक संत’ बुलाते थे क्योंकि अंतिम सांस लेने तक उनका बैंक खाता ‘शून्य बैलेंस’ ही दिखाता रहा.

रॉय पिछले एक दशक से धनबाद से 17 किलोमीटर दूर पथाल्दिह इलाके में एक पार्टी कार्यकर्ता के घर में रह रहे थे. इससे पहले वह यहां पुराना बाजार में टेम्पल रोड पर अपने पार्टी कार्यालय में रहे.

पूर्व एमसीसी विधायक आनंद महतो ने कहा, ‘वह देश के पहले सांसद थे जिन्होंने सांसदों के लिए 1989 में भत्ते एवं पेंशन बढ़ाने वाले प्रस्ताव का विरोध किया था हालांकि उनका प्रस्ताव गिर गया.’