कांग्रेस, द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने विधेयक को अलोकतांत्रिक बताया. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि यह विधेयक गरीब और छात्र विरोधी है तथा मौजूदा संस्करण में सिर्फ दिखावटी बदलाव किए गए हैं.
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने सोमवार को लोकसभा में विपक्षी दलों के विरोध के बीच ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक-2019’ (एनएमसी विधेयक) को चर्चा और पारित कराने के लिए रखते हुए कहा कि विधेयक भ्रष्टाचार को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नरेंद्र मोदी सरकार की नीति के साथ लाया गया है तथा यह इतिहास में भारतीय चिकित्सा क्षेत्र के सबसे बड़े सुधार के तौर पर दर्जा होगा.
कांग्रेस, द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने विधेयक को अलोकतांत्रिक और सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ बताया. इसके अलावा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के आह्वान पर इस विधेयक के विरोध में 5,000 से अधिक डॉक्टरों, मेडिकल छात्रों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों ने नई दिल्ली स्थित एम्स से निर्माण विहार तक मार्च निकालकर प्रदर्शन किया.
भाजपा ने कहा कि सरकार ने इस विधेयक में विपक्ष और चिकित्सक समुदाय की सभी भावनाओं का ख्याल रखा है और चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है.
लोकसभा में ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक-2019’ चर्चा और पारित कराने के लिए पेश करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि मोदी सरकार सबको गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है और 2014 से लगातार इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) में लंबे समय से भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही थीं. इस मामले में सीबीआई जांच भी हुई. ऐसे में इस संस्था के कायाकल्प की जरूरत हुई.
मंत्री ने यह भी कहा कि यह इतिहास में भारतीय चिकित्सा क्षेत्र के सबसे बड़े सुधार के तौर पर दर्जा होगा.
हर्षवर्धन ने कहा कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चलती है और यह विधेयक भी इसी भावना के साथ लाया गया है.
उन्होंने कहा, ‘मैं सदन को आश्वासन देता हूं कि विधेयक में आईएमए (भारतीय चिकित्सक संघ) की उठाई गई आशंकाओं का समाधान होगा.’
हर्षवर्धन ने कहा कि एनएमसी विधेयक एक प्रगतिशील विधेयक है जो चिकित्सा शिक्षा की चुनौतियों से पार पाने में मदद करेगा.
विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के विन्सेंट एच. पाला ने कहा कि एमसीआई के पुनर्गठन की जरूरत को हम मानते हैं कि नया विधेयक संस्था के अधिकारों को कमजोर कर अधिकतर नियंत्रण सरकार के हाथ में देता है.
उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई), भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) और सीबीआई की तरह सरकार एमसीआई के अधिकारों को भी कम कर रही है. सरकार ने स्थाई समिति की जरूरी सिफारिशों को भी नहीं माना है.
पाला ने विधेयक में सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं के प्रावधान पर सरकार से मानदंडों पर स्पष्टीकरण की मांग की.
उन्होंने कहा कि एमसीआई में भ्रष्टाचार की बात हम मानते हैं लेकिन मेडिकल कॉलेजों के निरीक्षण के मामले में आयोग में वैसी ही चीजें नहीं होंगी, सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी.
कांग्रेस सदस्य ने कहा कि विधेयक में निजी कॉलेजों के लिए नियम बनाने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है. सरकारी कॉलेजों के बारे में इतना विचार नहीं है.
उन्होंने विधेयक को वापस लेने की मांग की.
भाजपा के महेश शर्मा ने कहा कि सरकार ने इस संबंध में पहले लाए गए विधेयक में ब्रिज कोर्स आदि को लेकर चिकित्सक समुदाय की जो चिंताएं थीं उन्हें दूर करने का प्रयास किया है और आगे भी इस तरह की चिंताओं का निदान किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि देश में 2014 में 4 लाख डॉक्टरों की कमी थी. सरकार इस कमी को पूरा करने की दिशा में काम कर रही है.
पेशे से चिकित्सक शर्मा ने कहा कि देश में योग्य और दक्ष चिकित्सक हों तथा गुणवत्तापरक चिकित्सा शिक्षा हो, इसे पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार की है.
उन्होंने कहा कि जब एमसीआई अपनी जिम्मेदारी अदा करने में विफल हो गया, उसका व्यावसायीकरण हो गया और वह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया तो सरकार ने तुरंत कदम उठाए.
शर्मा ने कहा कि देश में कुल 536 मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें 121 केवल पिछले तीन साल में बने हैं. मोदी सरकार इस रफ्तार से चिकित्सा क्षेत्र में काम कर रही है. पिछले चार साल में एमबीबीएस की सीटें 25 प्रतिशत बढ़ी हैं.
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने एमसीआई में इंस्पेक्टर राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए. पूरे देश की चिकित्सा शिक्षा का मानकीकरण किया.
शर्मा ने कहा कि विधेयक के पिछले मसौदे में कुछ वर्गों की चिंता ब्रिज कोर्स के प्रावधान को लेकर थी तो सरकार ने उस व्यवस्था को खत्म कर दिया. सारी चिंताओं का निदान किया गया है और आगे भी किया जाएगा.
इस दौरान उन्होंने डॉक्टरों पर हमलों की घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि इसके लिए कोई कानून नहीं हो सकता, मानवतापूर्ण सोच के साथ ही इसे रोका जा सकता है.
द्रमुक के ए. राजा ने स्वास्थ्य को राज्य का विषय बताते हुए इस विधेयक को गरीब विरोधी, अलोकतांत्रिक, सामाजिक न्याय विरोधी तथा संघवाद की भावना के खिलाफ बताया.
उन्होंने कहा कि एमसीआई में भ्रष्टाचार सामने आने के बाद विधेयक लाया गया, लेकिन भ्रष्टाचार कहां खत्म हो गया?
एनएमसी विधेयक के विरोध में डॉक्टरों और छात्रों ने किया प्रदर्शन
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के आह्वान पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक, 2019 के विरोध में 5,000 से अधिक डॉक्टरों, मेडिकल छात्रों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों ने नई दिल्ली स्थित एम्स से निर्माण भवन तक मार्च निकालकर प्रदर्शन में हिस्सा लिया.
आईएमए देश में डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों की सबसे बड़ी संस्था है, जिसमें करीब तीन लाख सदस्य हैं. एनएमसी विधेयक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह लेगा और आईएमए इस विधेयक का विरोध कर रहा है.
आईएमए ने कहा कि यह विधेयक गरीब और छात्र विरोधी है तथा मौजूदा संस्करण में सिर्फ दिखावटी बदलाव किए गए हैं जबकि चिकित्सा बिरादरी द्वारा उठाई गईं मूल चिंताएं अब भी जस की तस हैं.
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष शांतनु सेन ने कहा, ‘एनएमसी, मेडिकल शिक्षा प्रणाली में पेश किया गया अब तक सबसे खराब विधेयक है और दुर्भाग्य से स्वास्थ्य मंत्री जो खुद एक डॉक्टर हैं, वह अपनी ही शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने पर आमादा हैं. हम लोग किसी भी कीमत पर इस अत्याचार को स्वीकार नहीं करेंगे.’
प्रदर्शनकारियों को निर्माण भवन के पास हिरासत में लिया गया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया.
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष (निर्वाचित) डॉ. राजन शर्मा ने कहा कि विधेयक में धारा 32 को जोड़े जाने से सिर्फ नीम हकीमी को वैधता मिल जायेगी जिससे आम जनता का जीवन खतरे में पड़ सकता है.