राजस्थान सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 33 ज़िलों को भूजल के हिसाब से कुल 295 ब्लॉक में बांटा गया है, जिनमें से 184 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं. इसका मतलब है कि आधे से ज़्यादा राज्य में ज़मीनी पानी कभी भी समाप्त हो सकता है.
जयपुर: देश की एकमात्र मरूभूमि राजस्थान भूजल संकट के कगार पर है. राज्य में भूजल के 295 ब्लॉक में से 184 अतिदोहित श्रेणी में आ चुके हैं. मतलब आधे से ज्यादा राज्य में जमीनी पानी कभी भी समाप्त हो सकता है. राज्य के कई विधायकों एवं पेयजल कार्यकर्ताओं ने इस पर चिंता जताते हुए तत्काल कदम उठाने की जरूरत बताई है.
राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 33 जिलों को भूजल के हिसाब से कुल 295 ब्लॉक में बांटा गया है, जिनमें से 184 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं. अतिदोहित यानी ऐसा इलाका जहां रिचार्ज के उपाय नहीं किए जाने पर भूजल कभी भी समाप्त हो सकता है. राज्य सरकार खुद हालात से चिंतित है.
भूजल मंत्री बुलाकी दास कल्ला ने शुक्रवार को विधानसभा में कहा, ‘राज्य में भू-जल की स्थिति अत्यन्त गंभीर है. कुल 295 ब्लॉक में से केवल 45 ब्लॉक सुरक्षित है जबकि 184 ब्लॉक अतिदोहित है.’
विधानसभा में सिंचाई व भूजल विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान कई विधायकों में राज्य में भूजल स्तर की स्थिति पर चिंता जताई. जैसलमेर से विधायक रूपाराम ने कहा, ‘भूजल की स्थिति बहुत ही दयनीय है. राजस्थान का क्षेत्रफल भारतवर्ष का 10.45 प्रतिशत है जबकि भूजल की उपलब्धता केवल 1.75 प्रतिशत है.’
रूपाराम ने कहा कि राज्य के 295 ब्लॉक में से आज की तारीख में केवल 45 ब्लॉक ही सुरक्षित हैं, जबकि ऐसे 34 ब्लॉक क्रिटिकल और 28 ब्लाक सेमीक्रिटिकल श्रेणी में हैं. अतिदोहित यानी ऐसे ब्लॉक जहां आगे चलकर भूजल खत्म हो जाएगा की संख्या 183 है. ऐसे ब्लॉक को डार्कजोन भी कहा जाता है क्योंकि यहां जमीन से जितना पानी निकाला जा रहा है उतना रिचार्ज नहीं हो रहा. एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 में ऐसे ब्लॉक की संख्या 164 थी.
गंगापुर से विधायक रामकेश मीणा ने भी सदन में भूजल की खराब स्थिति पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि राज्य में दोहन योग्य भूजल की मात्रा केवल 1.72 प्रतिशत है. राजस्थान में हमेशा न्यूनतम वर्षा होती है और राजस्थान प्रदेश भयंकर जल संकट की ओर जा रहा है.
जानकारों के अनुसार चिंता की बात यह है कि पानी का दोहन जिस अंधाधुंध तरीके से हो रहा है, रिचार्ज उस स्तर पर नहीं हो रहा. यही कारण है कि भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. राज्य के जोधपुर जैसे जिले में तो पानी 165 मीटर से भी अधिक नीचे चला गया है.
जलयोद्धा के रूप में चर्चित लक्ष्मण सिंह लापोड़िया के अनुसार संकट अविवेकपूर्ण इस्तेमाल का है. चाहे वह दैनिक जीवन में हो, निर्माण कार्य में या खेतीबाड़ी में. सरकार को इस ओर ध्यान देते हुए पानी का संयमित तथा विवेकपूर्ण इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए.
लक्ष्मण सिंह के अनुसार सरकार को इस बारे में कोई सोची समझी नीति लानी चाहिए साथ ही लोगों को भी जागरुक करना चाहिए. सिंह के अनुसार जल संकट के नाम पर सिर्फ हाहाकार मचाने से कुछ नहीं होगा.
भूजल मंत्री कल्ला के अनुसार राजस्थान में दो-तिहाई हिस्सा मरूस्थल होने और औसत वर्षा अत्यधिक कम होने के कारण जल की एक-एक बूंद बचाना और बचे हुए पानी का मितव्ययता से उपयोग किया जाना अत्यन्त आवश्यक है.
विधायक रूपाराम ने भी एक तरह से इस संकट के लिए भूजल के अंधाधुध दोहन को जिम्मेदार बताया और कहा कि 60 के दशक में ट्यूबवैल टेक्नोलाजी आने के बाद चाहे किसान हो या सरकार या उद्योग हर कोई ट्यूबवैल खोदने लगा.
उन्होंने सदन में सलाह दी की भूमिगत पानी को भूल जाना चाहिए और उसे एकदम रिजर्व मानना चाहिए. उन्होंने कहा कि सिंचाई तथा अन्य जरूरतों के लिए हमारे पास बांध व नहर आदि के जो मौजूदा संसाधन हैं उन्हें ही मजबूत बनाना चाहिए.
देश के 100 बड़े जलाशयों में 72 में सामान्य से कम मात्रा में जल भंडारण
मॉनसून के तकरीबन आधा गुजर जाने के बावजूद देश के 100 बड़े जलाशयों में 72 में पानी की मात्रा सामान्य से कम है. केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों से यह जाहिर होता है.
आंकड़ों के मुताबिक 25 जुलाई तक गंगा, कृष्णा और महानदी जैसी बड़ी नदियों के बेसिन में जल भंडारण की स्थिति कम है. खासतौर पर गुजरात और महाराष्ट्र में यह स्थिति चिंताजनक है.
आधिकारिक रूप से जून में शुरू हुए मॉनसून के बाद से देश के कई हिस्सों में अब तक कम बारिश हुई है. मौसम विभाग के 36 मौसम विज्ञान संभागों में 18 में कम बारिश दर्ज की गई है, जबकि 15 में सामान्य बारिश हुई है.