देश की अखंडता ब्रह्मचर्य-सी पवित्र है, इधर-उधर सोचने भर से भंग होने का ख़तरा रहता है

मैं प्रधानमंत्री के समर्थन में पत्र लिखने वाले 62 दिग्गजों का दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. ये अगर चाहते तो देश की छवि खराब करने वाले उन 49 लोगों की लिंचिंग भी कर सकते थे. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, बजाय इसके चिट्ठी लिखकर उन्होंने देश के बाकी लट्ठधारी राष्ट्रवादियों के सामने बहुत बड़ा आदर्श पेश किया है.

//
नरेंद्र मोदी और अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

मैं प्रधानमंत्री के समर्थन में पत्र लिखने वाले 62 दिग्गजों का दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. ये अगर चाहते तो देश की छवि खराब करने वाले उन 49 लोगों की लिंचिंग भी कर सकते थे. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, बजाय इसके चिट्ठी लिखकर उन्होंने देश के बाकी लट्ठधारी राष्ट्रवादियों के सामने बहुत बड़ा आदर्श पेश किया है.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

(प्रधानमंत्री जी के नाम पहले ही दो-दो चिट्ठियां लिखी जा चुकी हैं. उनसे फारिग होने में उन्हें थोड़ा वक्त लगेगा. और फिर, सामने वाला कुछ नहीं बोल रहा इसका मतलब यह थोड़े ही है कि उसके नाम चिट्ठी पर चिट्ठी लिखते जाएंगे. शराफ़त भी कोई चीज़ होती है. प्रधानमंत्री वैसे भी कम सोते हैं. चिट्ठियां लिख-लिखकर लोग उतना भी सोना मुहाल करने पर लगे हुए हैं, इसलिए मेरी यह चिट्ठी प्रधानमंत्री के नाम नहीं गृहमंत्री के नाम है.)

माननीय गृहमंत्री महोदय,

सबसे पहले तो मैं प्रधानमंत्री के समर्थन में पत्र लिखने वाले 62 दिग्गजों का दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. ये अगर चाहते तो देश की छवि खराब करने वाले उन 49 लोगों की पिटाई भी कर सकते थे. बासठ लोगों से तो अच्छा-खासा ‘मॉब’ बन जाता है. ये प्रबुद्ध जन उन 49 लोगों में से जिसकी चाहे उसकी ‘लिंचिंग’ कर सकते थे.

मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसकी बजाय चिट्ठी लिखी. देश के बाकी सूरमाओं के सामने ऐसा कर के इन लोगों ने बहुत बड़ा आदर्श पेश किया है. इन लोगों ने उचित ही देश की एकता-अखंडता और आज़ादी को पवित्र करार दिया है.

अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देश की एकता, अखंडता और आज़ादी से खिलवाड़ करने की इजाज़त किसी को नहीं दी जा सकती. इससे यह ज़रूरी बात भी पता चलती है कि देश का आज़ाद होना एक चीज़ है और देश में रहने वाले व्यक्तियों का आज़ाद होना दूसरी चीज़.

और यह भी कि देश की अखंडता ब्रह्मचर्य जैसी पवित्र चीज़ है. कुछ इधर-उधर सोचने भर से उसके भंग होने का खतरा रहता है. इन 62 प्रबुद्ध लोगों ने यह सच ही कहा है कि बोलने की आज़ादी तो मुल्क में आज से ज़्यादा कभी थी ही नहीं. जिसको जो मन में आता है वह बोलता है. सरकार कहां किसी को रोक रही है.

कोई गोडसे को देशभक्त बोल रहा है, कोई डार्विन को चुनौती दे रहा है, कोई यहां हज़ारों साल पहले प्लास्टिक सर्जरी करवा रहा है. वॉट्सऐप पर लोग एक-से-एक हैरतअंगेज़ बातें कर रहे हैं. किसी को रोका सरकार ने कुछ बोलने से?

लेकिन कुछ लोग इस आज़ादी का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं. वे इस विश्वगुरु देश की महान उपलब्धियों की बात न कर मॉब लिंचिंग की बात करने लगते हैं, ‘जय श्रीराम’ के नारों पर ऐतराज़ करने लगते हैं. विरोध के अधिकार की बात करने लगते हैं. यह सब देश की अखंडता के लिए खतरा नहीं तो और क्या है?

और फिर प्रधानमंत्री ने ‘मॉब लिंचिंग’ की भर्त्सना तो कर ही दी है. लोकतांत्रिक देश में इतना काफी है. आखिर भीड़ के भी कुछ अधिकार होते हैं. राष्ट्र की अंतरात्मा से भीड़ का सीधा कनेक्शन होता है, फिर जिस भीड़ ने सरकार को चुना है उसकी भावनाओं का सम्मान तो करना ही होगा. यही तो लोकतंत्र है!

इसके अलावा, प्रधानमंत्री क्या सारा काम-धाम छोड़कर बस लोगों की भीड़ के पीछे पड़े रहें? ये कविता, फिल्म, नाटक, तमाशे वालों को प्रधानमंत्री के पद की गरिमा तक का ख़्याल नहीं!

इन प्रबुद्ध लोगों ने यह भी सही फरमाया है कि आज देश की शोषित-वंचित जनता सच्चे अर्थों में सशक्त हुई है. स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई नहीं संभव तो क्या फर्क पड़ता है, वॉट्सऐप और फेसबुक पर लोगों को सारा ज्ञान मिल रहा है.

जो नौजवान नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते थे, वे आज बहादुरी और गर्व से गायों की रक्षा करने वाले सिपाही बनकर सम्मान पा रहे हैं.

देश के विकास के लिए लोग स्वेच्छा से अपने घर, ज़मीन, मजदूरी वगैरह का मोह छोड़ रहे हैं. पहले इसके लिए ज़ोर-जबरदस्ती होती थी. गोली-लाठी का ज़ोर लगाना पड़ता था, अब ऐसा नहीं है.

मज़दूर देश के लिए अपनी खुशी से मज़दूरी नहीं बढ़वा रहे हैं, किसान अपनी मर्ज़ी से खेतों का दान कर रहे हैं, आदिवासी खदानों के विकास के लिए खुद ही जंगल छोड़कर शहरों की सेहतमंद आबोहवा में मेहनत करना चाहते हैं. देश के लिए ऐसी भावना पहले कब दिखी है?

इस तरह देश विकास के रास्ते पर सीना तानकर आगे बढ़ रहा है. लेकिन कुछ लोग देश का विकास नहीं चाहते. ये जनता को अधिकार-वधिकार के नाम पर भड़काते हैं और सरकार कुछ करे तो कुछ फिज़ूल हंगामा खड़ा किया जाता है.

और मान लीजिए कहीं कुछ थोड़ा-बहुत ऊंच-नीच हो ही गई तो भई घर की बात घर जैसे निपटाई जाए तो बेहतर. अब राम के नाम पर भक्त कभी थोड़ा भावुक हो जाएं तो इतना बड़ा हंगामा खड़ा हो गया मानो कत्लेआम मच गया हो.

बात का बतंगड़ बना कर देश का नाम खराब करना कहां तक उचित है? उम्मीद है ऐसे खतरनाक लोगों ने निपटने में आप हमेशा की तरह दृढ़ निश्चय से काम लेंगे और विकास की ऐसी आंधी चलाएंगे कि इन विरोधियों के डेरे उड़कर पाकिस्तान क्या अफ़गानिस्तान पहुच जाएंगे.

आपका शुभचिंतक.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं और भोपाल में रहते हैं.)