देश की अदालतों में दो लाख से अधिक मामले 25 साल से लंबित: सीजेआई रंजन गोगोई

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने एक कार्यक्रम में कहा कि बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने को लेकर न्यायपालिका की आलोचना होती है, लेकिन देरी के लिए केवल न्यायपालिका ही नहीं, बल्कि न्याय प्रदान करने वाली व्यवस्था में कार्यपालिका की भी कुछ ज़िम्मेदारी बनती है.

(फोटोः पीटीआई)

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने एक कार्यक्रम में कहा कि बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने को लेकर न्यायपालिका की आलोचना होती है, लेकिन देरी के लिए केवल न्यायपालिका ही नहीं, बल्कि न्याय प्रदान करने वाली व्यवस्था में कार्यपालिका की भी कुछ ज़िम्मेदारी बनती है.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई. (फोटो: पीटीआई)
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने लंबित मामलों पर चिंता जताते हुए कहा कि देश की अदालतों में दो लाख से अधिक मामले 25 साल से लंबित हैं, जबकि एक हजार से अधिक मामलों का निपटारा 50 साल बाद भी नहीं हो पाया है.

जस्टिस गोगोई ने रविवार को यहां एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने को लेकर न्यायपालिका को आलोचना का सामना करना पड़ता है, लेकिन विलंब के लिए केवल न्यायपालिका ही पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है, बल्कि न्याय प्रदान करने वाली व्यवस्था में कार्यपालिका की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है.

उन्होंने कहा कि भारत में एक हजार से अधिक मामले 50 साल से और दो लाख से अधिक मामले 25 साल से लंबित हैं.

उन्होंने कहा कि करीब 90 लाख लंबित दीवानी मामलों में से 20 लाख से अधिक ऐेसे मामले हैं जिनमें अभी तक सम्मन तक तामील नहीं हुआ है.

जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘देश में दीवानी मामलों का यह लगभग 23 फीसदी है. फौजदारी मामलों में आंकड़ा और भी खराब है. फौजदारी के 2.10 करोड़ लंबित मामलों में से सम्मन के स्तर पर लंबित मामलों की संख्या एक करोड़ से अधिक है.’

गोगोई  ने कहा, ‘यदि सम्मन तामील नहीं हुए हैं तो मेरे न्यायाधीश किस तरह मुकदमा शुरू कर सकते हैं? यह कार्यपालिका से मेरा सवाल है. सम्मन तामील कराना पूरी तरह कार्यपालिका पर निर्भर है.’

उन्होंने कहा कि फौजदारी के कुल लंबित मामलों में से करीब 45 लाख छोटे-मोटे अपराधों के हैं.

चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्होंने 10 जुलाई को विभिन्न हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को संबोधित किया था और उनसे 50 और 25 साल पुराने मामलों को निपटाने का आग्रह किया था.

उन्होंने गुवाहाटी हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी को असम में लंबित इस तरह के मामलों को जल्द से जल्द निपटाने का निर्देश दिया.

जस्टिस गोगोई ने यह उम्मीद भी जताई कि केंद्र हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने के उनके प्रस्ताव को स्वीकार करेगा.

गोगोई ने कहा, ‘तात्कालिक परिणाम के रूप में, सेवानिवृत्ति की आयु तीन साल के लिए बढ़ जाएगी. इन तीन वर्षों में हम 403 रिक्तियों को अच्छे न्यायाधीशों से भर सकते हैं. यह मेरा सपना है. यह काम मेरे उत्तराधिकारी चीफ जस्टिस द्वारा किया जाना चाहिए और मुझे नहीं लगता कि वह भारतीय न्यायपालिका का चेहरा क्यों नहीं बदल सकते.’

चीफ जस्टिस ने निचली अदालतों के मुद्दे पर कहा कि 6,000 में 4,000 रिक्त पदों को पहले ही भरा जा चुका है और 1,500 और रिक्तियों को इस साल के अंत तक भर दिया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘जहां तक हाई कोर्टों का संबंध है तो देशभर में 1,079 पदों में से 403 खाली हैं. मैंने (हाईकोर्टों) के चीफ जस्टिस से कहा है कि वे अपनी सिफारिशें भेजें. अच्छी सिफारिशें करें.’

गोगोई ने कहा कि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसा कोई मामला नहीं है जो 50 साल से लंबित हो, लेकिन ऐसे 106 मामले हैं जो 25 साल से लंबित हैं.

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