कश्मीर की ज़मीन पर कब्ज़े और वर्चस्व के लिए अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया गया

केंद्र की मोदी सरकार ने राष्‍ट्रपति के आदेश से जम्‍मू कश्‍मीर को विशेष राज्‍य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को सोमवार को ख़त्म कर दिया. इसके साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट ​दिया गया.

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New Delhi: Union Home Minister Amit Shah arrives at Parliament for the Budget Session, in New Delhi, Monday, Aug 5, 2019. Home Minister will make a statement in Parliament today amidst speculation that it could be on Jammu and Kashmir.(PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI8_5_2019_000033B)
New Delhi: Union Home Minister Amit Shah arrives at Parliament for the Budget Session, in New Delhi, Monday, Aug 5, 2019. Home Minister will make a statement in Parliament today amidst speculation that it could be on Jammu and Kashmir.(PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI8_5_2019_000033B)

केंद्र की मोदी सरकार ने राष्‍ट्रपति के आदेश से जम्‍मू कश्‍मीर को विशेष राज्‍य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को सोमवार को ख़त्म कर दिया. इसके साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया.

New Delhi: Union Home Minister Amit Shah arrives at Parliament for the Budget Session, in New Delhi, Monday, Aug 5, 2019. Home Minister will make a statement in Parliament today amidst speculation that it could be on Jammu and Kashmir.(PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI8_5_2019_000033B)
गृहमंत्री अमित शाह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भाजपा के मातृ संगठन के एजेंडे में यह शुरू से रहा है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करना है. भाजपा भी अक्सर अपने घोषणा-पत्रों में कहती रहती है और जनसंघ भी यही कहता रहा है. भारत के निर्माण के दौरान और उसके तत्काल बाद जितनी भी पार्टियां थीं, उनमें से किसी का भी एजेंडा नहीं था कि अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाए.

संविधान सभा ने 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 को अपनाया था. उस समय जनसंघ के संस्थापक और भाजपा नेताओं के आराध्य नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे. अनुच्छेद 370 जब संविधान सभा में पास किया जा रहा था तब मुखर्जी ने उसका विरोध नहीं किया था.

अनुच्छेद 370 से बार-बार श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नाम जोड़ा जाता है क्योंकि उसी के खिलाफ अभियान चलाते हुए वे सरहदी सूबे में गए और उसी दौरान श्रीनगर की जेल में उनका इंतकाल हो गया था. हालांकि, उन्होंने विरोध तब किया जब जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने भूमि सुधार शुरू कर दिया था.

भूमि सुधार के तहत गरीबों और उत्पीड़ित तबकों को जमीन दिए जाने से बहुत अधिक खेती की जमीन वाले डोगरा जमींदारों और कश्मीर पंडितों की लॉबी आहत थी. यही कारण था कि अनुच्छेद 370 के विरोध का बहाना बनाकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को विरोध के लिए भेजा गया था.

मुखर्जी, जवाहर लाल नेहरू की मंत्रिमंडल के सदस्य भी थे और उन्होंने उस मंत्रिमंडल से अनुच्छेद 370 के बजाय नेहरू-लियाकत समझौते को लेकर इस्तीफा दिया था.

‘धरती के स्वर्ग’ की ज़मीन पर क़ब्जे़ के लिए अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया गया

आज जब अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया है तो इसके पीछे की असली कहानी ये है कि कैसे इसको खत्म करके अपनी पसंद का राज स्थापित किया जाए. बहुत सारे कारोबारी, बड़ी कंपनियां, बड़े होटलों के मालिक लंबे समय से इंतजार कर रहे थे कि कैसे धरती के स्वर्ग की जमीनों पर कब्जा किया जाए, कैसे जायदाद बनाई जाए और कैसे वहां पर वर्चस्व कायम किया जाए, अब उनके सपने पूरे हो सकेंगे.

इस मामले में बहुत सारे लोगों के हित इकट्ठा हो गए और सरकार ने आरएसएस, कॉरपोरेट और बड़ी कंपनियों के एजेंडे को पूरा करने के लिए यह कदम उठाया है.

आर्थिक संकट जैसे मुद्दों से भटकाने की साज़िश

दूसरा पहलू यह है कि सरकार के सामने गहरा संकट है और अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है. बड़े और सरकार के भक्त कारोबारी भी नीतियों की आलोचना कर रहे हैं. बड़े और सफल उद्यमी भी आत्महत्या कर रहे हैं.

बड़े-बड़े बैंकर कह रहे हैं कि हम सुबह उठते हैं और आसमान में देखते हैं तो सोचते हैं कि हमारा बैंक बचेगा या नहीं? ऐसे में यह मुद्दों से भटकाने की रणनीति भी हो सकती है.

मोदी सरकार लोगों को चौंकाने में माहिर है और वह पूर्व में नोटबंदी जैसे फैसले से ऐसे कर चुकी है. बहुत सारे कारणों से ऐसा हुआ है जिसमें आरएसएस का अपना राजनीतिक एजेंडा तो शामिल है ही साथ ही बहुत से अन्य राजनीतिक एजेंडे भी शामिल है.

कश्मीर की बर्बादी में सभी सरकारों का योगदान

शुरू से ही भारत की विभिन्न सरकारों की जैसी नीतियां थीं, उसी वजह से वहां उग्रवाद पैदा हुआ जिसमें कश्मीरी अवाम के कुछ हिस्से शामिल रहे. जम्मू कश्मीर जब भारत में मिला था तब वहां आतंकवाद नाम की चीज नहीं थी.

जम्मू कश्मीर के लोगों ने तो कबिलाई पोशाक पहनकर आने वाले पाकिस्तान के घुसपैठियों के खिलाफ डोगरा महाराजा और भारत की सेना के साथ मिलकर बारामूला और कई अन्य इलाकों की लड़ाई लड़ी थी, जिसमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे.

जो लोग कहते हैं नेहरू ने मौका नहीं दिया वरना भारतीय सेना सब फतह कर लेती, उन लोगों को पता नहीं है कि द्रास और कारगिल को कब स्वतंत्र कराया गया. द्रास और कारगिल को बहुत बाद में स्वतंत्र कराए गए थे.

जब संयुक्त राष्ट्र में भारत गया तब भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन थे और दोनों देशों की सेनाओं के मुखिया अंग्रेज थे. हालांकि, आरएसएस और भाजपा नेताओं को इतिहास और तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो केवल इतिहास को ध्वस्त करने से मतलब है.

वाजपेयी और मनमोहन के कामों को आगे बढ़ाने में विफल रही मोदी सरकार

जम्मू कश्मीर में भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी सरकार ने कुछ अच्छे काम किए और फिर मनमोहन सिंह ने उसे आगे और बेहतर परिणाम दिया. उन कामों को आगे बढ़ाकर एक शांत और सुखी माहौल बनाने के बजाय इन्होंने (मोदी सरकार) उल्टा रास्ता अपनाया.

इन्होंने लोकतंत्र के ढांचों को ध्वस्त करने का काम किया. पहले तो ये जम्मू कश्मीर को तीन भागों में बांटने की बात कर रहे थे लेकिन आरएसएस में भी दो विचार आ गए कि अगर लद्दाख की तरह जम्मू को भी अलग कर देंगे तो कश्मीर घाटी पूरी तरह से मुस्लिम बहुल हो जाएगी और इससे खतरा बढ़ जाएगा.

इसके बाद उन्होंने कश्मीर घाटी में जम्मू को भी मिलाने का फैसला किया क्योंकि इससे आबादियों का भी संतुलन बना रहेगा और विधानसभाओं के पुनर्गठन में भी आसानी रहेगी.

गलतियों की समीक्षा के बजाय अच्छे कामों को ध्वस्त किया

भारतीय संघ में विलय (इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ एक्सेशन) का अनुच्छेद 7 और 8 यह साफ-साफ बताता है कि जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अलग पहचान देने की बात कही गई है.

इसके बाद दिल्ली समझौते में इसी बात को आगे बढ़ाया गया है. इस तरह केंद्र सरकारों ने जम्मू कश्मीर की सरकारों से अब तक जितने भी समझौते किए उन सभी परंपराओं को मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 (अनुच्छेद 370 ख़त्म) को एक बार में ही ध्वस्त कर दिया.

जम्मू कश्मीर में जो एक लोकतांत्रिक ढांचा बना था, उसे मजबूत और बेहतर करने और आतंकवाद को खत्म करने के बजाय सरकार ने सभी अच्छे कामों को ध्वस्त कर दिया. जो बुरे काम किए गए थे और जिनकी वजह से आतंकवाद और उग्रवाद फैला, उसकी समीक्षा नहीं की गई.

एक बेहतर लोकतंत्र वो होता है जो अपनी गलतियों की समीक्षा करता है.

केवल नाम भर का रह गया था अनुच्छेद 370

1987 में कांग्रेस के शासन में चुनाव कराए गए थे, मैं उसकी भी आलोचना करता हूं. अगर फर्जी तरीके से चुनाव नहीं कराए गए होते… वहां के लोगों की आवाज सुनी गई होती… अगर वहां वाकई विकास पर ध्यान दिया गया होता… शेख अब्दुल्ला को भूमि सुधार जैसे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने दिया गया होता… मार्च-अप्रैल 1965 में जो बदलाव किए गए वो न किए गए होते तो हालात बेहतर होते.

सदर-ए-रियासत (राज्यपाल), वज़ीर-ए-आज़म (प्रधानमंत्री) के पदों खत्म कर, निर्वाचन आयोग का दायरा बढ़ाकर और सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्रों को बढ़ाकर अनुच्छेद 370 को क्रमश: खत्म कर दिया गया था और वह केवल नाम के लिए बचा था.

नेहरू, वीपी मेनन, शेख अब्दुल्ला और महाराजा हरि सिंह की वजह से जम्मू कश्मीर का भारत में सम्मिलन हुआ लेकिन फिर भी शेख अब्दुल्ला को कई मामलों में झुकना पड़ा.

जम्मू कश्मीर में दिल्ली जैसी बिना अधिकारों वाली सरकार बनेगी

एक ऐसा सूबा जिसके पास अपनी संविधान सभा थी उसके वजूद को चुनौती देकर आप कह रहे हैं कि हम आपको पूर्ण राज्य का भी दर्जा नहीं देंगे. इतिहास का ऐसा न्याय नहीं हो सकता है.

यह बहुत ही अदूरदर्शी, असंगत, अविवेकपूर्ण फैसला है जो संवैधानिक लोकतंत्र को कमजोर करता है क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश बनाकर एक सूबे से आप उसकी विधानसभा छीन रहे हैं.

वहां पर आप एक ऐसी चुनी हुई सरकार लाएंगे जिसके पास दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की तरह कोई अधिकार नहीं होगा. कश्मीर की मौजूदा समस्याओं के समाधान यह तरीका तो बिल्कुल नहीं हो सकता है.

(विशाल जायसवाल से बातचीत पर आधारित)