ताले में बंद कश्मीर की कोई ख़बर नहीं, पर जश्न में डूबे शेष भारत को इससे मतलब नहीं

सदन में अमित शाह ने कहा कि नेहरू कश्मीर हैंडल कर रहे थे, सरदार पटेल नहीं. यह इतिहास नहीं है मगर अब इतिहास हो जाएगा क्योंकि अमित शाह ने कहा है. उनसे बड़ा कोई इतिहासकार नहीं है.

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View of a deserted road during restrictions in Srinagar, August 5, 2019. REUTERS/Danish Ismail

सदन में अमित शाह ने कहा कि नेहरू कश्मीर हैंडल कर रहे थे, सरदार पटेल नहीं. यह इतिहास नहीं है मगर अब इतिहास हो जाएगा क्योंकि अमित शाह ने कहा है. उनसे बड़ा कोई इतिहासकार नहीं है.

View of a deserted road during restrictions in Srinagar, August 5, 2019. REUTERS/Danish Ismail
फोटो: रायटर्स

कश्मीर ताले में बंद है. कश्मीर की कोई ख़बर नहीं है. शेष भारत में कश्मीर को लेकर जश्न है. शेष भारत को कश्मीर की ख़बर से मतलब नहीं है. एक का दरवाज़ा बंद कर दिया गया है. एक ने दरवाज़ा बंद कर लिया है.

जम्मू कश्मीर और लद्दाख का पुनर्गठन विधेयक पेश होता है. ज़ाहिर है यह महत्वपूर्ण है और ऐतिहासिक भी. राज्यसभा में पेश होता है और विचार के लिए वक्त भी नहीं दिया जाता है.

जैसे कश्मीर बंद है वैसे संसद भी बंद थी. पर कांग्रेस ने भी ऐसा किया था इसलिए सबने राहत की सांस ली. कांग्रेस ने भाजपा पर बहुत एहसान किया है.

सड़क पर ढोल-नगाड़े बज रहे हैं. किसी को पता नहीं क्या हुआ है, कैसे हुआ है और क्यों हुआ है. बस एक लाइन पता है जो वर्षों से पता है.

राष्ट्रपति राज्यपाल की सहमति बताते हैं. राज्यपाल दो दिन पहले तक कह रहे हैं कि मुझे कुछ नहीं पता. कल क्या होगा पता नहीं. राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है. राष्ट्रपति ने केंद्र की राय को राज्य की राय बता दिया. साइन कर दिया.

जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब राज्य नहीं हैं. दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया. राज्यपाल का पद समाप्त. मुख्यमंत्री का पद समाप्त. राजनीतिक अधिकार और पहचान की काट-छांट हो जाती है. इतिहास बन जाता है.

शेष भारत ख़ासकर उत्तर भारत में धारा 370 की अपनी समझ है. क्या है और क्यों है इससे मतलब नहीं है. यह हटा है इसे लेकर जश्न है. इसके दो प्रावधान हटे हैं और एक बचा है. वो भी हट सकता है मगर अब उसका मतलब नहीं है.

जश्न मनाने वालों में एक बात साफ है. उन्हें अब संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावलियों में कोई आस्था नहीं. वे न न्यायपालिका की परवाह करते हैं और न कार्यपालिका की और न विधायिकाओं की.

संस्थाओं की चिंता का सवाल मृत घोषित किया जा चुका है. लोग अमरत्व को प्राप्त कर चुके हैं.

यह अंधेरा नहीं है. बहुत तेज़ उजाला है. सुनाई ज़्यादा देता है, दिखाई कम देता है. लोक ने लोकतंत्र को ख़ारिज कर दिया है. परेशान होने की ज़रूरत नहीं है.

लोगों को अपने बीच कोई शत्रु मिल गया है. कभी वो मुसलमान हो जाता है, कभी कश्मीरी हो जाता है. नफ़रत के कई कोड से लोगों की प्रोग्रामिंग की जा चुकी है. उन्हें बस इससे संबंधित शब्द दिख जाना चाहिए, उनकी प्रतिक्रिया समान रूप से छलक आती है.

धारा 370 को लेकर सबने राजनीति की है. भाजपा से पहले कांग्रेस ने दुरुपयोग किया. धारा 370 के रहते मर्ज़ी चलाई, उसे निष्प्रभावी किया.

इस खेल में राज्य के राजनीतिक दल भी शामिल रहे. या फिर उनकी नाकामियों को धारा 370 की नाकामी बता दिया गया. कश्मीर की समस्या को काफी लपेटा गया और लटकाया गया.

उसमें बहुत से घपले भाजपा के आने से पहले हुए. भाजपा ने भी राजनीति की मगर खुल कर कहा कि हटा देंगे और हटा दिया. 35-A तो हटा ही दिया. लेकिन कब कहा था कि धारा 370 हटाएंगे तो राज्य ही समाप्त कर देंगे?

यह प्रश्न तो है लेकिन जिसके लिए है उसे इससे मतलब नहीं है. नोटबंदी के समय कहा गया था कि आतंक की कमर टूट जाएगी. नहीं टूटी. उम्मीद है इस बार कश्मीर के हालात सामान्य होंगे.

अब वहां के लोगों से बातचीत का तो प्रश्न ही नहीं. सबके लिए एक नाप का स्वेटर बुना गया है, पहनना ही होगा. राज्य का फ़ैसला हो गया. राज्य को पता ही नहीं.

कश्मीरी पंडितों की हत्या और विस्थापन का दंश आज भी चुभ रहा है. उनकी वापसी का इसमें क्या प्लान है किसी को नहीं पता.

आप यह नहीं कह सकते कि कोई प्लान नहीं है क्योंकि किसी को कुछ नहीं पता. यह वो प्रश्न है जो सबको निरुत्तर करता है. कश्मीरी पंडित ख़ुश हैं.

घाटी में आज भी हज़ारों कश्मीरी पंडित रहते हैं. बड़ी संख्या में सिख रहते हैं. ये कैसे रहते हैं और इनका क्या अनुभव है, कश्मीर के विमर्श में इनकी कोई कथा नहीं है. हम लोग नहीं जानते हैं.

Residents cross a street during restrictions in Srinagar. (Photo:Reuters)
फोटो: रॉयटर्स

अमित शाह ने धारा 370 को कश्मीर की हर समस्या का कारण बता दिया. ग़रीबी से लेकर भ्रष्टाचार तक का कारण. आतंक का तो बताया ही. रोजगार मिलेगा. फ़ैक्ट्री आएगी.

ऐसा लग रहा है 1990 का आर्थिक उदारीकरण लागू हो रहा है. इस लिहाज़ से यूपी में बहुत बेरोज़गारी है. अब उसे रोजगार और फ़ैक्ट्री के नाम पर पांच केंद्र शासित प्रदेश में कोई न बांट दे!

एक अस्थायी प्रावधान हटा कर दूसरा अस्थायी प्रावधान लाया गया है. अमित शाह ने कहा है कि हालात सामान्य होंगे तो फिर से राज्य बना देंगे. यानी हमेशा के लिए दोनों केंद्र शासित प्रदेश नहीं बने हैं.

यह साफ नहीं है कि जब हालात सामान्य होंगे तो तीनों को वापस पहले की स्थिति में लाया जाएगा या सिर्फ जम्मू कश्मीर राज्य बनेगा. अभी हालात ही ऐसे क्या थे कि राज्य का दर्जा ही समाप्त कर दिया.

उम्मीद है कश्मीर में कर्फ़्यू की मियाद लंबी न हो. हालात सामान्य हों. कश्मीर के लोगों का आपसी संपर्क टूट चुका है. जो कश्मीर से बाहर हैं वे अपने घरों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं. इस स्थिति में जश्न मनाने वालों का कलेजा बता रहा है कि हम क्या हो चुके हैं.

एक भीड़ है जो मांग कर रही है कि आप स्वागत कर रहे हैं या नहीं. ख़ुद भाजपा धारा 370 के विरोध करने वाले जनता दल यूनाइटेड के साथ एडजस्ट कर रही है. विरोध के बाद भी उसके साथ सरकार में है.

आप प्रक्रिया पर सवाल उठा दें तो गाली देने वालों का दस्ता टूट पड़ेगा. वहां बिहार में भाजपा मंत्री पद का सुख भोगती रहेगी.

कश्मीर में ज़मीन ख़रीदने की ख़ुशी है. दूसरे राज्यों से भी ऐसे प्रावधान हटाने की ख़ुशी मनाने की मांग करनी चाहिए. उन आदिवासी इलाक़ों में जहां पांचवी अनुसूची के तहत ज़मीन ख़रीदने की बंदिश है वहां भी नारा लग सकता है कि जब तक यह नहीं हटेगा भारत एक नहीं होगा.

तो क्या एक भारत की मांग करने वाले अपने इस नारे को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में भी जाएंगे या फिर कश्मीर तक ही सीमित रहेंगे?

तरीक़ा तो अच्छा नहीं था, दुआ कीजिए नतीजा अच्छा हो. लेकिन नीयत ठीक न हो तो नतीजा कैसे अच्छा हो सकता है. कश्मीर को इसकी काफी क़ीमत चुकानी पड़ रही थी.

India's Home Minister Amit Shah greets the media upon his arrival at the parliament in New Delhi, India, August 5, 2019. REUTERS/Stringer
गृहमंत्री अमित शाह (फोटो: रॉयटर्स)

शायद कश्मीर को शेष भारत की आधी-अधूरी जानकारी का कोपभाजन न बनना पड़े. क्या ऐसा होगा? किसी को कुछ पता नहीं है. कश्मीरी लोगों की चिंता की जानी चाहिए. उन्हें गले लगाने का समय है.

आप जनता हैं. आपके बीच से कोई मैसेज भेज रहा है कि उनकी बहू-बेटियों के साथ क्या करेंगे. अगर आप वाक़ई अपने जश्न के प्रति ईमानदार हैं तो बताइये इस मानसिकता के लोगों को लेकर आपका जश्न कैसे शानदार हो सकता है?

जश्न मनाते हुए लोगों का दिल बहुत बड़ा है. उनके पास बहुत से झूठ और बहुत-सी नाइंसाफियों से मुंह फेर लेने का साहस है. तर्क और तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है. हां और न ज़रूरी है.

लोग जो सुनना चाहते हैं वही कहिए. कई लोगों ने यह नेक सलाह दी है. कश्मीर भीड़ की प्रोग्रामिंग को ट्रिगर कर सकता है इसलिए चुप रहने की सलाह दी गई.

इतिहास बन रहा है. एक कारख़ाना खुला है. उसमें कब कौन-सा इतिहास बन कर बाहर आ जाए किसी को पता नहीं चलता है. जहां इतिहास बना है वहां ख़ामोशी है.

जहां जश्न है वहां पहले के किसी इतिहास से मतलब नहीं है. जब मतलब होता है तो इतिहास को अपने हिसाब से बना लेते हैं.

सदन में अमित शाह ने कहा कि नेहरू कश्मीर हैंडल कर रहे थे, सरदार पटेल नहीं. यह इतिहास नहीं है मगर अब इतिहास हो जाएगा क्योंकि अमित शाह ने कहा है. उनसे बड़ा कोई इतिहासकार नहीं है.

नोट- लतीफ़ा बनाने वालों को बताइये कि कश्मीर एक गंभीर मसला है. पेंशन का मसला नहीं है. इनमें और अश्लील मैसेज भेजने वालों में कोई फ़र्क़ नहीं. दोनों को कश्मीर के लोगों से मतलब नहीं है.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)

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