पिछले साल इसी अवधि में आपात कोष 2.32 लाख करोड़ रुपये पर था. यह वह कोष है जो केंद्रीय बैंक आपात स्थिति से निपटने के लिए अपने पास रखता है.
मुंबई: रिजर्व बैंक का आकस्मिक या आपात कोष जून में समाप्त वर्ष में घटकर 1.96 लाख करोड़ रुपये रह गया. सरकार को रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष में से 52,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त भुगतान से उसकी आकस्मिक निधि में कमी आई है.
यह वह कोष है जो केंद्रीय बैंक आपात स्थिति से निपटने के लिये अपने पास रखता है.
रिजर्व बैंक की द्वारा जारी 2018-19 (जुलाई-जून) की सालाना रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए उपभोग और निजी निवेश बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है. आरबीआई का वित्त वर्ष जुलाई से जून होता है.
हालांकि, यह रिपोर्ट 30 जून को समाप्त वित्त वर्ष के लिए है लेकिन इसमें अगस्त के आखिरी सप्ताह में विमल जालान समिति की रिपोर्ट पर रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक में इस सप्ताह की शुरुआत में विचार विमर्श और सिफारिशों को मंजूर किए जाने का भी जिक्र किया गया है.
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने जालान समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए इसी सप्ताह सोमवार को रिकॉर्ड 1.76 लाख करोड़ रुपये सरकार को देने का फैसला किया.
इससे नरेंद्र मोदी सरकार को राजकोषीय घाटा बढ़ाए बिना सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिलेगी.
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालान समिति का गठन केंद्रीय बैंक के लिए उपयुक्त आर्थिक पूंजी नियम पर विचार करने और इस संबंध में जरूरी सिफारिशें देने के लिए किया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार 30 जून 2019 को समाप्त वित्त वर्ष में रिजर्व बेंक का आकस्मिक कोष घटकर 1,96,344 करोड़ रुपये पर आ गया जो इससे पिछले साल इसी अवधि में यह 2,32,108 करोड़ रुपये पर था.
आर्थिक वृद्धि में कमी के बारे में आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मौजूदा नरमी चक्रीय गिरावट है. केंद्रीय बैंक ने कहा है कि नीति निर्माताओं और सरकार की शीर्ष प्राथमिकता उपभोग और निजी निवेश बढ़ाने की होनी चाहिए.
हालांकि केंद्रीय बैंक ने इस बात को स्वीकार किया है कि सही समस्या की पहचान करना मुश्किल है. लेकिन इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने कहा कि जमीन, श्रम और कृषि उपज विपणन क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों को छोड़कर अन्य मुद्दों की प्रकृति संरचनात्मक नहीं है.
उल्लेखनीय है कि 31 मार्च 2018 को समाप्त वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रही जो पांच साल का न्यूनतम स्तर है. रिजर्व बैंक ने इसी महीने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अपने अनुमान को घटाकर 6.9 प्रतिशत किया है.
केंद्रीय बैंक ने कहा कि सर्वोच्च प्राथमिकता उपभोग में सुधार और निजी निवेश में बढ़ोतरी की है. रिजर्व बैंक ने कहा, ‘बैंकिंग और गैर- बैंकिंग क्षेत्रों को मजबूत कर, बुनियादी ढांचा खर्च में बड़ी वृद्धि और श्रम कानून, कराधान और अन्य कानूनी सुधारों के क्रियान्वयन के जरिए इसे हासिल किया जा सकता है.’
फंसे कर्ज के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) का जल्द पता चलने और उसके जल्द समाधान होने से बैंकों का डूबा कर्ज कम हुआ है.
वित्त वर्ष 2018-19 में बैंकों का फंसा कर्ज उसके कुल कर्ज का 9.1 प्रतिशत पर नियंत्रित करने में मदद मिली है. एक साल पहले यह 11.2 प्रतिशत के स्तर पर थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरुआती कठिनाइयों के बाद दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता पूरा माहौल बदलने वाला कदम साबित हो रही है. इसमें कहा गया है, ‘पुराने फंसे कर्ज की प्राप्तियों में सुधार आ रहा है और इसके परिणामस्वरूप, संभावित निवेश चक्र में जो स्थिरता बनी हुई थी उसमें सुगमता आने लगी है.’
इसमें कहा गया है कि पूंजी बफर को 2.7 लाख करोड़ रुपये की नई पूंजी डालकर मजबूत किया गया है. इसमें 2019-20 के बजट का आवंटन भी शामिल है. इसके साथ ही दबाव हल्का होने से बैंक ऋण प्रवाह बढ़ने की उम्मीद भी बढ़ गई है.