संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में पिछले साल संघर्ष और हिंसा के चलते तकरीबन साढ़े चार लाख लोग विस्थापित हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र के एक निगरानी केंद्र की नई रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में पिछले साल आपदाओं और पहचान व जातीयता से संबद्ध संघर्षों के चलते करीब 28 लाख लोग आंतरिक तौर पर विस्थापित हुए.
नॉर्वे शरणार्थी परिषद (एनआरसी) के आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र की ओर से जारी एक नई रिपोर्ट में विस्थापन की समस्या से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत का स्थान तीसरा है, इसके बाद चीन और फिलीपींस हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में संघर्ष और हिंसा के चलते 4,48,000 नए लोग विस्थापित हुए हैं. इसके अलावा करीब 24,00,000 लोग आपदाओं के चलते विस्थापित हुए.
रिपोर्ट के अनुसार, चीन और फिलीपींस के साथ भारत में लगातार सबसे अधिक संख्या में विस्थापन देखा जा रहा है. हालिया वर्षों में विस्थापन मुख्यत: बाढ़ और तूफानी घटनाओं से संबद्ध रहे.
हालांकि भारत के करीब 68 प्रतिशत क्षेत्र सूखा संभावित, 60 प्रतिशत भूकंप संवेदी और देश के 75 प्रतिशत तटीय हिस्से चक्रवातों और सुनामी संभावित क्षेत्र हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, संघर्ष अधिकतर पहचान और जातीयता से संबद्ध रहते हैं. क्षेत्रीयता और जातीयता आधारित संघर्ष समेत यह हिंसक अलगाववाद और पहचान-आधारित आंदोलनों के साथ स्थानीय हिंसा का रूप ले लेता है.
बहरहाल भारत की उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि और इसकी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में सुधार के हालिया प्रयास सामाजिक समूहों और शहरी व ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच की असमानता को पाटने में नाकाम रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया, जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्सपा) अब भी लागू हैं और अत्यधिक व असंगत बल प्रयोग के लिए किसी भी तरह के दंड के प्रावधान से मिली छूट के चलते मानवाधिकार उल्लंघन होते हैं.