आरटीआई इस्तेमाल की गति धीमी, 14 साल में महज 2.5 फीसदी लोगों ने किया उपयोग: रिपोर्ट

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट में सूचना आयोगों में पदों की रिक्ति को आरटीआई की सक्रियता के लिए बाधक बताया गया है. राज्यों के मामले में उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है.

(फोटो साभार: विकीपीडिया)

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट में सूचना आयोगों में पदों की रिक्ति को आरटीआई की सक्रियता के लिए बाधक बताया गया है. राज्यों के मामले में उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)
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नई दिल्ली: भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत हथियार के रूप में लागू किए गए सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के इस्तेमाल की गति बीते 14 सालों में धीमी रही है और महज 2.5 फीसदी लोगों ने इस कानून का इस्तेमाल किया.

राज्यों के मामले में उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है.

शनिवार को आरटीआई दिवस की पूर्व संध्या पर गैरसरकारी शोध संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2005 में आरटीआई कानून लागू होने के बाद 14 सालों में देश के कुल 3.02 करोड़ (लगभग 2.25 प्रतिशत) लोगों ने ही आरटीआई का इस्तेमाल किया है.

केंद्रीय सूचना आयोग और राज्यों के सूचना आयोगों में आरटीआई के इस्तेमाल से जुड़े तथ्यों के अध्ययन के आधार पर तैयार रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय आयोग की तुलना में राज्यों के सुस्त रवैये के कारण पूरे देश का रिपोर्ट कार्ड प्रभावित हुआ है.

रिपोर्ट के अनुसार, आरटीआई के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैकिंग में भारत की रैकिंग दूसरे स्थान से गिरकर अब 7वें पायदान पर पहुंच गई हैं. संस्था के कार्यकारी निदेशक रमानाथ झा ने रिपोर्ट के आधार पर कहा कि वैश्विक रैंकिंग में जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला हैं, उनमें ज्यादातर देशों में भारत के बाद आरटीआई कानून को लागू किया है.

उल्लेखनीय है कि देश में 12 अक्टूबर 2005 को आरटीआई कानून लागू होने के बाद से हर साल इस दिन आरटीआई दिवस मनाया जाता है. यह कानून केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, स्थानीय शहरी निकायों और पंचायती-राज संस्थाओं में लागू है.

झा ने कहा, ‘कानून बनने के बाद माना जा रहा था कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और सरकार की कार्यपद्धति में पारदर्शिता आएगी. लेकिन कानून लागू होने के 14 साल बाद भी सरकारी तंत्र में व्याप्त गोपनीयता की कार्यसंस्कृति के कारण अधिकारियों की सोच में परिवर्तन की रफ़्तार धीमी है.’

रिपोर्ट के अनुसार सूचना आयोग के समक्ष 14 साल में पेश किए गए 3.02 करोड़ आरटीआई आवेदनों में अब तक 21.32 लाख आवेदकों ने द्वितीय अपील एवं शिकायतें दर्ज कीं.

रिपोर्ट में राज्य आयोगों द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट पेश करने की कानून की अनिवार्य शर्त का पालन नहीं करने का भी खुलासा किया गया है. इसके अनुसार 2017-18 के दौरान सिर्फ नौ राज्य ही वार्षिक रिपोर्ट पेश कर पाये. सिर्फ केंद्रीय सूचना आयोग और कुछ राज्य ही हर साल नियमित रूप से वार्षिक रिपोर्ट पेश कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है.

रिपोर्ट में आरटीआई आवेदनों के विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि देश में 50 प्रतिशत से अधिक आरटीआई आवेदन ग्रामीण क्षेत्रों से किए जाते हैं. इनमें भी राज्य सरकारों की तुलना में केंद्र सरकार के विभागों से मांगी गयी जानकारी की हिस्सेदारी अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2005 से 2017 के दौरान विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों को 78,93,687 आरटीआई आवेदन प्राप्त हुये.

इसके अनुसार आरटीआई के कुल आवेदनों की संख्या के आधार पर पांच अग्रणी राज्यों में महाराष्ट्र (61,80,069 आवेदन) पहले स्थान पर, तमिलनाडू (26,91,396 आवेदन) दूसरे और कर्नाटक (22,78,082 आवेदन) तीसरे स्थान पर है जबकि केरल एवं गुजरात चौथे और पांचवें पायदान पर हैं. वहीं, आरटीआई के सबसे कम प्रयोग वाले राज्यों में मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम, मेघालय तथा अरूणाचल प्रदेश हैं.

रिपोर्ट में सूचना आयोगों में पदों की रिक्ति को भी आरटीआई की सक्रियता के लिये बाधक बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बावजूद कुल 155 पदों में से 24 पद अभी भी रिक्त हैं और देश में केवल सात महिला सूचना आयुक्त कार्यरत हैं.

आरटीआई के इस्तेमाल के आधार पर पकड़ में आये अनियमितताओं के मामलों में राज्य आयोगों द्वारा अब तक 15,578 जन-सूचना अधिकारियों पर जुर्माना लगाया गया. उत्तराखंड सूचना आयोग ने पिछले तीन सालों में सर्वाधिक 8.82 लाख रुपये का अधिकारियों पर जुर्माना लगाया जबकि केंद्रीय सूचना आयोग ने दो करोड़ रुपये जुर्माना लगाया.

झा ने कहा कि संस्था जल्द ही आरटीआई के बेहतर निष्पादन, जागरूकता, आदि मानकों के आधार पर राज्यों की रैंकिंग जारी करेगी.