गांधी परिवार मौजूदा स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना नहीं चाहता क्योंकि राजनीतिक रूप से यह परिवार बहुत कमज़ोर स्थिति में हैं और अगर इस वक़्त पार्टी हाथ से निकल गई, तो इसके परिणाम दूरगामी होंगे.
असम विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा 'सांप्रदायिक' कह रही है, हालांकि पिछले ही साल राज्य के तीन ज़िला परिषद चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी एआईयूडीएफ की मदद से ही अध्यक्ष पद पर काबिज़ हुए हैं.
हाल के दिनों में जनता द्वारा मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के दौरे पर उनका हेलीकॉप्टर न उतरने देना, मेयर के चुनाव में अंबाला में मुख्यमंत्री का विरोध होना और इसी चुनाव में सोनीपत और अंबाला जैसी शहरी सीटें हारना इस बात के संकेत हैं कि राज्य में भाजपा की स्थिति कमज़ोर हो रही है.
अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है, जो घटक दलों से या क्षेत्रीय क्षत्रपों से बात कर सके. अहमद पटेल की इसी क़ाबिलियत का फ़ायदा कांग्रेस और सोनिया गांधी को दो दशकों तक मिलता रहा.