ग्राउंड रिपोर्ट: कोरोना वायरस का केंद्र बनकर उभर रहे बिहार के कई इलाके बाढ़ के ख़तरे से भी जूझ रहे हैं. उत्तर बिहार के लगभग सभी ज़िले बाढ़ की चपेट में हैं और लाखों की आबादी प्रभावित है. लेकिन पानी में डूबे गांव-घरों में जैसे-तैसे गुज़ारा कर रहे लोगों को मदद देना तो दूर, सरकार उनकी सुध ही नहीं ले रही है.
भारत और नेपाल के बीच मौजूदा तनाव के चलते दोनों देशों के सीमांत गांवों के बीच आवाजाही एकदम ठप है. दोनों ओर के स्थानीय मानते हैं कि इसका नुकसान आम लोगों को ही भुगतना पड़ रहा है.
लॉकडाउन के समय काम न होने से निम्न आर्थिक वर्ग के लोगों के पास न पैसा है न ही कमाई का अन्य कोई साधन. बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के बासमनपुर पंचायत के मुसहर टोले का हाल भी यही है. यहां के रहवासियों का कहना है कि रोजी-रोटी नहीं है और अब भुखमरी जैसे हालात बन रहे हैं.
कोरोना संकट से निपटने के लिए ज़मीनी स्तर पर आशा कार्यकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, लेकिन महामारी के चुनौतीपूर्ण दौर में ज़िम्मेदारी के साथ मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. बिहार के पूर्वी चंपारण क्षेत्र की कई आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें अपने भुगतान की राशि पाने के लिए कमीशन देना पड़ रहा है.
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान मुस्तफ़ाबाद इलाके में पीड़ितों की मदद के लिए पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ता भी डर से अछूते नहीं थे. एक ऐसे ही कार्यकर्ता की आपबीती.