‘पहले तरक़्क़ीपसंद मेरी तहरीरों को उछालते थे कि मंटो हममें से है. अब यह कहते हैं कि मंटो हम में नहीं है. मुझे ना उनकी पहली बात का यक़ीन था, ना मौजूदा पर है. अगर कोई मुझसे पूछे कि मंटो किस जमायत में है तो अर्ज़ करूंगा कि मैं अकेला हूं...’
रामकथा का रिश्ता लोकमानस से है, उसके सुख-दुःख, आस-निरास से है. ऐसे में ‘रामकथा क्या है’ जैसे प्रश्न का उत्तर किताबों से ज्यादा लोक व्यवहारों में खोजा जाना चाहिए.