हमारे घरों के बच्चे जेएनयू आकर ‘देशद्रोही’ क्यों हो जाते हैं?

ऐसा क्यों है कि अलग-अलग जगहों से आने वाले बच्चे यहां आकर लड़ने वाले बच्चे बन जाते हैं? बढ़ी हुई फीस का मसला सिर्फ जेएनयू का नहीं है. घटी हुई आज़ादी का मसला भी सिर्फ जेएनयू का नहीं है.

क्या प्रधानमंत्री मोदी हीन भावना से ग्रस्त एक डरे हुए व्यक्ति हैं?

असाधारण दिखना तानाशाह की मजबूरी होती है- यही बात उसकी सत्ता को वैधता देती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी असाधारण हो जाना चाहते हैं. पिछले पांच सालों में वह अनगिनत बार ख़ुद को असाधारण साबित करने की कोशिश करते रहे हैं.

वीसी साहेब! आंदोलन करती ये लड़कियां बीएचयू का नाम रोशन कर रही हैं

आप गलत कह रहे हैं कि बीएचयू को बदनाम किया जा रहा है. लड़कियां अपनी आज़ादी और सुरक्षा का हक़ मांग रही हैं. यह आज़ादी उनकी प्रतिभा को और निखारेगी. वे निखरेंगी तो बीएचयू भी निखरेगा.

अगर अपशब्दों के स्कूल में वे पास हो जाएंगे तो हमारा समाज फेल हो जाएगा

समाज की नैतिकताएं कमज़ोर हुई हैं. उन्हें कमज़ोर किया गया है. क्योंकि इन्हीं कमज़ोरियों ने जाने कितनों को मज़बूत किया हुआ है.

ये जो भक्त हैं, ये उन्हीं का वक़्त है

वे हत्या के पक्ष में दलीलें देने लगे. वे हत्यारों को बधाइयां देने लगे. उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को सिर्फ जायज़ नहीं ठहराया. वे हत्या के बाद ठंडी पड़ चुकी उस लाश को गालियां देने लगे. जैसे वे उस पर और गोलियां चलाना चाहते हों.

आज़ादी अगस्त में पैदा हुई थी इसलिए मर गई

लगता है वह एक ही प्रधानमंत्री है जो अपने चोले और शक्ल बदल कर हर बरस घंटे भर कुछ बोलता है. उसे इस बार भी बोलना है. जब मैं यह लिख रहा हूं उसके बोले जाने वाले शब्द लिखे जा चुके होंगे. उनके बोलने में लोकतंत्र हर बार मजबूत होता है. उन्हें सुनकर इंसान हर बार मजबूर होता है.

विकास यही है, कुछ को उजाड़ देना और कुछ को उजाला देना

उत्तराखंड में बन रहे पंचेश्वर बांध से 122 गांव डूब जाएंगे. यहां रहने वाले लोगों को सरकारों की चाहत से ही उजड़ना है और सरकारों के कहे पर ही कहीं और बस जाना है.

गांव बचेगा तो गाय बचेगी

शहर की भीड़ हर रोज़ और बढ़ रही है. गांव को अपने भीतर लील रही है. इंसान का ही रहना यहां मुहाल है. गाय को बचाने का तो बस बवाल है.