अशांत क्षेत्र क़ानून लाने का उद्देश्य मजबूरन बिक्री और सांप्रदायिक तनाव के समय होने वाली अंतरधार्मिक ख़रीद-फ़रोख़्त को रोकना था, लेकिन गुजरात में पिछले तीन दशकों से इसका इस्तेमाल मुस्लिमों को मिली-जुली आबादी से बाहर खदेड़ने के लिए किया जा रहा है.
2002 के गुजरात दंगों में विस्थापित हुए लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. दंगों के 15 साल बाद भी उनके पास न ज़मीन है न आधारभूत सुविधाएं.