कहानियां कही जाती रही हैं, जब भाषा नहीं थी तब भी कहानियां थीं : दिव्या विजय

युवा लेखिका दिव्या विजय अपने कहानी-संग्रह ‘तुम बारहबानी’ को लेकर कहती हैं कि कहानियां एक समांतर संसार रचती हैं, जिसकी अधिकतर बातें इस संसार से मेल खाती हैं लेकिन जो मेल नहीं खातीं, वह कहानी की आत्मा होती हैं , जिसकी खोज सबको होती है, पर सब न उसे पहचान पाते हैं न स्वीकार.