प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल को गले नहीं लगा सकते. नागपुर जाकर मोहन भागवत के गले नहीं लग सकते. बावजूद इसके ग़लतफ़हमी है कि ज़ेलेंस्की और पुतिन के गले लग, यूक्रेन-रूस की लड़ाई में मध्यस्थ की छवि गढ़ वे दुनिया और देश जीत लेंगे.
गुजरात दंगों के बाद अरुण पुरी ने अपनी ‘इंडिया टुडे’ दुकान में नरेंद्र मोदी को विभाजक, घृणा-नफरत का क्राफ्ट्समैन, ध्वंस के बीच का सम्राट आदि लिखा था. अब इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में वही नरेंद्र मोदी 'उनकी दुकान चलाने' की बात कह रहे हैं.
2019 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी की वशीकरण कला की परीक्षा है. उन्होंने पांच साल चतुराई से सत्ता के तंत्र-मत्रों, मार्केटिंग और झूठ से करोड़ों मतदाताओं की जो वशीभूत भीड़ बनाई है, उसका नतीजा 23 मई को दिखाई देगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण उनके समर्थकों में हिट हो सकते हैं मगर तटस्थ, विरोधी और नए मतदाताओं को लुभाने वाले कतई नहीं हैं.