मैं प्रधानमंत्री के समर्थन में पत्र लिखने वाले 62 दिग्गजों का दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. ये अगर चाहते तो देश की छवि खराब करने वाले उन 49 लोगों की लिंचिंग भी कर सकते थे. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, बजाय इसके चिट्ठी लिखकर उन्होंने देश के बाकी लट्ठधारी राष्ट्रवादियों के सामने बहुत बड़ा आदर्श पेश किया है.
बंदरों ने केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह की बात का स्वागत किया है कि डार्विन के सिद्धांत को स्कूल-कॉलेजों की किताबों से निकाल देना चाहिए.
राजसमंद में अफ़राज़ुल की बर्बर हत्या के बावजूद प्रधानमंत्री गुजरात में मुसलमान-पाकिस्तान का समीकरण बैठा रहे थे.
फिल्म पद्मावती पर भावनाएं आहत हो जाती हैं लेकिन आत्मदाह से एक महिला की मौत पर वही भावनाएं मुर्दा सन्नाटे से भर जाती हैं.
आज भीड़ किसी को दौड़ा कर मार रही है, जींस पहनने वाली लड़कियों पर हमले हो रहे हैं, विश्वविद्यालयों में हवन हो रहा है, किताबें-कलाकृतियां जलाई जा रही हैं.
लगता है कि घोषणा रस में विह्वल प्रधानमंत्री जी भूल गए कि वे दिल्ली में एक संवैधानिक सरकार चलाते हैं कोई दरबार-ए-ख़ास नहीं कि जिसे जी चाहा अशर्फ़ियों से लाद दिया और जिसे जी चाहा कालकोठरी में डाल दिया.
समाजवाद में मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में घरों से भगा दिए गए परिवारों के बच्चे कैंपों में ठंड से मर रहे थे वहीं रामराज में बच्चे अस्पताल में मर रहे हैं.
मृत्यु तो संसार का एकमात्र शाश्वत सत्य है. योगी जी उत्तर प्रदेश को इसी सत्य का साक्षात्कार कराना चाहते हैं जो धर्म का मर्म है. लेकिन लोग उनके पीछे पड़ गए हैं.