15 जनवरी को एक नाटकीय घटनाक्रम में पत्रकार और अख़बार मालिकों के एक समूह ने सशस्त्र-बलों की मौजूदगी में कश्मीर प्रेस क्लब पहुंचकर इस पर क़ब्ज़ा कर लिया था. बाद में जम्मू कश्मीर प्रशासन ने पत्रकारों के कई समूहों के बीच असहमति का हवाला देते हुए इसे अपने नियंत्रण में ले लिया.
कठुआ बलात्कार और हत्या मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को उनकी पांच साल की जेल की सज़ा पूरी होने से पहले ही रिहा कर दिया गया और अदालत ने उनकी बाकी बची सज़ा भी रद्द कर दी है.
जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के हैदरपोरा में बीते 15 नवंबर को हुए एनकाउंटर में मोहम्मद आमिर मागरे और तीन अन्य की मौत हो गई थी. पुलिस इनके आतंकी या उनका सहयोगी होने का दावा कर रही है. लेकिन पीड़ित परिवार का कहना है कि वे निर्दोष थे. पुलिस ने बीते नवंबर महीने में ही इस एनकाउंटर में मारे गए दो आम नागरिकों के शव उनके परिजनों को लौटा चुकी है.
9 अप्रैल 2017 को सेना द्वारा जीप पर बांधकर घुमाए गए फ़ारूक़ अहमद डार साल भर बाद भी अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौटने के लिए जूझ रहे हैं.
साल 2005 में दिल्ली बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार किए गए कश्मीर के मोहम्मद रफीक़ शाह को अदालत ने 12 साल बाद बरी कर दिया. अब वे कश्मीर में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं.