नेताओं द्वारा बिहार की जनता के साथ ठगी का सिलसिला जारी है.
आज़ादी के बाद किसान अपनी समस्याओं के निदान के लिए गांधी के बताए सत्याग्रह के मार्ग पर चल रहे हैं, पर सरकारों के लिए इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है.
ऐसे समय में जब कांग्रेस रास्ता खोज रही है, उसे अपने संगठन की ओर देखना चाहिए और उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना चाहिए, जिसे 1969 के बाद लगातार ख़त्म किया जाता रहा है.
बिहार में बागमती परियोजना को लेकर चल रहे अहिंसक आंदोलन को लेकर राजनेता-नौकरशाह और ठेकेदार की तिकड़ी इस फिराक में है कि आंदोलन हिंसक हो जाए, ताकि पुलिस बल का इस्तेमाल कर विरोध को दबा दिया जाए.
विशेषज्ञों का मानना है कि फरक्का बैराज परियोजना से जितना फायदा हुआ उससे कई गुना ज़्यादा नुकसान हो चुका है. इसका कोई समाधान न निकाला गया तो व्यापक तबाही के लिए तैयार रहना होगा.
फरक्का बैराज का निर्माण जिस तरह राजनीतिक कारणों से किया गया था. उसी तरह की राजनीति अब इसे हटाने को लेकर हो रही है.