मध्यकालीन यूरोप में स्त्रियों को जादूगरनी बताकर ‘विच ट्रायल’ हुआ करते थे, जिनके बाद पचासों हज़ार स्त्रियों को खंभे से बांधकर जीवित जला दिया गया था. उस समय यंत्रणा देकर सभी स्त्रियों से अपराध स्वीकृति करवा ली जाती थी. रिया का भी ‘मीडिया ट्रायल’ नहीं हुआ है, ‘विच ट्रायल’ हुआ है.
एक राष्ट्र और एक अपराधी में यही अंतर होता है कि राष्ट्र क़ानून से चलता है जबकि अपराधी उसे तोड़ता है. अगर राष्ट्र एक बार भी क़ानून तोड़ दे, तो इसका अर्थ होगा कि वह भी अपराधी की श्रेणी में आ गया और उसका शासन करने का नैतिक अधिकार समाप्त हो जाएगा.
यूं तो भारतीय पुलिस द्वारा रोज़ाना सैंकड़ों लोगों को प्रताड़ित करने की बात कही जाती है लेकिन गरीब, पिछड़े, और अल्पसंख्यक उनके विशेष निशाने पर होते हैं. एक पूर्व पुलिस महानिदेशक द्वारा सभ्य जनतांत्रिक समाज के इस बदनुमा दाग़ का विस्तृत विश्लेषण.
इंटरनेट पर ट्रोल्स की तादाद इतनी हो चुकी है कि लगता नहीं कि वे जल्दी यहां से जाने वाले हैं. लेकिन अगर उनकी चरित्रगत ग्रंथियां, उनके तरीके और तकनीकें समझ लें, तो अपनी मानसिक शांति और संतुलन खोए बिना उनके उत्पात और हमलों का सामना कर पाएंगे.
प्रवासी मज़दूरों का सामूहिक पलायन भुखमरी के तात्कालिक भय से कहीं ज़्यादा, ग़रीब हिंदुस्तानियों के सामूहिक अवचेतन में सदियों से बैठी इस धारणा का प्रमाण है कि उन्हें सत्ता, उसकी व्यवस्था और समाज के संपन्न वर्ग से कभी कोई आशा नहीं करनी चाहिए और यह कि 'अंत में ग़रीब की कोई नहीं सुनेगा.'