क्या जातिवाद से लड़े बिना हिंदुत्ववादी एजेंडा के ख़िलाफ़ कोई संघर्ष संभव है?

सवर्णों ने इस विमर्श को केंद्र में ला दिया है कि ओबीसी और दलित हिंदुत्व के रथी हो गए हैं. यह विमर्श इस तथ्य को कमज़ोर करना चाहता है कि ऊंची जातियां हिंदुत्व का केंद्र हैं, उसे विचार और ताक़त देती हैं. आज भाजपा यदि अपने विस्तार के अंतिम बिंदु पर दिखाई देती है तो उसकी वजह यह है कि वह गैर-ब्राह्मण समूहों में अपेक्षित पकड़ नहीं बना पाई है.  

सामाजिक न्याय को चुनावी तिकड़म से आगे ले जाने की ज़रूरत है

सामाजिक न्याय के इच्छुक जाति समूहों का एक बड़ा मध्यवर्ग तैयार है, जो सामूहिक रूप से निर्णायक स्थिति में है. ज़रूरत है इनके नेतृत्व और सहयोग से सामाजिक न्याय को दूसरे चरण तक ले जाने की, वरना राजनीति का दूसरा पक्ष पहले से ही तैयार है.