यह क़दम इस बात का संकेत देता है कि सैनिकों को यह लगता है कि आफ्सपा लागू होने के बावजूद उस पर अन्यायपूर्ण तरीक़े से मुक़दमा चलाया जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला चाहे जो भी आए, मगर ऐसा लगता है कि सैनिक अपने धैर्य के आख़िरी बिंदु पर पहुंच गया है.