पहले भी हर साल साधु संत और अखाड़े मेले में आते थे. पर समाज उन्हें परे कर देता था, इसीलिए यह लोकपर्व बना हुआ था. लेकिन हरिद्वार कुंभ के बाद अब प्रयागराज कुंभ में भी सांप्रदायिकता का वर्चस्व हो गया है.
महाकुंभ के चलते इलाहाबाद शहर में लग रहे जाम से स्थानीय व्यापारियों से लेकर छात्र, शिक्षक, श्रमिक, हॉकर सभी परेशान हैं. जहां छात्र और शिक्षक पढ़ाई का कोई रूटीन न बन पाने से चिंतित हैं, वहीं काम पर निकले लोगों का आधा समय जाम से निपटने में निकल रहा है.
कहते हैं कि जब कोई गंगा स्नान करके घर आता है तो उसके पैरों में लगकर गंगा की माटी भी उन लोगों के लिए चली आती है जो गंगा तक नहीं जा पाए. महाकुंभ में भगदड़ की रात जब तमाम श्रद्धालु मेला क्षेत्र से निकलकर शहर में फंसें, तो जिन मुसलमानों को कुंभ में हिस्सा लेने से रोका गया, कुंभ ख़ुद ही उनके घरों, उनकी मस्ज़िदों में चला आया.
हादसे के दो दिन बाद भी प्रयागराज में विकट स्थिति बनी हुई है. लोगों के घरों में दूध और अख़बार तक नहीं पहुंच पाए हैं. शहर की सड़कों पर बेहिसाब भीड़ के बीच वाहन अटके हुए हैं.
'मेरे भाई ने अस्पताल के दरवाज़े पर दम तोड़ दिया क्योंकि बिस्तर नहीं था. ये लोकतंत्र नहीं मुर्दातंत्र है, जिसमें लैपटॉप मिलता है, दंगा मिलता है, इंटरनेट मिलता है पर इलाज नहीं मिलता!'