मीडिया बोल में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, नेहा दीक्षित और ओम थानवी के साथ विपक्ष के कथित भ्रष्टाचार, चोटी काटने की घटनाएं और लड़की से छेड़छाड़ की घटना पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की आठवीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, देशबुंध अख़बार के कार्यकारी संपादक जयशंकर गुप्त और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी के साथ बिहार में हुए सियासी उलटफेर की मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
चार साल पहले भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश ने कहा था, ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन अब कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा.’
मीडिया बोल की सातवीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, इंडिया टुडे समूह के सलाहकार संपादक राजदीप सरदेसाई और वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ के साथ प्रंजॉय गुहा ठाकुरता और बसपा सुप्रीमो मायावती के इस्तीफा देने पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की छठी कड़ी में उर्मिलेश भारत-चीन मामलों के जानकार मनोज जोशी और पत्रकार स्मिता शर्मा के साथ भारत-चीन के बीच जारी गतिरोध पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की पांचवीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, द हूट की संपादक सेवंती निनान और एनडीटीवी की वरिष्ठ संपादक निधि कुलपति के साथ बंगाल के बसीरहाट और बादुरिया की सांप्रदायिक हिंसा के मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की चौथी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, एनडीटीवी के सीनियर एंकर रवीश कुमार और वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रह्मण्यम के साथ हिंदी मीडिया के ग़ैर-पेशेवर रवैये पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की तीसरी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर विवेक कुमार और वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह के साथ मीडिया में दलित पत्रकारों की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की दूसरी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा और नेपाल वन टीवी की मैनेजिंग एडीटर व वरिष्ठ पत्रकार नलिनी सिंह के साथ मीडिया की आज़ादी पर चर्चा कर रहे हैं.
मीडिया बोल की पहली कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन के साथ प्रेस की स्वतंत्रता पर चर्चा कर रहे हैं.
न्यूज़ चैनल हर विषय पर दलीय प्रवक्ताओं की भीड़ क्यों इकट्ठा करना चाहते हैं? क्या वे राजनीतिक दलों, ख़ासकर सत्ताधारी दल को हर मुद्दे पर अपना फोरम मुहैया कर खुश रखने की कोशिश करते हैं?
पर्दे और पन्नों पर बार-बार उभरता रहा है- जंगलराज! लेकिन उत्तर प्रदेश में सरकार क्या बदली, मीडिया का वह ‘जंगलराज’ ग़ायब हो गया!
आप शंकराचार्यों की बेअसर पड़ चुकी पीठों पर काबिज़ होने के बजाय ज्ञान, विचार और सत्ता की नई पीठों की रचना के लिए क्यों नहीं आवाज़ उठाते, लालू जी!
कश्मीर के मामले में मोदी सरकार ने न तो पहले की सरकारों की विफलताओं से कोई सबक लिया और न ही कामयाबियों से.
बाबा साहब के नाम पर बहुत सारे आयोजन और कर्मकांड हो रहे हैं. लेकिन उनके विचार, उनके लेखन और उनकी रचनाओं को लोगों के बीच पहुंचाने की कोशिश सिरे से गायब है.