गौहाटी यूनिवर्सिटी परिसर में एबीवीपी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर आयोजित बहस छात्रों के एक समूह द्वारा विरोध किए जाने के बाद हिंसक हो गई. प्रदर्शनकारी छात्रों ने दावा किया है कि एबीवीपी सदस्य अपमानजनक टिप्पणी कर रहे थे और समाज के कुछ वर्गों को निशाना बना रहे थे.
गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम को अधिसूचित करने की ख़बर फैलते ही असम के ग़ैर-छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में इसके विरोध में दर्जनों छात्र नारे लगाते हुए निकल पड़े. विभिन्न छात्र संगठनों ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सड़कों पर उतरकर अधिनियम की प्रतियां जलाईं.
असम में विपक्षी दलों, छात्रों और अन्य संगठनों ने सीएए के ख़िलाफ़ तीव्र विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि हर किसी को विरोध करने का अधिकार है, पर यदि कोई राजनीतिक दल हाईकोर्ट के बंद पर रोक के आदेश की अवहेलना करता है, तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है.
डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल के अधीक्षक निपेन दास को कट्टरपंथी सिख नेता अमृतपाल सिंह के सेल में स्मार्टफोन और स्पाई-कैम पेन सहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पहुंचाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. उधर, अमृतपाल सिंह के परिजनों का आरोप है कि अमृतपाल समेत उस मामले में गिरफ़्तार क़ैदियों के साथ साज़िश की जा रही है.
मणिपुर में मेईतेई विद्रोही समूह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने सरकार के साथ युद्धविराम समझौता किया है, जिसके बाद सरकार कथित तौर पर उनके नेताओं, कैडरों के लिए शिविर बना रही है. इस पर नगा समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आईएम) ने पूछा है कि क्या भारत सरकार मणिपुर में नगा और मेईतेई के बीच ‘सांप्रदायिक युद्ध’ भड़काने की कोशिश कर रही है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य एनआरसी लागू नहीं कर सकता. हमने सदन में प्रस्ताव पारित किया है और मणिपुर में एनआरसी लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए केंद्र सरकार को सिफ़ारिश भेज रहे हैं.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने विधानसभा में बताया है कि पिछले साल मई से राज्य में हिंसा से संबंधित लापता व्यक्तियों के 63 मामले दर्ज किए गए हैं. उनमें से 26 लापता व्यक्तियों को मृत घोषित कर दिया गया, नौ लोग जीवित पाए गए और 28 लोग अब भी लापता हैं.
राज्य में मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में मणिपुर स्थानों का नाम विधेयक, 2024 को विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसके तहत स्थानों का नाम बदलने पर तीन साल तक की जेल की सज़ा और तीन लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
मणिपुर हिंसा के दौरान हथियारों की लूट के इस मामले को राज्य सरकार द्वारा पिछले साल 24 अगस्त को केंद्रीय एजेंसी को सौंपा गया था. मणिपुर सरकार ने अब तक सीबीआई को 29 मामले ट्रांसफर किए हैं.
इंफाल पूर्वी ज़िले में यह घटना 27 फरवरी की शाम को हुई, जब एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को कथित तौर पर मेईतेई संगठन अरमबाई तेंगगोल के कार्यकर्ताओं द्वारा उठा लिया गया था. राज्य में हालिया तनाव बढ़ने के बाद सेना को बुलाया गया है और असम राइफल्स की चार टुकड़ियों को इंफाल पूर्व में तैनात किया गया है.
विश्व हिंदू परिषद ने 16 फरवरी को कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दायर कर शेरों के एक जोड़े का नाम ‘अकबर’ और ‘सीता’ रखने पर आपत्ति जताई थी. हाईकोर्ट ने पूछा था कि क्या संभावित धार्मिक विवाद पैदा करने के लिए शेरों को यह नाम दिया गया. बीते 12 फरवरी को दोनों को त्रिपुरा के सिपाहीजाला चिड़ियाघर से पश्चिम बंगाल के उत्तरी बंगाल वन्य पशु पार्क लाया गया था.
त्रिपुरा का विपक्षी दल टिपरा मोथा राज्य की जनजातीय आबादी के संवैधानिक समाधान की मांग कर रहा है. आदिवासियों के लिए ग्रेटर टिपरालैंड राज्य और त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद को सीधे वित्तपोषण जैसी अपनी अन्य मांगों को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के साथ कई वार्ताओं में भी शामिल रहा है.
मणिपुर के चुराचांदपुर ज़िले में राहत शिविरों में रहने वाले हज़ारों लोगों ने एक विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि 15 फरवरी की हुई ताज़ा हिंसा के बाद केंद्र सरकार द्वारा आपूर्ति किया गया राशन उन तक पहुंचना बंद हो गया है. राज्य सरकार ने कहा है कि हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने दो ट्रक जला दिए थे, जिनमें राहत सामग्री थी.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने दावा किया कि इस फैसले से सरकार को राज्य में बाल विवाह रोकने में मदद मिलेगी. एक मंत्री ने इसे समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम बताया. हालांकि, उनके आलोचकों का दावा है कि यह क़दम ज़्यादातर राज्य के मुस्लिम परिवारों को निशाने पर रखता है और सांप्रदायिक चरित्र लिए हुए है.
मणिपुर पुलिस की मणिपुर राइफल्स और इंडियन रिज़र्व बटालियन के कुकी-ज़ो जनजाति समुदाय के कर्मचारियों ने एक ट्रांसफर आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए शीर्ष आदिवासी मंच इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम से संपर्क किया था. ऐसा दावा था कि यह आदेश उन्हें राज्य के बहुसंख्यक मेईतेई-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में तैनात करता है, जहां उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं.