सड़क दुर्घटना, आग और तेज़ाब हमला पीड़ितों का निजी अस्पतालों में भी ख़र्च उठाएगी दिल्ली सरकार

सत्येंद्र जैन ने कहा, लोग सड़क दुर्घटना पीड़ितों को पास के निजी अस्पताल के बजाय सरकारी अस्पताल ले जाते हैं, जिससे वे जल्दी उपचार से वंचित हो जाते हैं.

सांप्रदायिकता डर का व्यापार है, मोदी गुजरात में डर बेच रहे हैं

मोदी चाहते हैं कि हम भारत के लोग ज्ञात-अज्ञात दुश्मनों से डरने वाली एक कमज़ोर क़ौम बनें ताकि सांप्रदायिक राजनीति का दैत्य निडर होकर घूम सके.

क्या अवैध तरीक़े से बनाए मंदिर से आपकी प्रार्थना भगवान तक पहुंचेगी: कोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा, अगर आप रास्ते पर अवैध अतिक्रमण से प्रार्थना करते हैं तो क्या यह ईश्वर तक पहुंचेगी. कहा- मंदिर समेत ज़िम्मेदार सभी व्यक्तियों से निपटा जाएगा.

नेताओं की संलिप्तता वाले मामलों के लिए विशेष अदालतें गठित की जाएंगी: केंद्र

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, एक साल के लिए 12 विशेष अदालतें नेताओं के ख़िलाफ़ लंबित मामलों के निबटारे के लिए गठित की जाएंगी.

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा कोयला घोटाले में दोषी क़रार

दिल्ली की विशेष अदालत ने कोड़ा के साथ पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार बासु, दो सरकारी कर्मचारी और एक चार्टर्ड एकाउंटेंट को धारा 120बी के तहत दोषी क़रार दिया.

देश को न मोदी चाहिए, न राहुल: अन्ना हजारे

अन्ना बोले, दोनों उद्योगपतियों के हिसाब से काम करते हैं. इस बार किसान के हित में सोचने वाली सरकार चाहिए. देश में 22 साल में 12 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

शंभूलाल जैसे मानव बम राजनीति और मीडिया ने ही पैदा किए हैं

बीसियों साल से जिस तरह की विभाजनकारी राजनीति हो रही है, मीडिया के सहयोग से जिस तरह समाज में ज़हर बोया जा रहा है, उसकी फसल अब लहलहाने लगी है.

जन गण मन की बात, एपिसोड 162: मोदी का गुजरात चुनाव प्रचार और एफआरडीआई विधेयक 

जन गण मन की बात की 162वीं कड़ी में विनोद दुआ प्रधानमंत्री के गुजरात चुनाव प्रचार और वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक पर चर्चा कर रहे हैं.

मणिशंकर ने पाकिस्तान को मोदी की सुपारी दी तो मोदी ने कार्रवाई क्यों नहीं की: विपक्ष

गुजरात चुनाव राउंडअप: वामदल और जदयू ने कहा, मोदी मुद्दों के बजाय गुजरात में पाकिस्तान के दख़ल की बात करते हैं, आरोप में दम है तो उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए.

गुजरात चुनाव: एक ही सवाल बार-बार, कहां गईं नौकरियां-कहां है रोज़गार

राज्य के मौजूदा राजनीतिक विमर्श में रोज़गार और नौकरी को लेकर उठी आवाज़ें दब-सी गयी हैं. पूरा चुनाव प्रचार षड्यंत्रों की उल्टी-सीधी दास्तानों और ध्रुवीकरण पर आधारित हो गया है.

संस्कृति का बखान करने वाले आधी आबादी के मुद्दों पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं?

यह कैसा समाज है जहां जीवित इंसान की कोई कीमत नहीं पर मृत व्यक्ति के सम्मान की रक्षा के नाम पर लोग सड़क पर उतर आते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं, यहां तक कि हिंसा करने से भी नहीं चूकते.

शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए ट्रेन के छोर पर डिब्बे होना ठीक नहीं: उच्च न्यायालय

ट्रेनों में यात्रा करने वाले अक्षम लोगों को समान अवसर देने के लिए रेलवे द्वारा नियुक्त समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करने को लेकर भी दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाराज़गी प्रकट की.