बिहार की राजधानी पटना में एक प्रेस वार्ता के दौरान 2019 में मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये बात कही.
प्रेमचंद लिखते हैं, ‘राष्ट्रीयता वर्तमान युग का कोढ़ है, उसी तरह जैसे मध्यकालीन युग का कोढ़ सांप्रदायिकता थी.’
अगर सारे दल बीजेपी में शामिल हो जाएं तो हो सकता है कि प्रधानमंत्री टीवी पर ऐलान कर दें कि भारत से राजनीतिक भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है क्योंकि सब मेरे साथ आ गए हैं.
भारतीय सशस्त्र बल के 114 पूर्व सैनिकों ने हाल ही में संविधान में बताए गए धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के उलट देश में हुई हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है.
इस हफ़्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में नगालैंड, त्रिपुरा, असम, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.
कई मीडिया संस्थानों ने अमित शाह की संपत्ति में 300 फीसदी की बढ़ोत्तरी और स्मृति ईरानी की डिग्री से जुड़ी ख़बर छापी थी, जिसे बिना कोई वजह बताए हटा लिया गया.
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने केरल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमलों पर चिंता जताई और कहा कि लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा अस्वीकार्य है.
कांग्रेस, राजद, बसपा, तृणमूल और सपा जैसे दलों को भ्रष्टाचार के घेरे में लेकर यह सिद्ध किया जा रहा है कि उनकी सारी धर्मनिरपेक्षता भ्रष्टाचार को ढंकने का एक आवरण है.
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अनुसंधान की कमी पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि आज तक देश अपने सशस्त्र बलों के लिए एक ढंग की राइफल भी विकसित नहीं कर सका है.
वहीं लोकसभा में रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने सेना में 52 हज़ार सैनिकों की कमी बताई है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, 2016 में भारत ने 15 लाख 60 हज़ार टन बीफ़ निर्यात किया.
कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि मान लीजिए पुलिस ने चार लोगों के ख़िलाफ़ मजिस्ट्रेट के सामने चार्जशीट दाखिल कर दी है लेकिन आगे की कार्रवाई के लिए सरकार की अनुमति चाहिए, जो नहीं दी गई, तब क़ानूनन मजिस्ट्रेट क्या करे.
मुख्यमंत्री ने कहा, कश्मीर घाटी में एनआईए के छापे और अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी कश्मीर समस्या का हल नहीं, अस्थायी उपाय है.
नीतीश ने विपक्ष का राष्ट्रीय नेता होने के कठिन रास्ते पर चलने के बजाय मौकापरस्त ढंग से मुख्यमंत्री बन ख़ुद को इतिहास के कूड़ेदान में जाने के लिए अभिशप्त बना लिया.
जेलों पर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ और कर्मचारियों की कमी के चलते भारतीय जेलें राजनीतिक रसूख वाले अपराधियों के लिए एक आरामगाह और सामाजिक-आर्थिक तौर पर कमज़ोर विचाराधीन कैदियों के लिए नरक हैं.