पहाड़ काट कर हो रहे निर्माण और पनबिजली संयंत्र लगाने के धमाकों से पहाड़ का सीना फट रहा है. तलहटी के हरिद्वार, देहरादून सरीखे शहर बजबजाते स्लम बन चुके हैं. गोमुख से हरिद्वार तक सभ्यता का ज़हरीला कचरा फैल गया है.
परेश रावल और उनके समर्थकों का कहना था कि उनका गुस्सा अरुंधति रॉय की कश्मीर पर की गई हालिया टिप्पणी पर था. पर असलियत ये है कि अरुंधति ने ये टिप्पणी कभी की ही नहीं थी.
फोरम फॉर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एम्प्लायइज की अध्यक्ष वासुमति का आरोप है कि आईटी कम्पनियां मुनाफा कमाने के उद्देश्य से अप्रैज़ल प्रक्रिया में ‘खराब परफॉरमेंस’ का बहाना बनाकर कर्मचारियों को निकाल रही हैं.
सहारनपुर में जातीय संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है. बुधवार को भी एक व्यक्ति को गोली मार दी गई. प्रमोद पांडे सहारनपुर के नए डीएम और बबलू कुमार को जिले का नया एसएसपी बनाया गया है.
जन गण मन की बात की 57वीं कड़ी में विनोद दुआ हाशिमपुरा नरसंहार और स्वच्छ भारत अभियान की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंडिया के अनुसार, अधिकारी को पुरस्कृत करने का मतलब है कि सेना निर्दयी, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के उस कृत्य को सही ठहराना चाहती है.
आप नेता ने कहा, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और एमएम कलबुर्गी जैसे लोगों को भी ऐसे ही दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से लगातार धमकी मिली थी और फिर उनकी हत्या कर दी गई.
कंपनी के अनुसार संगठन को पुनगर्ठित करने के प्रयास के तहत यह कदम उठाया गया है.
केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार पिछले तीन सालों में हर मोर्चे पर बुरी तरह से असफल नज़र आई है.
अदालत ने कहा, अधिकारियों ने आरोपी पर मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी नहीं ली और आरोप-पत्र दायर कर गुलज़ार की भौतिक आज़ादी का उल्लंघन किया.
1870 के दशक में ये बग्घियां ब्रिटेन से भारत पहुंची थीं. तब ये विक्टोरिया टर्मिनस से लोगों को लाने-ले जाने में काम आया करती थीं.
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के अध्यात्मिक गुरु माने जाने वाले चंद्रास्वामी के भक्तों में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रही मार्ग्रेट थैचर तक का नाम शामिल था.
जन गण मन की बात की 56वीं कड़ी में विनोद दुआ भीम आर्मी और भारत की स्वास्थ्य सेवा पर चर्चा कर रहे हैं.
वर्तमान सरकार गाय को लेकर आवश्यकता से ज़्यादा चिंतित होने का दिखावा कर रही है, लेकिन वहीं हर साल डायरिया-कुपोषण से मरने वाले लाखों बच्चों को लेकर सरकार आपराधिक रूप से निष्क्रिय है.
पहले भी सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या की जाती थी. इनकी हत्या में सत्ताधारी सांसद और पुलिस अधिकारी भी शामिल होते थे. लेकिन पहले यह सब चुपचाप होता था. अब नया राजनीतिक माहौल ऐसा है कि अपराधी अपनी मंशाएं खुलेआम ज़ाहिर कर सकते हैं.